Book Title: Acharangopanishad
Author(s): Vijaykalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 154
________________ वाऽवग्रहं नावगृह्णीयात्। वर्जयेत् सागारिक-क्षुल्लक-पशु-भक्तपानसहितमवग्रहमित्यादि शय्यावद्विज्ञेयम्। // 2-7-2 // अवगृहीतेऽवग्रहे न तत्रस्थानि श्रमणादिसत्कछत्रादीनि बहिर्भागादन्तरन्त र्भागाद्वा बहिः सङ्क्रामयेत्। नापि सुप्तं श्रमणादिकं प्रतिबोधयेत्। न च तेषां किञ्चिदप्यप्रीतिकं प्रत्यनीकतां वा कुर्यात्।

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