Book Title: Acharanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 2
________________ २०११ 0000000 प्राचा राग :-गएदेानमः॥श्री वर्धमानायः॥ वईमानाय समुरोश्री मत्तीर्थादिनाथाय नमानो सद्भास्करेशियाचा रोगद्वितीय स्पाश्श्रुत स्कंधस्प वार्त्तिको वृत्ति क्यानुसारेणा लिष्यते गुर्वनुग्रहात् ॥ हिरे याचारांग नोबी जोश्रुत धधारं नियेंवें । तिहाय हिलेश्चत खंधने विषेनवब्रह्मचर्याध्मयनकलाते हने विषे साधनो आचार नथी कसौ सीहिवे तेच्याचार इणेष्ठतबंधे विस्तार सहित कहिये । पहिलेश्चत स्कंधने अध्ययनक॥ तेमांदियरंज संपेपथकी कसौवै। तिही जइहां विस्तार बोलेवें। तेसवेपतो सामान्यनाममा कही ते दिजप रिबी जोश्रुतरकंध बैतिहांच्यामादेननादिक त्रिजालवोतेकहेंबे (लोक विजयाध्ययनाप मे उद्दे सर सामगंधव रिलाया। नि रामगं घे परिवएकाइम कलौ वै । तिहां ध्याम सन्ननादिका त्रिणको टिकदि गंध्याने जिएकोटिएवं विस६ कहिहणो शहणावे शह लताने अनुमोदे/३ (पवेपवावे पचताने अनुमोदे । ६ तथावली तिहाइ जाहिंसमालोकय किरादिकण इमको एतले कतां विनिसोधिकोटिक हि किये। शकिणा वैशकिया। तापते नवकोटियाहारख्या श्रीसंषेपक हि तथावलिया हमे निमोदाध्ययनमे बी जे नद्दे से इमक सौ बै/निरक्त) परक्कमेऊ वा चिठेऊवाणि सावा यहेका वा सां सिवासादिजावाब दिया विहरेकात निरक् हावईनक्स = मिनुंबराजा। यह माउसंतोस मला मंच्या असणं चापालाई नया इंजीवाई सत्ताई। समा समुद्दिस्सकीय पामि इसादि। एतला सूत्र संपेपकाएद ने विस्तार वाजणी | पिंकेसयाना वद्दे सा। १ एकहि स्पेतथा तिमाही जबीजेच्प्रध्ययने करणैौ सेवनं पति गा हो। कंबजे पायबंवा उगादे कमा संइत्यादिच्छा TOI

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