Book Title: Acharang ke Kuch Mahattvapurna Sutra Ek Vishleshan Author(s): Surendra varma Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf View full book textPage 1
________________ स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ आचारांग के कुछ महत्वपूर्ण सूत्र एक विश्लेषण डाः सुरेन्द्र वर्मा (उपनिर्देशक : पार्श्वनाथ विद्यापीठ, बी. एच. यू.), वाराणसी 'देखो और समझो ('पास') महावीर का समस्त दर्शन अमूर्त चिंतन का परिणाम न होकर सहज प्रत्यक्षीकरण पर आधारित है । यह आवश्यक नहीं है कि जो कुछ भी महावीर कहते है उसे आँख बंद कर सही मान ही लिया जाए। वे बार-बार हमें संसार की गतिविधियों को स्वयं देखने के लिए कहते हैं। ('देखने' के लिए प्राकृत भाषा में 'पास' शब्द का प्रयोग हुआ है जो वस्तुतः 'पश्य' (सं.) धातु से आया है।) और इस प्रकार स्वतंत्र रूप से उन निष्कर्षो पर पहुँचने के लिए प्रेरित करते हैं जो स्वयं महावीर ने अपने अनुभव और प्रत्यक्ष से फलित किए हैं। एक महावीर का यह आग्रह कि हम संसार की गतिविधियों को स्वयं ही देखें, ओर जहाँ स्वतंत्र चिंतन पर बल देता है, वहीं दूसरी ओर दार्शनिक विचार को केवल अमूर्त सोच और किताबी ज्ञान से मुक्त करता है। महावीर हमें आमंत्रित करते है कि हम देखें कि इस संसार में सभी जीव दूसरे को दुःख पहुँचाते है, इससे समस्त प्राणी जगत एक आतंकित स्थिति में जीने के लिए अभिशप्त हैं वे कहते हैं - Jain Education International 2010_03 पाणा पाणे किलंराति । पास लोए महभयं । ( पृ० २३०/१३-१४) + इस आलेख के सभी उद्धरण, मुनिश्री नथमल द्वारा संपादित और जैन विश्वभारतीय, लाडनूं, द्वारा प्रकाशित आयारों से लिए गए हैं । पृष्ठ संख्या के बाद गाथा क्रमांक डाला गया हैं । २२२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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