Book Title: Acharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Author(s): Rajshree Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 9
________________ की गरिमा को बढ़ाया है। आपकी ही सद्प्रेरणा व प्रोत्साहन से साध्वी डॉ.राजश्री जी ने यह शोध प्रबन्ध वैराग्य अवस्था में ही पूर्ण करने के पश्चात दीक्षा ली थी। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर से पी एच. डी. की डिग्री उसके पश्चात प्राप्त की है। आशा है आप आगम वाङ्मय पर अपना शोध कार्य भविष्य में भी करती रहेंगी। श्रमण संघ के दिवंगत आचार्य सम्राट् पूज्य श्री देवेन्द्रमुनिजी म० से उनके स्वर्गवास से केवल चार दिन पूर्व ही श्री डी. आर. मेहता सा. और मेरी उनसे अंतिम भेंट हई थी। उसी समय इस शोध प्रबन्ध के संयुक्त प्रकाशन के लिए आचार्यश्री ने संकेत किया था। आचार्यश्री की सत्प्रेरणा से ही श्रमण संघीय साध्वीरत्ना श्री चारित्रप्रभाश्रीजी म.सा.ने इस ग्रन्थ के संयुक्त प्रकाशन हेतु गुरु पुष्कर साधना केन्द्र, उदयपुर को और आर्थिक सहयोग के लिए श्रावकों को प्रोत्साहित किया, एतदर्थ हम उनके प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं। - इस शोध ग्रन्थ की व्यापक उपयोगिता को देखते हुए इसे प्रकाश्य शोध ग्रन्थों की श्रृंखला में सम्मिलित किया गया है। आशा है श्रमण वर्ग, शोधकर्ता तथा सुधी पाठकों के लिए यह अवश्य ही उपयोगी सिद्ध होगा। हम इस ग्रन्थ के प्रकाशन से जुड़े सभी व्यक्तियों तथा संस्थानों के प्रति आभार प्रकट करते हैं। महोपाध्याय विनयसागर निदेशक प्राकृत भारती अकादमी जयपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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