Book Title: Abhidhana Sangraha Part 02
Author(s): Sivdatta Pandit, Kashinath Pandurang
Publisher: Nirnaysagar Press

View full book text
Previous | Next

Page 311
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिधानसंग्रह | प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों के उद्धारका कार्य आजकल चारों ओर बडी धूमधाम से चल रहा है, यह अ'त्यन्त आनन्दकी बात है । तौभी संस्कृतभाषाज्ञान के मुख्य साधन प्राचीन कोषों की ओर जितना लक्ष्य होना चहिये उतना नहीं है । संस्कृत कोष सब श्लोकबद्ध होने के कारण कण्ठस्थ रह सकते हैं । और अवसर पर उनके श्लोकों की सद्यः स्फूर्ति होती है । इसलिये प्रत्येक संस्कृताभिमानी पुरुष को कोषों का संग्रह अवश्य कर्तव्य है । प्राचीन प्रधान कोष छप्पन हैं यह लोकप्रसिद्धि है । परंतु उन में कईका तो आजकल नाममात्र ही शेष रह गया है । और जो क्वचित् उपलब्ध होते हैं उन के उद्धार कर्नेका भी यदि । यत्न न किया जायगा तो उनवे भी सत्वर नष्ट होजाने का विशेष संभव है यह समझ कर, हमने बड़े यत्न से कईएक कोपों का संग्रह आजतक किया है, और अवशिष्ट कोषों की प्राप्ति के लिये भी यत्न कर रहे हैं । परंतु उनकी प्रतीक्षा न कर्के, सांप्रत जितने उपलब्ध हैं उनकोंही सब के उपयोग के लिये छापकर प्रसिद्ध कर्ना, और यही क्रम आगे भी प्रवृत्त रखना, ऐसा निश्चय किया है। यह सब कोष युगपत् एकही पुस्तक मे छापे तो काल बहुत लगेगा, और पुस्तक भी बहुत बडा हो जायगा, और उसके अनुरूप मूल्य भी अधिक होगा । इस लिये ग्राहकों के सौकर्यार्थ ऐसा नियम किया है कि जिस कोष के छापने का आरम्भ करें, उस को समाप्त करके ही खण्ड प्रकट करें । यदि छोटे छोटे कोप होंय तो एक खण्डमें दो तीन रक्खें । "स्तक उत्तम कागदके ऊपर सुन्दर छापी जांयगी । जैसे जैसे ग्रन्थ तयार होगें वैसी वैसी उस उस मयपर सूचना दी जायगी । प्रत्येक कोष के पृष्ठाङ्क पृथक् पृथक् रहेंगे । इस नियम के अनुसार प्रथम और द्वितीय खण्ड छप कर तयार है। प्रथम खण्ड मे अमरसिंहकृत 'नामलिङ्गानुशासन (अमरकोष)', और उसी का परिशिष्ट पुरुषोत्तमदेवकृत ' त्रिकाण्डशेष', और 'हारावली', 'एकाक्षरकोश' और 'द्विरूपकोश' ये पांच कोष संपूर्ण आये हैं। कीमत १ रुपया । और टपालखर्च २ आने है । द्वितीयखण्ड मे हेमचन्द्रकृत 'अभिधानचिन्तामणि', 'अभिधानचिन्तामणिपरिशिष्ट', 'अनेकार्थसंग्रह', 'निघण्टुशेष' और 'लिङ्गानुशासन' ये पांच कोष और जिनदेवमुनीश्वरकृत 'अभिधानचिन्तामणिशिलोञ्छ' एक कोश संपूर्ण आये हैं। कीमत १ रुपया । और टपालखर्च ३ आने है । ये तृतीयखण्ड मे महेश्वरकृत 'विश्वप्रकाश' और 'शब्दभेदप्रकाश' ये दो कोश आनेवाले हैं । जिन कों यह पुस्तकें लेनी हों वे अपने नाम और मूल्य भेजें कि पुस्तकें तयार होते ही भेजने में ठीक पडे । तुकाराम जावजी । 'निर्णयसागर' छापेखाने के मालिक । १. आगे यादी दी है उसपरसे इन कोश छप्पनसे भी जादे हैं ऐसा मालूम पडेगा । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 309 310 311 312 313