Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 2
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha

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Page 1242
________________ -*-*-*** आजार-प्रदर्शनम् । -* ***4-1-1-1-1-1-1-1-1-1-1 -*-*-*-*-*-*-*-*-* -1-1--1-1-1-1-1-1-1-1-1-1-1-1-1 -*-*-*-*-*-*-*-* सुविहितसूरिकुलतिलकायमान-सकलजैनागमपारदृश्व-आबालब्रह्मचा. री-जङ्गमयुगप्रधान-प्रातःस्मरणीय-परमयोगिराज-क्रियाशुद्धथुपकारक-श्री सौधर्मबृहतगच्छाय-सितपटाचार्य-जगत्पूज्य गुरुदेव-जहारक श्री १००८ प्रनु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने 'श्रीअनिधानराजेन्द्र प्राकृत मागधी महाकोश का सङ्कलनकार्य मरुधरदेशीय श्रीसियाणा नगर में संवत् १९४६ के थाश्विनशुलद्वितीया के दिन शुभ लग्न में प्रारम्भ किया । इस महान् संकलन कार्य में समय समय पर कोशकर्ता के मुख्य पट्टधर शिष्य. श्रीमद्धनचन्मसूरीजी महाराजने नी आपको बहुत सहायता दी। इस प्रकार करीब साढे चौदह वर्ष के अविश्रान्त परिश्रम के फलस्वरूप में यह प्राकृत बृहत्कोष संवत् १९६० चैत्र-शुक्ला १३ बुधवार के दिन श्री सूर्यपुर (सूरत-गुजरात) में बनकर परिपूर्ण ( तैयार ) हुश्रा। *-* -1-1-1-11** **************** *-*-*-* -*-*-* ----*** - * गवालियर रियासत के राजगढ (मालवा ) में गुरुनिर्वाणोत्सव के दर. मियान संवत् १९६३ पौष शुक्ला १३ के दिन महातपस्वी-मुनि श्रीरूपवि. जयजी, मुनिश्रीदोपविजयजी, मुनिश्रीयतीन् विजयजी, श्रादि सुयोग्य मुनि महाराजाओं की अध्यक्षता में मालवदेशीय छोटे बमे ग्राम नगगे के प्रतिष्ठित-सद्गृहस्थों की सामाजिक मिटिंग में सर्वानुमत से यह प्रस्ताव पास हुआ कि मर्तुम-गुरुदेव के निर्माण किये हुए 'श्रभिधानराजेन्द्र' प्राकृत मागधी महाकोश का जैन जैनेतर समानरूप से लान प्राप्त कर सकें, इस लिये इसको अवश्य छपाना चाहिये, और इसके छपाने के लिये रतलाम (मालवा) में सेठ जसुजी चतुर्जुजजीत्-मिश्रीमलजी मथुरालालजी, रूपचंदजी रखपदासजीत्-नागीरथजी, वीसाजी जवरचंदजीत्-प्यारचंदजी और गोमाजी गंजीरचंदजीत्-निहाल वंदजी, श्रादि प्रतिष्ठित सद्गृहस्थों की देख-रेख में श्रीनिधानराजेन्द्र कार्यालय और 'श्रीजैनप्रनाकर प्रिटिंग प्रेस स्वतन्त्र खोलना चाहिये । कोष के संशोधन और कार्यालय के प्रबन्ध का * --* ******** -*-*-*-******** 非主一半米手書士事業主半士半半学者基本事基苯等半老半孝孝孝丰書事業率非半事基本手法非事事,事事主未事本书主主 Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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