Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 02
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan

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Page 32
________________ आइमज्झंतकल्लाण 08 अभिधानराजेन्द्रः भाग 2 आईणग आइमज्जंतकल्लाण-त्रि (आदिमध्यान्तकल्याण) आदिम- एव तेऽवगन्तव्याः / इदमुक्तं भवति- सर्वाविनयास्पदभूत: स्त्रीप्रसङ्गो यैः ध्यावसानेषु सुन्दरे, धर्मप्रशंसामुपक्रम्योत्कम्-"सर्वागम- परिशुद्ध, परित्यक्तस्त एवादिमोक्षाः प्रधानभूतमोक्षस्य पुरुषार्थोद्यता यदादिमध्यान्तकल्याणम्" / षो०३ विव०। आदिशब्दस्य प्रधानवाचित्वात्। सूत्र० 1 श्रु.५अ / आइमुहुत्त-नं. (आदिमुहूर्त) प्रथमे मुहूर्त, स.। आइय-त्रि. (आचित)। आ-चि-क्त-आप्रोते, (व्याप्ते) ज्ञा०१ श्रु०९अ० / तत्प्रमाणं यथा गुम्फिते, ग्रथिते, "तुलापलशतं तासां, विंशत्याभार आचित'' अभिंतरओ आइमुहत्ते छण्णउइअंगुलच्छाए पणत्ते। इत्युक्तेभारात्मकेद्विसहस्रपलमाने, "आचितं दश भारा: स्यात्, शाकटो भार आचितः" इत्युक्ते दशभारमाने, नः / शाकटभारे, पुं०। (सूत्र-९६) परिमाणवाचकत्वात्तन्मितेऽपि। संगृहीते, छन्ने च / वाच / अभ्यन्तराद् - अभ्यन्तरमण्डलमाश्रित्येत्यर्थः, आदिमुहूर्त: आइयण- न० (आदान) ग्रहणे, प्रश्न. 3 आश्र द्वाररावाच / षण्णवत्यङ्गुलच्छाय: प्रज्ञप्त: / अयमत्र भावार्थ:- सर्वाभ्यन्त- रमण्डले यत्र दिने सूर्यश्चरति तस्य दिनस्य प्रथमो मुहूर्तों द्वादशाङ्गुलमान आइयत्तिय- पुं. (आदियात्रिक) आदौ यात्राऽस्येति सार्थवाहादीशङ्कमाश्रित्य षण्णवत्यङ्गुलच्छायो भवति / तथा हि नामारक्षके बृ। तद्दिनमष्टादशमुहूर्तप्रमाणं भवतीति मुहूर्तोऽष्टादशभागो दिनस्य भवति, तस्याष्टौ भेदा यथाततश्च छायागणितप्रक्रिययता छेदेनाष्टादशल- क्षणेन द्वादशाङ्गुल: पुराणसावगसम्मतिट्टि, अहाभद्ददाणसद्धे य। शङ्कर्गुण्यत इति ततो द्वे शते षोडषोत्तरे भवतः- 216, अणभिग्गहिए मिच्छे, अभिग्गहे अन्नतित्त्थी य||९२३ / / तयोरीकृतयोरष्टोत्तरशतं भवति-१०८, ततश्च शङ्कप्रमाणे द्वादशापनीते बृ.१ उ / (अस्या: व्याख्या 'सत्थवाह' शब्दे सप्तमभाग वक्ष्यत) षण्णवति:-९६ अङ्गुलानि लभ्यन्ते इति। स. 96 सम।। (एतस्याशीतिभङ्गका: सार्थवाहवत् ते च 'विहार' शब्दे षष्ठे भागे 32 आइमूल न. (आदिमूल)। प्रधानकारणे भावमूलभेदे, आचा। अधिकाराङ्के द्रष्टव्या:) यथा मोक्षस्याऽऽदिमूलं विनयः, संसारस्य विषय इति / तत्र | आइ (दि) यावण-न (आदापन) / ग्राहणे, "आदिया-ति' मोक्षस्यादिमूलं ज्ञानदर्शनचारित्रतप: औपचारिक रूप: पञ्चधा आदापयन्तिग्राहयन्ति। सूत्र०२ श्रु०१०। विनयस्तन्मूलत्वान्मोक्षावाप्तेस्तथाचाह आइराय- पुं० (आदिराज)। ऋषभदेवे, स्था०६ठा.३ऊ। (अस्य वृत्तम् "विणया णाणं णाणाउ, दंशणं दंशणाहि चरणं तु। "उसह शब्देऽस्मिन्नेव भागे वक्ष्यते।) चरणाहिंतो मोक्खो, मोक्खे सुक्खं अणावाहं // 1 // " आइल-त्रि०(आविल) आ-विल। भेदने,काअस्वच्छे, कालुष्ययुक्ते, "विनयफलं शुश्रूषा, शुश्रूषाया: फलं श्रुतज्ञानम्। सूत्र.१ श्रु०६ अ.1 अस्वच्छस्य हि जलादे: सम्यगदृष्टिप्रसारभेदज्ञानस्य फलं विरति:, विरते: फलं चाश्रवनिरोधः // 2 // नात्तथात्वम्। भेदके, त्रि० / वाच / संवरफलं तपोबल- मथ तपसो निर्जराफलं दृष्टम्। आइल्ल-त्रि (आदिम)। आधे, श्रा०२८ गाथा! सः / सू०प्र० / तस्मात् क्रियानिवृत्ति:, क्रियानिवृत्तेरयोगित्वम् // 3 // आइल्लचन्द- पुं, (आदिमचन्द्र)। उत्तरोत्तरद्वीपसमुद्रचन्द्रापेक्षया योगनिरोधाद् भवस-न्ततिक्षय: संततिक्षयान्मोक्षः। पूर्वपूर्वद्वीपसमुद्रचन्द्रे, सू०प्र०। तस्मात्कल्याणानां, सर्वेषां भाजनं विनयः॥४॥" तस्य तथात्वम्इत्यादि / संसारस्य त्वादिमूलं विषयकषायाः / आचा०१ श्रु.२ अ०१ धातइसंडपभितिसु, उहिट्ठा तिगुणेत्ता भवे चंदा। उ.. आदिल्लचंदसहिता, अणंतराणंतरे खेत्ते // 33 // आइमोक्ख-पु. (आदिमोक्ष) आदि:- संसारस्तस्मान्मोक्ष: आदिमोक्षः / सू०प्र० 19 पाहु. 100 सूत्र। संसारविमुक्तौ, सूत्र / धर्मकारणानां शरीरं तावदादिभूतं तस्य मोक्ष: (अस्या: व्याख्या 'जोइसिय' शब्दे 4 भागे वक्ष्यते) तद्विमुक्तिर्यावज्जीवमित्यर्थः / शरीरपरित्यागे च / 'वियडे णं जीविज्ज य आदिमोक्खं (22+)" यावज्जीवम्। सूत्र०१ श्रु.७ अ आदौ-प्रथम आइल्लसूर- पुं. (आदिमसूर्य्य) / उत्तरोत्तरद्वीपसमुद्रसूर्यापेक्षया मोक्षोऽ- स्येति। मोक्षोद्यते साधौ, आदि-प्रधानमोक्षास्येति। मोक्षकताने पूर्वपूर्वद्वीपसमुद्रसूर्येसू प्र०१८ पाहु / (अस्य तथात्वमत्रैव'आइल्लचंद' साधौ च / सूत्र शब्दे गतम्।) इत्थीओ जे ण सेवंति, आइमोक्खा हि ते जणा ||9+II / आई (ती) (दी)ण-न. (आजिन)। मूषकादिचर्मनिष्पन्ने वस्त्रे, आचा० ये महासत्त्वा: कटुविपाकोऽयं स्त्रीप्रसङ्ग इत्येवमवधारणतया स्त्रियः / २श्रु.२ अ६ उ / द्वीपविशेष, समुद्रविशेषेच। पुं। जी. 3 प्रति०४ अधिः / सुगतिमार्गाऽर्गला:- संसारवीथीभूताः सर्वाऽविनयरा-जधान्यः *आदीन नं / आ-समन्ताद्दीनम् / अत्यन्तदीनतायाम, सूत्र 1 श्रु०५ कपटजालशताकुला-महामोहनशक्तयो 'न सेवन्ते'- न तत्प्रसङ्गम- अ१ऊ। भिलषन्ति त एवंभूता जना:- इतरजनातीता: साधव आदौ- प्रथमं | आईणग- न. (आजिनक)। चर्ममयेवस्त्रविशेषे, रा / तच स्वभावादति-कमलं मोक्षोऽशेषद्वन्द्वोपरमरूपो येषां ते आदिमोक्षा: / हुवधारणे आदिमोक्षा | भवति। ज्ञा०११अापरिकर्मितकर्मणि, कर्म 2 कर्म / ज्ञा. आ. म. / निः।

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