Book Title: Aatmhatya aur Santhare ki Tulna Author(s): Jivraj Jain Publisher: Jivraj Jain View full book textPage 5
________________ संथाराआत्म उत्थानकेलिएकीगयीएकधार्मिकप्रक्रिया है (संदर्भ: उव्वासगदसा, अंतगढ़दसाआदिजैनधर्मावलम्बियों के सर्व मान्यग्रन्थ).इसप्रक्रियामेंसाधक अपनेजीवनके अंतिमसमयमें, बिनाकिसी भौतिकइच्छाके, बड़ोंकीयागुरु जनोकीआज्ञामिलनेकेबाद, आहार- पानीकात्यागकरकेधर्मध्यानमेंलगजाताहै।यहखुलेआमकियाजानेवालाएकधार्मिक अनुष्ठानसिद्धहोताहै। इसप्रकारदोनोंके उद्देश्योंमें, परिस्थितियोंमें, मानसिकतामें, धार्मिकतामें औरजीवनशैलीमेंरातदिनकाफर्कसिद्धहोताहै। दोनोंएकयासमकक्षनहीं हैं। (E)डॉश्रीगोपालकाबरा(राजस्थानपत्रिका20.10.14) पत्रिकाके अनुसार भी आत्महत्याहिंसा है, स्वयंकेप्रतिहिंसा । आत्महत्यादोप्रकारकीहोती है। क्षणिक आवेग, औरमनोयोगद्धारामानसिक अवसादमें कीगयी । दोनोंमेंही निर्णय मानसिक असंतुलनकीस्थितिमेंलियागयाहोताहै। दोनोंमेंहीउससमयविशेषमेंपागलपनकीमनःस्थितिमेंलिएनिर्णयहोतेहैं। पागलपनमेंलिएगएनिर्णयकोकानूनीमान्यतानहीं है । य हव्यक्ति विशेषकास्वेच्छासेलियागयानिर्णयनहींमानाजाताहै । कारणयहहैकिउसकामस्तिष्कहीउससमयस्वयंकेवश मॅनहींहोताहै।यहअस्थायीइनसेनिटीमेंलियागयानिर्णयहोताहै, जोहिंसाकी श्रेणीमें आता है। आवेग, आवेशयामा नसिकसंतापमेंमनुष्यअपनाविवेकखोबैठता है। आत्मघातकेनिर्णयऔरउसेक्रियान्वितकरनेकेबीचसुविवेकसे सोचनेकासमयनहींहोताऔरनहीपुनःविचारकासमय। इसकसौटीसेसंथाराआत्महत्यानहीं है, कारणयहअसंतुलितमानसिकतामेंआवेगयाविषादमेंलियागयानिर्णय नहींहै।धार्मिकआस्थामेंलियागयानिर्णयभीमान्यहोताहै। जैसेएकधार्मिकपंथहै, "जेहोवाजविटनेस | उसकेअनु यायीट्रांस्फुजननहींकराते। इसेवेअपनेधर्मकेविपरीतमानतेहैं। ऐसेव्यक्तिकोअगरब्लडट्रांसफ्यूजनकी आवश्यकताहोऔरवहमनाकरदे, जबकिउसेपताहैकिउसकीमृत्युहोसकतीहै।इसीप्रकारधर्मअनुयायियोंकासंथारेकानिर्णयलेकरखान पानत्यागनाउनकाअधिकारहै, बशर्तेनिर्णयस्वतंत्रहो। उच्चतमन्यायालयनेभी अपनेनिर्णय(1987,1996,अनु च्छेद21)मेंयहकहाहैकिमरणासन्नव्यक्तिकोनिरर्थकचिकित्सानकराकरमर्यादितमृत्युवरणकरनेकीस्वत न्त्रताहै।उन्होंनेइच्छमृत्युऔरमरणासन्नव्यक्तिद्वाराउपचारकीसहमतिस्वीकारनहींकरमृत्युवरणकरनाअ लग-अलगमाना ।Page Navigation
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