Book Title: Aatma hi hai Sharan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 4
________________ की जगती जिज्ञासा', विदेशों में जैनधर्म : धूम क्रमबद्धपर्याय की' एवं 'आत्मा ही है शरण' नाम से प्रकाशित कर चुके हैं। ___ यद्यपि वे अभी भी प्रतिवर्ष विदेश जाते हैं, पर अब भूमिका तैयार हो जाने से भारत के समान वहाँ भी उनके प्रवचन समयसार पर ही होते हैं और समयसार अनुशीलन वे लिख ही रहे हैं। इसकारण उन्होंने इस विषय पर सम्पादकीय लिखना बन्द कर दिया है। अत: हमने उक्त सभी पुस्तकों को एक कर आत्मा ही है शरण' नाम से प्रकाशित किया है। यह उन सभी पुस्तकों का संशोधित रूप है; जिसमें यात्रा विवरणों को तो बहुत कम कर दिया है, पर व्याख्यान की विषय-वस्तु को उसी रूप में रखा है। यात्रा विवरण मात्र उतने ही रखे हैं, जितने कि इतिहास की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं। इस तरह अब यह एक विशुद्ध आध्यात्मिक कृति है, जिसका अध्ययन आध्यात्मिक गरिमा के साथ ही किया जाना चाहिए। विषय-वस्तु के सम्बन्ध में मात्र इतना ही कहना है कि इसमें आरम्भ में अपेक्षाकृत कम महत्त्व की और आगे-आगे अधिक महत्त्व की विषय-वस्तु आई है। इसका कारण यह है कि आरम्भ में विदेशों में भूमिका तैयार न होने से स्थूल विषय लिया गया था और ज्यों-ज्यों भूमिका तैयार हो गई, त्यों-त्यों विषय-वस्तु की गम्भीरता भी बढ़ती गई। अत: आध्यात्मिक रुचि वाले पाठकों से अनुरोध है कि वे इसके कुछ आरंभिक पेज पढ़कर पुस्तक को अधूरी न छोड़ दें। यदि उन्होंने ऐसा किया तो वे अधिक महत्वपूर्ण विषय-वस्तु से वंचित रह जायेंगे। ___'आत्मा ही है शरण' नामक लेख में णमोकार महामंत्र पर 'जैन भक्ति और ध्यान' में ध्यान पर जो प्रकाश डाला गया है, वह मूलत: गहराई से पढ़ने योग्य है। इसीप्रकार मेले में खोए बालक के उदाहरण से हमें आत्मानुभूति क्यों नहीं होती और कैसे हो? इस विषय पर तथा अपने ही घर में झाडू-पोंछा लगाने वाले बालक के उदाहरण से सम्यग्दर्शन की महिमा पर जो प्रकाश डाला है; वह भी मूलतः पढ़ने योग्य है। कुन्दकुन्दशतक और शुद्धात्मशतक की गाथाओं पर किये गये प्रवचन भी अद्भुत और अपूर्व हैं । अतः यह कृति गहरा अध्ययन करने वाले मुमुक्षुओं के लिए तो उपयोगी

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