Book Title: Aarhati Drushti
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 10
________________ धीसंपदा जैन-दर्शन एक वैज्ञानिक दर्शन है। इसकी वैज्ञानिकता असंदिग्ध है, क्योंकि इसका उत्स वीतराग वाणी है। वीतराग रागद्वेष के विजेता होते हैं, सत्य के साक्षात् द्रष्टा होते हैं और अनन्त शक्ति के स्वामी होते हैं। भगवान् महावीर इस युग के चौबीसवें तीर्थंकर हैं। उन्होंने साढ़े बारह वर्ष साधना कर सत्य का साक्षात्कार किया। उनकी वाणी जैन आगमों में संदृब्ध है। आचार्य श्री तुलसी और आचार्य श्री महाप्रज्ञ के सान्निध्य में जैन-आगमों के अध्ययन की वैज्ञानिक पद्धति विकसित हुई। उसके कारण अनेक साधु-साध्वियां जैन-दर्शन के गंभीर तत्त्वों को आधुनिक शैली में प्रस्तुति देने में सक्षम बने / समणी मंगलप्रज्ञाजी उनमें से एक हैं। उन्हें जैन विश्व भारती संस्थान, मान्य-विश्व-विद्यालय में अध्ययन अध्यापन करने का अवसर उपलब्ध हुआ। जैन विद्या परिषदों में संभागी बनने का भी मौका मिला। इन्होंने समय-समय पर आत्मा, सर्वज्ञता, नय-निक्षेप, अनेकांत, स्याद्वाद, लोकवाद, परिणामवाद, कर्मसिद्धान्त आदि विभिन्न विषयों पर अध्ययनपूर्वक अनेक लेख लिखे। 'आर्हती-दृष्टि' इसी प्रकार के चुने हुए लेखों का एक संकलन है। जैन-दर्शन के जिज्ञासु पाठकों के लिए प्रस्तुत कृति एक दर्पण बन सकती है। जो विषय प्रस्तुत पुस्तक में समाविष्ट नहीं हो सके हैं, उन पर भी लेखिका अपनी कलम चलाए और अपने लेखन को अधिक सशक्त एवं सुरुचिपूर्ण बनाएं, यही मंगलकामना साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ऋषभद्वार लाडनूं 28 मार्च 1998,

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