Book Title: Aakar Chitra Rup Stotro ka Sankshipta Nidarshan
Author(s): Rudradev Tripathi
Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf

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Page 8
________________ मुक्तेः पदं विपदमानवदानधर्म, आचार्य श्री नथमल मुनि और आचार्य श्री तुलसी // मायाभिमानदजनप्रिय लब्धशातम् / जी के मार्गानुयायी साधु-साध्वीजी द्वारा भी कुछ 12 त्वं देहि विश्वततकान्तिविराजमानं, ऐसी स्तुतियों और प्रकीर्ण बन्धों की रचनाएँ हुई | कासारजन्ममुखयत्नकरोदयाय / / 2 / / (ह्रीं-बन्ध) हैं जिन्हें उनके हस्तलिखित पत्रिकाओं में देखा जा कलुषपङ्कखरांशनिभं जिनं, सकता है। नमत पारगतं नलिनद्युतिम् श्वेताम्बर स्थानकवासी विद्वान साधू जनिमहीरूह-मत्तगजोपम, की भी इसी प्रकार की रचनाएं यत्र-तत्र प्राप्त हैं। II कजमुखं विमलं सदयं सदा // 3 // मूर्तिपूजक साधुवर्ग में भी ऐसी रचनाएं बनी हैं। 12 अन्य अप्रकाशित चित्र-बन्धमय स्तुति-स्तोत्र इनमें मैं मुनि धुरन्धरविजय जी (श्री प्रेमसूरि जी || ___ भारतीय वाङमय की इस अभिनव-शैली को के संघ के) का नाम देना चाहूँगा / इन मुनिजी में चित्र-बन्ध काव्य रचना का गुण सहज प्राप्त है। उर्वरित रखने के अनेकानेक जैन आचार्यों और बहुत छोटी आयु में ही अपने आचार्यश्री प्रेमसूरिजी I कवियों ने पर्याप्त प्रयास किया है / खेद का विषय : के प्रति दो 'विज्ञप्ति-पत्र' लिखे हैं जिसमें प्रथम में 5 यह है कि इस दिशा में विद्वानों का विशेष ध्यान चित्रबन्ध और द्वितीय में 350 चित्र-बन्धों की योजना 102 और प्रयास न होने से शताधिक स्तुतिकाव्य आज है / भटेवा-पार्श्वनाथ-चित्र-स्तोत्र (अष्टप्राति-IN भी अप्रकाशित और अपरिचित पड़े हुए हैं। हमने हार्य-स्तव) इनका महत्वपूर्ण है। 'अजित शान्ति- री इस दिशा में जब प्रयास किया तो कुछ स्तोत्र हमें स्तव' के चित्रबन्धों का उन्मीलन भी आपने ही और भी प्राप्त हुए हैं, जिनमें से कुछ के नाम इस किया है. जिसका संशोधन सम्मान्य श्री पुण्यविजय KE प्रकार हैं जी महाराज के आग्रह से हमने किया था। इसी 1. जिनस्तुति-अनेकचित्रबन्धमयी-उदयवल्लभ- प्रकार स्व० मुनिराज श्री अभयसागरजी महाराज गणि, 2. श्रीपार्श्वनाथस्तव-कल्पवृक्षबन्धमय, की प्रेरणा से कुछ जैन-स्तोत्रों की रचनाएँ की हैं, 3. पार्श्वनाथस्तव-३२ दलकमलबन्धमय, 4. चित्र- जिनमें 'भटेवा-पावं जिन-चित्रस्तव' की सं. 2024 बन्ध स्तोत्र-गुणभद्र 5. साधारण जिनस्तव-अनेक में की है जिसमें-.१२ दलकमल, दर्पण, श्रीवत्स, बन्धमय, 6. श्री हीरविजय-सूरिस्वाध्याय-अनेक स्वस्तिक, सिंहासन, शरावसम्पुट, मत्स्ययुगल, चित्रबन्धमय, 7. वर्धमानजिनस्तव 32 दलकमल- कलश और छत्र-बन्ध हैं। इसमें 11 पद्य हैं। || बन्धमय, 8. पार्श्वनाथस्तोत्र-चलच्छृङखलागर्भ, चित्र-बन्धात्मक स्तोत्रों के परिसर म यह केवल 6. आदिनाथस्तव-कामघटबन्धमय, 10. सीमन्धर- 'आकार-चित्ररूप संक्षिप्त आकलन' है। चूंकि चित्रालस्वामिस्तवन-चक्रबन्धमय, 11. अजित-शान्तिस्तव- कार की परिधि में -स्वर, स्थान, वर्ण, गति, प्रहेअनेक चित्तबन्धमय (अर्धमागधी) नन्दिषेणकृत तथा लिका, च्युत, गूढ, प्रश्नोत्तर, समस्या, भाषा और आधुनिक विभिन्न जैन पन्थानुयायी दिगम्बर, आकार-चित्र एवं इनके अनेक भेद-प्रभेद भी आते हैं, || श्वेताम्बर (स्थानक एवं मन्दिरमार्गी) साधु, उपा- अतः इन सभी प्रकारों को स्तुतियों का भी समावेश ध्याय और आचार्यों द्वारा निमित जैन स्तोत्र / किया जाए तो यह जैन-सम्प्रदाय के एक महान् दाय को विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत कर संस्कृतसाम्प्रतिक स्थिति स्तुति-साहित्य की परम्परा में अभूतपूर्व कोर्तिमान / वर्तमान वर्षों में भी वैसे तो यह धारा सूखी स्थापित करने का गौरव प्राप्त कर सकेगा। नहीं है, किन्तु क्षीण अवश्य होती दिखाई देती है। (शेष पृष्ठ 374 पर) पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास 60 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ SONrivate & Personal Use Only

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