Book Title: Aagam Manjusha N 02 Suyagado Nijjutti Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ णाय दुविहो मूल्गुणे चेव उत्तरगुणे य।मूल्गुणे पञ्चविहो उत्तरगुण चारसविहो उ॥१२९॥ आयरिओऽवि य दुविहो पव्वावन्तो य सिक्ववन्तो या सिक्खावन्तो दुविहो गहणे आसेवणे चेव II ॥१३०॥ गाहावन्तो तिविहो सुत्ते अत्थे य तदुभए चेव। मूलगुण उत्तरगृणे दुविहो आसेवणाए उ॥१३१॥१४॥ आयाणे गहणम्मि य णिक्खेबो होइ दोन्हवि चउको।एगटुं नाणटुंच होज पायं त आयाणे॥१३२॥ जं पढमस्मन्तिमए विदयस्स उतं हवेज आदिम्मि । एएणायाणिज एसो अघोऽवि पजाओ ॥१३३॥णामाई ठवणाई दवाई चेव होइ भावाई। दवाई पण दव्यास जो सभावो सए ठाणे ॥१३४|आगमणोआगमओ भावाईतं बहा उवदिसन्ति। णोआगमओ भावो पत्रविहोहोहणायच्यो।१३५॥आगमओषण आदी गणिपिडगं होड वारसात। गन्थसिलोगो पदपादअक्खराई च तत्यादी॥१३६॥१५॥णामंठवणागाहा दव्वगाहा य भावगाहाय। पोत्थगपत्तगलिहिया सा होई दग्बगाहा उ॥१३आहोइ पुण भावगाहा सागास्वजो. गभावणिफना। महुराभिहाणजुत्ता तेणं गाहत्ति णं चिन्ति॥१३८॥ गाहीकया व अत्था अहवण सामुद्दएण छन्देण। एएण होइ गाहा एसो अन्नोऽवि पजाओ॥१३९॥ पण्णरससुअज्झयणेसु पिण्डियत्येसु जो अवितहत्ति।पिण्डियवयणेणऽत्थं गहेइ तम्हा तओ गाहा॥१४०॥सोलसमे अज्झयणे अणगारगुणाण वण्णणा भणिया।गाहासोलसणामं अज्झयणमिणं ववदिसेन्ति ॥१४१॥ अ.१६॥श्रु.१॥ णामंठवणादविए खेत्ते काले तहेव भावे या एसोखलु महतम्मी निक्खेवो छविहो होइ ॥१४२॥ णामंठवणादविए खेत्ते काले तहेव भावे याएसो खलु अझयणे निक्खेवो छविहो होइ॥१४शाणामंठवणादविए खेत्ते काले य गगण संठाणे । भावे य अट्ठमे खलु णिक्खेवो पोण्डरीयस्स ॥१४४ा जो जीवो भविओ खलववजिकामो य पुण्डरीयम्मिासो दब्वपुण्डरीओ भावम्मि विजाणओ भणिओ॥१४५॥ एगमविए य बढाउए य अभिमुहियनामगोए य। एए तिष्णिवि देसा दबम्मि य पोण्डरीयस्स॥१४६॥ तेरिच्छिया मणुस्सा देवगणा चेव हान्ति जे पवरा । ने होन्ति पुण्डरीया सेसा पुण कण्डरीया उ॥१४७॥ जलयर थलयर खयरा जे पवरा चेव होन्ति कन्ता य। जे य सभावेऽणुमया ते होन्ती पोण्डरीया उ॥१४८॥ अरिहन्त चकवट्टी चारण विजाहरा दसारा य। जे अन्न इदिमन्ता ते होन्ती पोण्डरीया उ॥१४९॥ भवणवइवाणमन्तरजोइसवेमाणियाण देवाणं। जे तेसि पवरा खलु ते होन्ती पोण्डरीया उ॥१५०॥ कसाणं दुसाणं मणिमोत्तियसिलपवालमाईणं । जे य अचित्ता पवरा ते होन्ती पोण्डरीया उ॥१५१॥ अचित्तमीसगेसुं दब्बेसुं जे हवंति पवरा उ।ते होंति पोण्डरीया सेसा पुण कंडरीया उ ॥१५२॥ जाई खेत्ताइ खलु सुहाणुभावाई होन्ति लोगम्मि । देवकुरुमाझ्याई ताई खेत्ताई पवराई ॥१५३॥ जीवा भवडिईए कायठिईए य होन्ति जे पवरा। ते होन्ति पोण्डरीया अवसेसा कण्डरीया उ॥१५४॥ गणणाए रज्जू खलु संठाणं चेव होन्ति चउरंसं। एयाई पोण्डरीयाई होन्ति सेसाई इयराई॥१५५॥ ओदइए उवसमिए खइए य तहा खओवसमिए या परिणामसंनिवाए जे पवरा तेऽवि ते चेव ॥१५६॥ अहवावि नाणदसणचरित्तविणए तहेव अज्झप्पे। जे पवरा होन्ति मुणी ते पवरा पुण्डरीया उ॥१५॥ एत्यं पुण अहिगारोवणस्सइकायपुण्डरीएणं । भाव. म्मि य समणेणं अज्झयणे पोण्डरीयम्मि ॥१५८॥ उवमा य पोण्डरीए तस्सेव य उवचएण निजुनी। अधिगारो पुण भणिओ जिणोवदेसेण सिदित्ति ॥१५९॥सुरमणुयतिरियनिरओवगेसु मण्या पहू चरित्तम्मि । अविय महाजणनेयत्ति चकवट्टिम्मि अधिगारो॥१६०॥ अविय हु भारियकम्मा नियमा उकस्सनिरयठिडगामी। तेवि हु जिणोवएसेण तेणेब भवेण सिज्झन्ति ॥१६१॥ जलमालकदमालं बहुविहवडिगहणं च पुक्सरिणिं । जंघाहि व बाहाहि व नावाहि व (म.वा वा) तं दुरवगाहं ॥१६२॥ पउमं उाडंघेत्तुं ओयरमाणस्स होइ वावनी। किं नस्थि मे उवाओ जेणुलंघेज अविवनो? ॥१६३॥ विजा व देवकम्मं अहवा आगासिया विउव्वणया। पउम उल्लंघेनुं न एसुवाओ जिणक्खाओ॥१६४॥सुद्धप्पओगविजा सिदा उजिणस्स जाणणाविजा। भवियजणपोण्डरीया उजाए सिदि गतिमुवेन्ति ॥१६५॥१॥ किरियाओ भणियाओ किरियाठाणंति तेण अज्झयणं । अहिगारो पुण भणिओ बन्धे तह मोक्खमग्गे य॥१६६॥दो किरिएजणया य पयोगुवायकरणिजसमुयाणे। इरियावह संमत्ते सम्म.मेच्छाय मिच्छत्ते ॥१६॥नाम ठवणा दविए खेलऽद्धा उड्ढ उवरई वसही। संजम पगह जोहे अचल गणण संधणा भावे॥१६८॥ समयाणियाणिह तओ सम्मपउने य भावठाणम्मि। किरियाहि पुरिस पावाइए उसब्बे परिक्खेजा ॥१६९॥२॥नामंठवणादविए खेत्तेभावे य होइ बोदव्यो। एसो खलु आहारे निक्वेवो होइ पञ्चविहो ॥१७०॥ दव्वे सञ्चित्ताई खेत्ते नयरस्स जणवओ होइ।भावाहारो तिविहो ओए लोमे य पक्खेवे ॥१७१॥ सरीरेणोयाहारो तयाय फासेण लोमआहारो। पक्खेवाहारो पुण कावलिओ होइ नायव्यो॥१७२।। ओयाहारा जीवा सव्वे अपजत्तगा मुणेयव्या। पजत्तगा य मे पक्खेवे होन्ति नायच्या॥१७॥ एगिन्दियदेवाणं नेहयाणं च नन्थि पक्खे. बो। सेसाणं पक्खेवो संसारत्याण जीवाणं ॥१७४॥ एकच दोवसमए तिषिण व समए महत्तमदं वा। सा वजिया अणाहारा।मन्थम्मि दोषिण लोए य पूरिए तिण्णि समया उ॥१७६॥ अन्तोमुत्तमदं सेलेसीए भवे अणाहारा। साईयमनिहणं पुण सिदा गाहारगा होन्ति॥१७७॥ जोएण कम्मएणं आहारेई अणन्तरं जीवो। तेण परं मीसेणं जाव सरीरस्स निष्फत्ती ॥ १७८ ॥ णामं ठवणपरिना दव्वे भावे य होइ नायव्वा । दव्वपरिक्षा तिविहा भावपरिना भवे दुविहा॥ १७९॥३॥ ९३४८२४९श्री सूत्रकृतांग नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागरPage Navigation
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