Book Title: Aagam Manjusha N 02 Suyagado Nijjutti Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 4
________________ १३४६ 1 नान्दुगं पण्डिवीरिए पट्टिजा८ ॥ २६ ॥ धम्मो९ समाहि १० मग्गो ११ समोसढा चउसु वाईसु १२ । सीसगुणदोसकहणा १३ गन्यम्मि सया गुरुनिवासो १४ ॥ २७॥ आयाणिय संकलिया आयाणीयम्मि आययचरितं १५ । अप्पग्गन्ये पिण्डियवयणेणं होइ अहिगारो १६ ॥ २८ ॥ नामं ठवणा दविए खेत्ते काले कृतित्थ-संगारे। कुल-गण-संकर-गण्डी बोद्धवो भावममए य ॥ २९ ॥ महपञ्चभूय एकप्पए य तजीवतस्सरीरे य तह य अगारगवाई अत्तच्छट्टो अफलवाई ॥३०॥ बीए नियईवाओ अन्नाणिय तह य नाणवाई उ कम्मं चयं न गच्छड़ चउत्रिहं भिक्खुसमयम्मि ॥ ३१ ॥ तइए आहाकम्मं कडवाई जह य ते य वाईओ किच्चुवमा य चडत्ये परप्पवाई अविरएसु ॥ ३२॥ पञ्चतं संजोए अन्नगुणाणं च चेयणाइगुणो। पञ्चिन्दियठाणाणं ण अन्नमुणियं मुणइ अनो ॥ ३३ ॥ को एई अक? कयनासो पञ्चहा गई नत्थि । देवमणुस्सगयागइ जाईसरणाइयाणं च ॥ ३४ ॥ ण हु अफलधोवऽणिच्छियऽकालफलत्तणमिहं अदुमहेऊ णादुद्धधोवदुद्धत्तणेणऽगावित्तणे हेऊ ॥ ३५॥ अ. १ ॥ वेयालियम्मि वेयालगो य वेयालणं वियालणियं । तिन्निवि चउकगाई वियालओ एत्थ पुण जीवो ॥३६॥ दशं च परसुमाई दंमणणाणतवसंजमा भाषे। दयं च दारुगाई भावे कम्मं वियालणियं ॥ ३७॥ वेयालियं इह देसियंति वेयालियं तओ होइ। वेयालियं तहा वित्तमत्थि तेणेव य णिवद्धं ॥ ३८ ॥ कामं तु सासयमिणं कहियं अट्ठावयम्मि उसभेणं । अट्टाणउतिसुयाणं सोऊणं तेऽवि पत्रइया ॥ ३९ ॥ पढमे संचोहो अनिचया य वीयम्मि माणवजणया अहिगारो पुण भणिओ तहा तहा बहुविहो तत्थ ॥ ४० ॥ उद्देसम्मि य तइए अन्नाणचियस्स अवचओ भणिओ। वज्जेयवो य सया सुप्पमाओ जइजणेणं ॥ ४१ ॥ दवं निदावेओ दंसणनाणतवसंजमा भावे अहिगारो पुण भणिओ नाणे तवदंसणचरिते ॥ ४२ ॥ तवसंजमणाणेसुचि जइ माणां वजिओ महेसीहिं । अत्तसमुकरिसत्थं किं पुण हीला उ अनेसि ? ॥ ४३ ॥ जइ ताब निजरमओ पडिसिद्धो अट्टमाणमहणेहिं । अविसेसमयट्टाणा परिहरियवा पयतेणं ॥ ४४ ॥ अ.२ ॥ उवसग्ग स्मि य उकं दवे चेयणमचेयणं दुविहं । आगन्तुगो य पीलाकरो य जो सो उवस्सग्गो ॥ ४५ ॥ खेत्तं बहुओघपयं कालो एगन्तदृसमाईओ भावे कम्मरभुदओ सो दुविहो ओघुवकमिओ ॥४६॥ ओवकमिओ संयमविग्धकरे एत्थुवक्कमे पगयं दवे चउत्रिहो देवमणुयतिरियायसंवेतो ॥४७॥ एकेको य चउविहो अडविहो वावि सोलसविहो वा घडण जयणा व तेसि एतो बोच् अहीयारं ॥ ४८ ॥ पढमम्मि य पडिलोमा होन्ती अणुलोमगा य विइयम्मि। तइए अज्झत्थविसीदणा य परवाइवयणं च ॥ ४९ ॥ हेउसरिसेहि अहेउएहि समयपडिएहि णिउणेहिं सीलब लियपन्नवणा कया चउत्थम्मि उद्देसे ॥५०॥ जह णाम मण्डलग्गेण सिरं छेत्तृण कस्सइ मणूसो अच्छे परात्तो कि नाम तओ ण घेप्पेज ? ॥५१॥ जह वा विसगण्ड्स कोई घेतॄण नाम तुष्टिको अन्त्रेण अदीसन्तो किं नाम तओ नवि मरेजा १ ॥ ५२ ॥ जह नाम सिरिधराओ कोई रयणाणि णाम घेत्तृणं अच्छेज परात्तो कि णाम तओ न घेप्पेजा ? ॥ ५३ ॥ ३॥ दवाभिलावचिन्धे वेए भावे य इस्थिणिवखेवो। अहिलावे जह सिद्धी भावे वेयम्मि उवउत्तो ॥ ५४॥ णामं ठवणादविए खेत्ते काले य पजणणकम्मे भोगे गुणे य भावे दस एए पुरिसणिक्खेवा ॥५५५॥ पढमे संथवसंलवमाइहि" खलगा उ होइ सीलस्स विइए इहेव खलियरस अवस्था कम्मबन्धो य ॥ ५६ ॥ सूरा मो मन्नन्ता कइयवियाहि उवहिप्पहाणाहि । गहिया हु अभयपज्जोयफूलवालाइणो वहवे ॥ ५७ ॥ तम्हा ण उ वीसम्भो गन्तवो णिचमेव इत्थीसु पढमुहेसे भणिया जे दोसा ते गणन्तेणं ॥ ५८ ॥ सुसमत्था वसमत्था कीरन्ती अप्पसत्तिया पुरिसा । दीसन्ति सूरवाई णारीवनगाणते सूरा ॥ ५९ ॥ धम्मम्मि जो दढमई सो सूरो खत्तिओ य वीरो य ण हु धम्मणिरुस्सादो पुरिसो सूरो सुबलिओऽवि ॥ ६० ॥ एए चैव य दोसा पुरिससमाणात्रि इन्धियापि तम्हा उ अप्पमाओ चिरागमम्मम्मि तासि तु ॥ ६१ ॥४॥ णिरए उकं दबे णिरया उ इहेव जे भवे असुभा । खेनं णिरजगासो कालो णिरएस चेव लिई ॥६२॥ भाव उ णिरयजीवा कम्मुदओ चेव गिरयपाओगो सोऊण णिरयदुक्खं तवचरणे होइ जइयां ॥ ६३ ॥ णामंठवणादविए खेते काले तव भावे य एसो उ विभत्तीए णिक्खेवो छविहो हो ॥ ६४ ॥ पुढचीफार्स अण्णाणुचकर्म णिरयवालवहणं च तिसु वेदेन्ति अताणा अणुभागं चैव सेसासु ॥ ६५ ॥ अम्बे अम्बरिसी चैव. सामे य सबलेऽवि य रोद्दोवरूद काले य. महाकालेत्ति आवरे ॥ ६६ ॥ असिपत्ते धणु कुम्भे बालू वेयरणीऽवि य खरस्सरे महाघोसे. एवं पनरसाहिया ॥६७॥ धाडेन्ति य पहाडेन्ति हणंति विन्धन्ति तह णिसुम्भन्ति। मुञ्चन्ति अम्बरतले अम्बा खलु तत्थ णेरड्या ॥६८॥ ओहहए य तहियं णिस्सने कप्पणीहि कम्पन्ति । विदुलगचडुलगछिन्ने अम्बरिसी तत्थ रइए ॥ ६९ ॥ साडणपाडणतोडणबन्धणरज्जुहयप्पहारेहिं । सामा रश्याणं पचतयन्ती अपुणणं ॥ ७० ॥ अन्तगयफिफिसाणि य हिययं कालेज फुप्फुसे बके। सबला णेरइयाणं कट्टेन्ति तर्हि अपुण्णाणं ॥ ७१ ॥ असिसत्तिकोन्ततोमरसूलतिसूलेस सइचियगासु पोयन्ति रुदकम्मा उ णरगपाला तहिं रोहा ॥ ७२ ॥ भजन्ति अङ्गमङ्गाणि ऊरू वाहू सिराणि करचरणे। कप्पेन्ति कप्पणीहिं उवरुदा पावकम्मरया ॥ ७३ ॥ मीरासु सुष्ठएसु य कन्द्रसु पयण्डएस य पयन्ति । कुम्भीय लोहिए य पयन्ति काला उ णेरइए ॥ ७४ ॥ कप्पन्ति कागिणीमंसगाणि छिन्दन्ति सीहपुच्छाणि खावन्ति य णेरइए महकाला पावकम्मरए ॥ ७५ ॥ इत्थे पाए उरू बाहुसिरापायअङ्गमङ्गाणि । छिन्दन्ति पगामं तू असिणेरइए निरयपाला ॥ ७६ ॥ कण्णोट्टणासकरचरणदसणत्थणफुग्गऊरुबाहूणं । यणभेयणसाडण असिपत्तयहि पाहन्ति ॥७७॥ १२४७ श्री सूत्रकृतांगं नियुक्ति 1 मुनि दीपरत्नसागरPage Navigation
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