Book Title: Aagam Manjusha N 02 Suyagado Nijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः On Line - आगममंजूषा सूयगडो-निज्जुत्ति * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर M.Com.M.Ed. Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 [email protected] Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसूत्रकृताङ्गनियेक्तिः -तिस्थयरे य जिणवरे सुत्तकरे गणहरे य गमिऊणं । सूयगडस्स भगवओ णिजुत्त कित्तइस्सामि ॥ १॥ सूयगडं अशाणं विइयं तस्स य इमाणि नामाणि । सूतगडं सुत्तकडं सूयगडं चेव गोण्णाई ॥२॥ दयं तु बोण्डयादी भावे सुत्तमिह सूयगं नाणं । सच्चा १ संगह २ वित्ते ३ जाइणिवढे ४ य कत्थाइ ॥३॥ करणं च कारओ य कर्ड च तिष्हपि छक्कनिक्खेवो । दो खेत्ते काले भावेण उ कारओ जीवो ॥४॥ दवं पओगवीसस पोगसा मूल उत्तरे चेव । उत्तरकरणं वञ्जण अत्यो उ उवक्वरो सधो॥५॥ मूलकरणं सरीराणि पञ्च तिसु कण्णखन्धमाईयं। दश्विन्दियाणि परिणामियाणि विसओसहाईहिं ॥६॥ संघायणे१य परिसाडणारं यमीसे३ तहेव पडिसेहोशापड१ संखर सगड३ थूणा उतिरिच्छादिकरणं च४॥७॥ खन्धेसु दुप्पएसादिएसु अम्भेसु विजुमाईसु।णिफण्णगाणि दवाणि जाण तं वीससाकरणं ॥८॥ ण विणा आगासेणं कीरइ जं किंचि खेत्तमागासं। वञ्जणपरियावण्णं उच्छुकरणमाइयं बहुहा ॥९॥ कालो जो जावइओ जं कीरइ जम्मि जम्मि कालम्मि। ओहेण णामओ पुण करणा एक्कारस हवन्ति ॥१०॥ ववं च बालवं चेव, कोलवं तेत्तिलं तहा। गरादि वणियं चेव, विट्टी हवइ सत्तमा॥११॥ सउणि चउप्पय नागं किंसुग्धं च करणं भवे एयं । एए चत्तारि धुवा अन्ने करणा चला सत्त ॥१२॥ चाउदसिरतीए सउणी पडिवजए सया करणं । ततो अहकम खलु चउप्पयं णाग किंसुग्घं ॥१३॥ भावे पओगवीसस पओगसा मूल उत्तरे चेव । उत्तर कमसुयजोधण वण्णाई भोयणाईसु ॥१४॥ वण्णाइया य वण्णाइएसु जे केह वीससामेला । ने होन्ति थिरा अथिरा छायाऽऽतवदुद्धमाईसु ॥१५॥ मूलकरणं पुण सुए तिविहे जोगे सुभासुभ झाणे । ससमयसुएण पगयं अज्झवसाणेण य सुहेणं ॥ १६ ॥ ठिइअणुभावे बन्धणनिकायणनिहत्तदीहह. स्सेसु । संकमउदीरणाए उदए वेए उवसमे य ॥१७॥ सोऊण जिणवरमयं गणहारी काउ तक्खओवसमं । अज्झवसाणेण कयं सुत्तमिणं तेण सूयगडं ॥१८॥ वहजोगेण पभासियमणेगजोगंधराण साहणं। तो वयजोगेण कर्य जीवस्स सा(स्सा)भावियगणेण॥१९॥ अक्खरगणमतिसंघायणाएं कम्मपरिसाढणाए पतिसंघायणाएं कम्मपरिसाडणाएयातदुभयजोगेण कयं सत्तमिणं तेण सत्तगडं ॥२०॥ सनेण सत्तिया । विहप्पउत्ता एय पसिद्धा अणाईया ॥२१॥ दो चेव सुयक्वन्धा अज्झयणाईच होन्ति तेवीसं । तेत्तिसुदे(शीमहे सणकाला(ल) आयाराओ दुगुणमचंद ॥२२॥ निक्खेको माहाए चउधिहो छविहोय सोलससु। निक्खेवो य सुयम्मि य खन्धेय चउविहो होइ ॥२३॥ ससमयपरसमयपरूपणा य? पाऊण पुज्मणा व२। संयुद्धस्सुवसम्गा३ थीदो सविवजणा चेव४ ॥२४॥ उवसम्मभीरुणो थीवसस्स नरएम होज उववाओ५। एव महप्पा वीरो जयमाह तहा जएजाह६ ॥२५॥ परिचत्तनिसीलकुसील सुसीलसंविासीलवं चेव । णाऊण १३४५१२४६ श्री सूत्रकृतांग नियुक्ति मुनि दीपरनसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४६ 1 नान्दुगं पण्डिवीरिए पट्टिजा८ ॥ २६ ॥ धम्मो९ समाहि १० मग्गो ११ समोसढा चउसु वाईसु १२ । सीसगुणदोसकहणा १३ गन्यम्मि सया गुरुनिवासो १४ ॥ २७॥ आयाणिय संकलिया आयाणीयम्मि आययचरितं १५ । अप्पग्गन्ये पिण्डियवयणेणं होइ अहिगारो १६ ॥ २८ ॥ नामं ठवणा दविए खेत्ते काले कृतित्थ-संगारे। कुल-गण-संकर-गण्डी बोद्धवो भावममए य ॥ २९ ॥ महपञ्चभूय एकप्पए य तजीवतस्सरीरे य तह य अगारगवाई अत्तच्छट्टो अफलवाई ॥३०॥ बीए नियईवाओ अन्नाणिय तह य नाणवाई उ कम्मं चयं न गच्छड़ चउत्रिहं भिक्खुसमयम्मि ॥ ३१ ॥ तइए आहाकम्मं कडवाई जह य ते य वाईओ किच्चुवमा य चडत्ये परप्पवाई अविरएसु ॥ ३२॥ पञ्चतं संजोए अन्नगुणाणं च चेयणाइगुणो। पञ्चिन्दियठाणाणं ण अन्नमुणियं मुणइ अनो ॥ ३३ ॥ को एई अक? कयनासो पञ्चहा गई नत्थि । देवमणुस्सगयागइ जाईसरणाइयाणं च ॥ ३४ ॥ ण हु अफलधोवऽणिच्छियऽकालफलत्तणमिहं अदुमहेऊ णादुद्धधोवदुद्धत्तणेणऽगावित्तणे हेऊ ॥ ३५॥ अ. १ ॥ वेयालियम्मि वेयालगो य वेयालणं वियालणियं । तिन्निवि चउकगाई वियालओ एत्थ पुण जीवो ॥३६॥ दशं च परसुमाई दंमणणाणतवसंजमा भाषे। दयं च दारुगाई भावे कम्मं वियालणियं ॥ ३७॥ वेयालियं इह देसियंति वेयालियं तओ होइ। वेयालियं तहा वित्तमत्थि तेणेव य णिवद्धं ॥ ३८ ॥ कामं तु सासयमिणं कहियं अट्ठावयम्मि उसभेणं । अट्टाणउतिसुयाणं सोऊणं तेऽवि पत्रइया ॥ ३९ ॥ पढमे संचोहो अनिचया य वीयम्मि माणवजणया अहिगारो पुण भणिओ तहा तहा बहुविहो तत्थ ॥ ४० ॥ उद्देसम्मि य तइए अन्नाणचियस्स अवचओ भणिओ। वज्जेयवो य सया सुप्पमाओ जइजणेणं ॥ ४१ ॥ दवं निदावेओ दंसणनाणतवसंजमा भावे अहिगारो पुण भणिओ नाणे तवदंसणचरिते ॥ ४२ ॥ तवसंजमणाणेसुचि जइ माणां वजिओ महेसीहिं । अत्तसमुकरिसत्थं किं पुण हीला उ अनेसि ? ॥ ४३ ॥ जइ ताब निजरमओ पडिसिद्धो अट्टमाणमहणेहिं । अविसेसमयट्टाणा परिहरियवा पयतेणं ॥ ४४ ॥ अ.२ ॥ उवसग्ग स्मि य उकं दवे चेयणमचेयणं दुविहं । आगन्तुगो य पीलाकरो य जो सो उवस्सग्गो ॥ ४५ ॥ खेत्तं बहुओघपयं कालो एगन्तदृसमाईओ भावे कम्मरभुदओ सो दुविहो ओघुवकमिओ ॥४६॥ ओवकमिओ संयमविग्धकरे एत्थुवक्कमे पगयं दवे चउत्रिहो देवमणुयतिरियायसंवेतो ॥४७॥ एकेको य चउविहो अडविहो वावि सोलसविहो वा घडण जयणा व तेसि एतो बोच् अहीयारं ॥ ४८ ॥ पढमम्मि य पडिलोमा होन्ती अणुलोमगा य विइयम्मि। तइए अज्झत्थविसीदणा य परवाइवयणं च ॥ ४९ ॥ हेउसरिसेहि अहेउएहि समयपडिएहि णिउणेहिं सीलब लियपन्नवणा कया चउत्थम्मि उद्देसे ॥५०॥ जह णाम मण्डलग्गेण सिरं छेत्तृण कस्सइ मणूसो अच्छे परात्तो कि नाम तओ ण घेप्पेज ? ॥५१॥ जह वा विसगण्ड्स कोई घेतॄण नाम तुष्टिको अन्त्रेण अदीसन्तो किं नाम तओ नवि मरेजा १ ॥ ५२ ॥ जह नाम सिरिधराओ कोई रयणाणि णाम घेत्तृणं अच्छेज परात्तो कि णाम तओ न घेप्पेजा ? ॥ ५३ ॥ ३॥ दवाभिलावचिन्धे वेए भावे य इस्थिणिवखेवो। अहिलावे जह सिद्धी भावे वेयम्मि उवउत्तो ॥ ५४॥ णामं ठवणादविए खेत्ते काले य पजणणकम्मे भोगे गुणे य भावे दस एए पुरिसणिक्खेवा ॥५५५॥ पढमे संथवसंलवमाइहि" खलगा उ होइ सीलस्स विइए इहेव खलियरस अवस्था कम्मबन्धो य ॥ ५६ ॥ सूरा मो मन्नन्ता कइयवियाहि उवहिप्पहाणाहि । गहिया हु अभयपज्जोयफूलवालाइणो वहवे ॥ ५७ ॥ तम्हा ण उ वीसम्भो गन्तवो णिचमेव इत्थीसु पढमुहेसे भणिया जे दोसा ते गणन्तेणं ॥ ५८ ॥ सुसमत्था वसमत्था कीरन्ती अप्पसत्तिया पुरिसा । दीसन्ति सूरवाई णारीवनगाणते सूरा ॥ ५९ ॥ धम्मम्मि जो दढमई सो सूरो खत्तिओ य वीरो य ण हु धम्मणिरुस्सादो पुरिसो सूरो सुबलिओऽवि ॥ ६० ॥ एए चैव य दोसा पुरिससमाणात्रि इन्धियापि तम्हा उ अप्पमाओ चिरागमम्मम्मि तासि तु ॥ ६१ ॥४॥ णिरए उकं दबे णिरया उ इहेव जे भवे असुभा । खेनं णिरजगासो कालो णिरएस चेव लिई ॥६२॥ भाव उ णिरयजीवा कम्मुदओ चेव गिरयपाओगो सोऊण णिरयदुक्खं तवचरणे होइ जइयां ॥ ६३ ॥ णामंठवणादविए खेते काले तव भावे य एसो उ विभत्तीए णिक्खेवो छविहो हो ॥ ६४ ॥ पुढचीफार्स अण्णाणुचकर्म णिरयवालवहणं च तिसु वेदेन्ति अताणा अणुभागं चैव सेसासु ॥ ६५ ॥ अम्बे अम्बरिसी चैव. सामे य सबलेऽवि य रोद्दोवरूद काले य. महाकालेत्ति आवरे ॥ ६६ ॥ असिपत्ते धणु कुम्भे बालू वेयरणीऽवि य खरस्सरे महाघोसे. एवं पनरसाहिया ॥६७॥ धाडेन्ति य पहाडेन्ति हणंति विन्धन्ति तह णिसुम्भन्ति। मुञ्चन्ति अम्बरतले अम्बा खलु तत्थ णेरड्या ॥६८॥ ओहहए य तहियं णिस्सने कप्पणीहि कम्पन्ति । विदुलगचडुलगछिन्ने अम्बरिसी तत्थ रइए ॥ ६९ ॥ साडणपाडणतोडणबन्धणरज्जुहयप्पहारेहिं । सामा रश्याणं पचतयन्ती अपुणणं ॥ ७० ॥ अन्तगयफिफिसाणि य हिययं कालेज फुप्फुसे बके। सबला णेरइयाणं कट्टेन्ति तर्हि अपुण्णाणं ॥ ७१ ॥ असिसत्तिकोन्ततोमरसूलतिसूलेस सइचियगासु पोयन्ति रुदकम्मा उ णरगपाला तहिं रोहा ॥ ७२ ॥ भजन्ति अङ्गमङ्गाणि ऊरू वाहू सिराणि करचरणे। कप्पेन्ति कप्पणीहिं उवरुदा पावकम्मरया ॥ ७३ ॥ मीरासु सुष्ठएसु य कन्द्रसु पयण्डएस य पयन्ति । कुम्भीय लोहिए य पयन्ति काला उ णेरइए ॥ ७४ ॥ कप्पन्ति कागिणीमंसगाणि छिन्दन्ति सीहपुच्छाणि खावन्ति य णेरइए महकाला पावकम्मरए ॥ ७५ ॥ इत्थे पाए उरू बाहुसिरापायअङ्गमङ्गाणि । छिन्दन्ति पगामं तू असिणेरइए निरयपाला ॥ ७६ ॥ कण्णोट्टणासकरचरणदसणत्थणफुग्गऊरुबाहूणं । यणभेयणसाडण असिपत्तयहि पाहन्ति ॥७७॥ १२४७ श्री सूत्रकृतांगं नियुक्ति 1 मुनि दीपरत्नसागर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४७ कुम्भीय पयणेसु य लोहीसु य कन्दुलहिकुम्भीसु । कुम्भी य णरयपाला हणन्ति पाइन्ति णरएसु ॥ ७८ ॥ तडतडतडस्स भजन्ति भजणे कलम्बुबालुगापट्टे बालूगा णेइरया लोलन्ती अम्बरतलम्मि ॥ ७९ ॥ पूयरुहिरकेसट्टिवाहिणी कलकलेन्तजलसोया। वेयरणिणिरयपाला रइए ऊ पवाहन्ति ॥ ८० ॥ कप्पेन्ति करकएहिं तच्छिन्ति परोप्परं परसुएहिं । सिम्बलितरुमारहन्ती खरस्सरा तत्थ रइए ॥८१॥ भीए य पलायन्ते समन्ततो तत्थ ते णिरुम्भन्ति । पसुणो जहा पसुबहे महघोसा तत्थ णेरइए ||८२||५|| पाइने महसदो दवे खेत्ते य कालभावे य वीरस्स उणिक्लेवो चकओ होइ गायत्रो ॥८३॥ थुइणिक्खेवो चउहा आगन्तुअभूसणेहिं दवथुई। भावे सन्ताण गुणाण कित्तणा जे जहिं भणिया ॥ ८४॥ पुच्छि जम्बुणामो अजसुहम्मा तओ कसी य। एव महम्पा वीरो जयमाह तहा जएजाहि ॥ ८५ ॥ ६ ॥ सीले चउक्क दवे पाउरणाभरणभोयणाईसु । भावे उ ओहसीलं अभिक्खमासेवणा चैव ॥ ८६ ॥ आहे सीलं चिरई विरयाविरई य अविरइ असील। धम्मा णाणतवाई अपसत्थ अहम्मकोवाई ॥ ८७॥ परिभासिया कुसीला य एत्थ जावन्ति अविरया केई सुत्ति पसंसा सुद्धो कुत्ति दुगुञ्छा अपरिसुद्धो ॥८८॥ अष्फासुयपडिसेविय णामं भुजो य सीलवाई य। फालुं वयन्ति सीलं अफासुया मो अजन्ता ॥ ८९॥ जह णाम गोयमा चण्डिदेवगा वारिभहगा चैव जे अग्निहोत्तवाई जलसोयं जे य इच्छन्ति ॥ ९० ॥ ७ ॥ विरिए छकं दवे सचित्ताचित्तभीसगं चैव दुपयचउप्पयअपयं एवं तिविहं तु सचित्तं ॥ ९१ ॥ अचित्तं पुण विरियं आहारावरणपहरणाईसु । जह ओसहीण भणियं विरियं रसवीरियविवागो ॥ ९२ ॥ आवरणे कवयाई चकाईयं च पहरणे होन्ति। खेत्तम्मि जम्मि खेत्ते काले जं जम्मि कालम्मि ॥ ९३ ॥ भावो जीवस्स सवीरियस्स विरियम्मि लदि गविहा। ओरस्सिन्दियअज्झप्पिएस बहुसो बहुविहीयं ॥ ९४ ॥ मणड़काया आणापाणू संभव तहा य संभवे सोनाईणं सदाइएस बिसएस गहणं च ॥ ९५ ॥ उज्जमधिधीरनं सोण्डीरतं खमा य गम्भीरं । उवओगजोगतवसंजमाइयं होइ अप्पे ॥९६॥ सर्वपि य तं तिविहं पण्डिय बालविरियं च मीसं च अहवावि होइ दुविहं अगारऽणगारियं चैव ॥ ९७॥ सत्थं असिमाईय विज्जा मन्ते य देवकम्मकर्य। पत्थिववारुणअग्गेय वाउ तह मीसमं चैव ॥९८॥८॥ धम्मो पुत्रुद्दिट्ठो भावधम्मेण एत्थ अहिगारो। एसेव होइ धम्मो एसेव समाहिमग्गोनि ॥९९॥ णामंठवणाधम्मो दव्वधम्मो य भावधम्मो य । सच्चित्ताचित्तमीसग गिहत्थदाणे दवियधम्मे ॥ १०० ॥ लोइयलोउत्तरिओ दुविहो पुण होइ भावधम्मो उ। दुविहोवि दुविहतिविहो पञ्चविहो होइ णायच्वो ॥ १०१ ॥ पासत्थोसण्णकुसील संथवो ण किर बहई काउं सूयगडे अज्झयणे धम्मम्मि निकाइयं एयं ॥ १०२॥ ९॥ आयाणपणाचं गोण्णं णामं पुणो समाहित्ति। णिक्खिविऊण समाहिं भावसमाहीह पगयं तु ॥ १०३॥ णामंठवणादविए खेत्ते काले तहेव भावे य। एसो उ समाहीए णिक्स्वेवो छब्विहो होइ ॥ १०४॥ पञ्चसु विसएसु सुभेसु दव्वंमी ता भवे समाहिति । खेत्तं तु जम्मि खेने काले कालो जहिं जो उ ॥ १०५ ॥ भावसमाहि चउब्विह दंसणणाणे तवे चरिते य चउसुवि समाहियप्पा सम्मं चरणडिओ साहू ॥ १०६ ॥ १० ॥ णामं ठवणा दविए खेत्ते काले नहेब भावे य। एमो खलु मग्गस्स य णिक्खेवो छविहो होइ ॥ १०७ ॥ फलगलयन्दोलग वित्तस्ज्जुदवणबिलपासमो य । स्त्रीलगअयपक्खिपहे छत्त जलागास दवम्मि ॥ १०८ ॥ खेत्तम्मि जम्मि खित्ते काले कालो जहि हवइ जो उ। भावम्मि होइ दुविहो पसत्थ तह अप्पसत्थो य ॥ १०९ ॥ दुविहम्मिवि तिगभेदो णेओ तस्स उ विणिच्छओ दुविहो। सुगइफल दुग्गइफलो पमयं सुगईफलेणित्थ ॥ ११०॥ दुग्गइफलवाईणं तिष्णि तिसट्टा सयाइँ वाईणं। खेमे य खेमरुवे चक्कगं मग्गमाईसु ॥ १११ ॥ सम्मप्पणिओ मग्गो णाणे तह दंसणे चरिते य। चरगपरिवायाई चिण्णो मिच्छन्नमग्गो उ ॥ ११२॥ इड्डिरससायगुरुया छज्जीवनिकायधायनिरया य। जे उवदिसन्ति मग्गं कुमग्गमग्गस्सिया ते उ ॥ ११३ ॥ तव संजमप्पहाणा गुणधारी जे वयन्ति सम्भावं । सवजगजीवहियं तमाहू सम्मप्पणीयमिणं ॥ ११४॥ पन्थो मग्गो णाओ विहि घिइ सुगई हियं तह सुहं च। पत्थं सेयं णिव्वुइ णिवाणं सिवकरं चैव ॥ ११५ ॥ ११ ॥ समवसरणेवि उक्कं सच्चित्ताचित्तमीसगं देते। वेत्तम्मि जम्मि खेते काले जम्मि कालम्मि ॥ ११६ ॥ भावसमोसरणं पुण णायचं छविहम्मि भावम्मि अहवा किरिय अकिरिया अन्नाणी चेव वेणइया ॥ ११७ ॥ अस्थिति किरियवाई वयन्ति नस्थित्ति अकिरियवाई य। अन्नाणी अनाणं वेणइया वेणइयवाई ॥ ११८ ॥ असियस्यं किरियाणं अकिरियाणं च होइ चुलसीई अन्नाणिय सत्तट्ठी वेणइयाणं च बत्तीसा ॥ ११९ ॥ तेमि मनाणुमए पत्रवणा वण्णिया इहऽज्झयणे । सम्भावणिच्छयत्थं समोसरणमाह तेणं तु ॥ १२० ॥ सम्मद्दिट्ठी किरियाबाई मिच्छा य सेसगा बाई। जहिऊण मिच्छवायं सेव (प्र. सहह) ह वार्य इमं सचं ॥ १२१ ॥ १२ ॥ णामतहं ठवणतहं दवतहं चेव होइ भावतहं । दवतहं पुण जो जस्स सभावो होइ दशस्स ॥ १२२ ॥ भावतहं पूर्ण नियमा णायचं छविहम्मि भावम्मि। अहवाऽवि नाण| दंसणचरितविणएण अझपे ॥ १२३ ॥ जह सुत्तं तह अत्यो चरणं चारो तहत्ति णायां । सन्तम्मि पसंसाए पगयं असई दुगुञ्छाए ॥ १२४॥ आयरियपरंपरएण आगये जो उ छेयबुद्धीए। कोवेइ छेयवाई जमालिनासं स णासिहि ॥ १२५ ॥ ण करेइ दुक्खमोक्खं उजममाणोऽवि संजमतवेसुं । तम्हा अन्नुकरिसो बजेअवो जइजणेणं ॥ १२६ ॥ १३ ॥ गन्यो पृब्बुदिट्टो दुविडो मिस्मो य होणायो । पावण सिक्वावण पगयं सिक्खावणाए उ ॥ १२७ ॥ सो सिक्खगो य दुविहो गहणे आसेवाणाय णायो। गहणम्मि होइ तिविडो सुत्ते अत्थे तदुभए य ॥ १२८॥ आसेव२२४८ श्री सूत्रांम नियुकि मुनि दीपरत्नसागर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णाय दुविहो मूल्गुणे चेव उत्तरगुणे य।मूल्गुणे पञ्चविहो उत्तरगुण चारसविहो उ॥१२९॥ आयरिओऽवि य दुविहो पव्वावन्तो य सिक्ववन्तो या सिक्खावन्तो दुविहो गहणे आसेवणे चेव II ॥१३०॥ गाहावन्तो तिविहो सुत्ते अत्थे य तदुभए चेव। मूलगुण उत्तरगृणे दुविहो आसेवणाए उ॥१३१॥१४॥ आयाणे गहणम्मि य णिक्खेबो होइ दोन्हवि चउको।एगटुं नाणटुंच होज पायं त आयाणे॥१३२॥ जं पढमस्मन्तिमए विदयस्स उतं हवेज आदिम्मि । एएणायाणिज एसो अघोऽवि पजाओ ॥१३३॥णामाई ठवणाई दवाई चेव होइ भावाई। दवाई पण दव्यास जो सभावो सए ठाणे ॥१३४|आगमणोआगमओ भावाईतं बहा उवदिसन्ति। णोआगमओ भावो पत्रविहोहोहणायच्यो।१३५॥आगमओषण आदी गणिपिडगं होड वारसात। गन्थसिलोगो पदपादअक्खराई च तत्यादी॥१३६॥१५॥णामंठवणागाहा दव्वगाहा य भावगाहाय। पोत्थगपत्तगलिहिया सा होई दग्बगाहा उ॥१३आहोइ पुण भावगाहा सागास्वजो. गभावणिफना। महुराभिहाणजुत्ता तेणं गाहत्ति णं चिन्ति॥१३८॥ गाहीकया व अत्था अहवण सामुद्दएण छन्देण। एएण होइ गाहा एसो अन्नोऽवि पजाओ॥१३९॥ पण्णरससुअज्झयणेसु पिण्डियत्येसु जो अवितहत्ति।पिण्डियवयणेणऽत्थं गहेइ तम्हा तओ गाहा॥१४०॥सोलसमे अज्झयणे अणगारगुणाण वण्णणा भणिया।गाहासोलसणामं अज्झयणमिणं ववदिसेन्ति ॥१४१॥ अ.१६॥श्रु.१॥ णामंठवणादविए खेत्ते काले तहेव भावे या एसोखलु महतम्मी निक्खेवो छविहो होइ ॥१४२॥ णामंठवणादविए खेत्ते काले तहेव भावे याएसो खलु अझयणे निक्खेवो छविहो होइ॥१४शाणामंठवणादविए खेत्ते काले य गगण संठाणे । भावे य अट्ठमे खलु णिक्खेवो पोण्डरीयस्स ॥१४४ा जो जीवो भविओ खलववजिकामो य पुण्डरीयम्मिासो दब्वपुण्डरीओ भावम्मि विजाणओ भणिओ॥१४५॥ एगमविए य बढाउए य अभिमुहियनामगोए य। एए तिष्णिवि देसा दबम्मि य पोण्डरीयस्स॥१४६॥ तेरिच्छिया मणुस्सा देवगणा चेव हान्ति जे पवरा । ने होन्ति पुण्डरीया सेसा पुण कण्डरीया उ॥१४७॥ जलयर थलयर खयरा जे पवरा चेव होन्ति कन्ता य। जे य सभावेऽणुमया ते होन्ती पोण्डरीया उ॥१४८॥ अरिहन्त चकवट्टी चारण विजाहरा दसारा य। जे अन्न इदिमन्ता ते होन्ती पोण्डरीया उ॥१४९॥ भवणवइवाणमन्तरजोइसवेमाणियाण देवाणं। जे तेसि पवरा खलु ते होन्ती पोण्डरीया उ॥१५०॥ कसाणं दुसाणं मणिमोत्तियसिलपवालमाईणं । जे य अचित्ता पवरा ते होन्ती पोण्डरीया उ॥१५१॥ अचित्तमीसगेसुं दब्बेसुं जे हवंति पवरा उ।ते होंति पोण्डरीया सेसा पुण कंडरीया उ ॥१५२॥ जाई खेत्ताइ खलु सुहाणुभावाई होन्ति लोगम्मि । देवकुरुमाझ्याई ताई खेत्ताई पवराई ॥१५३॥ जीवा भवडिईए कायठिईए य होन्ति जे पवरा। ते होन्ति पोण्डरीया अवसेसा कण्डरीया उ॥१५४॥ गणणाए रज्जू खलु संठाणं चेव होन्ति चउरंसं। एयाई पोण्डरीयाई होन्ति सेसाई इयराई॥१५५॥ ओदइए उवसमिए खइए य तहा खओवसमिए या परिणामसंनिवाए जे पवरा तेऽवि ते चेव ॥१५६॥ अहवावि नाणदसणचरित्तविणए तहेव अज्झप्पे। जे पवरा होन्ति मुणी ते पवरा पुण्डरीया उ॥१५॥ एत्यं पुण अहिगारोवणस्सइकायपुण्डरीएणं । भाव. म्मि य समणेणं अज्झयणे पोण्डरीयम्मि ॥१५८॥ उवमा य पोण्डरीए तस्सेव य उवचएण निजुनी। अधिगारो पुण भणिओ जिणोवदेसेण सिदित्ति ॥१५९॥सुरमणुयतिरियनिरओवगेसु मण्या पहू चरित्तम्मि । अविय महाजणनेयत्ति चकवट्टिम्मि अधिगारो॥१६०॥ अविय हु भारियकम्मा नियमा उकस्सनिरयठिडगामी। तेवि हु जिणोवएसेण तेणेब भवेण सिज्झन्ति ॥१६१॥ जलमालकदमालं बहुविहवडिगहणं च पुक्सरिणिं । जंघाहि व बाहाहि व नावाहि व (म.वा वा) तं दुरवगाहं ॥१६२॥ पउमं उाडंघेत्तुं ओयरमाणस्स होइ वावनी। किं नस्थि मे उवाओ जेणुलंघेज अविवनो? ॥१६३॥ विजा व देवकम्मं अहवा आगासिया विउव्वणया। पउम उल्लंघेनुं न एसुवाओ जिणक्खाओ॥१६४॥सुद्धप्पओगविजा सिदा उजिणस्स जाणणाविजा। भवियजणपोण्डरीया उजाए सिदि गतिमुवेन्ति ॥१६५॥१॥ किरियाओ भणियाओ किरियाठाणंति तेण अज्झयणं । अहिगारो पुण भणिओ बन्धे तह मोक्खमग्गे य॥१६६॥दो किरिएजणया य पयोगुवायकरणिजसमुयाणे। इरियावह संमत्ते सम्म.मेच्छाय मिच्छत्ते ॥१६॥नाम ठवणा दविए खेलऽद्धा उड्ढ उवरई वसही। संजम पगह जोहे अचल गणण संधणा भावे॥१६८॥ समयाणियाणिह तओ सम्मपउने य भावठाणम्मि। किरियाहि पुरिस पावाइए उसब्बे परिक्खेजा ॥१६९॥२॥नामंठवणादविए खेत्तेभावे य होइ बोदव्यो। एसो खलु आहारे निक्वेवो होइ पञ्चविहो ॥१७०॥ दव्वे सञ्चित्ताई खेत्ते नयरस्स जणवओ होइ।भावाहारो तिविहो ओए लोमे य पक्खेवे ॥१७१॥ सरीरेणोयाहारो तयाय फासेण लोमआहारो। पक्खेवाहारो पुण कावलिओ होइ नायव्यो॥१७२।। ओयाहारा जीवा सव्वे अपजत्तगा मुणेयव्या। पजत्तगा य मे पक्खेवे होन्ति नायच्या॥१७॥ एगिन्दियदेवाणं नेहयाणं च नन्थि पक्खे. बो। सेसाणं पक्खेवो संसारत्याण जीवाणं ॥१७४॥ एकच दोवसमए तिषिण व समए महत्तमदं वा। सा वजिया अणाहारा।मन्थम्मि दोषिण लोए य पूरिए तिण्णि समया उ॥१७६॥ अन्तोमुत्तमदं सेलेसीए भवे अणाहारा। साईयमनिहणं पुण सिदा गाहारगा होन्ति॥१७७॥ जोएण कम्मएणं आहारेई अणन्तरं जीवो। तेण परं मीसेणं जाव सरीरस्स निष्फत्ती ॥ १७८ ॥ णामं ठवणपरिना दव्वे भावे य होइ नायव्वा । दव्वपरिक्षा तिविहा भावपरिना भवे दुविहा॥ १७९॥३॥ ९३४८२४९श्री सूत्रकृतांग नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / णामंठवणादविए अइच्छ पडिसेहए य भाव य। एसो पञ्चक्खाणस्स छव्विहो होइ निक्वेवो // 180 // मुलगुणेसु य पगयं पञ्चक्खाणे इहं अधीगारो। होज हु तप्पच्चइया अप्पञ्चक्खाणकिरिया उ॥१८१॥४॥णामंठवणाऽऽयारे दब्वे भावे य होइ नायब्बो / एमेव य सुत्तस्सा निक्वेयो चउविदो होइ // 182 // आयारसुयं भणिय बजेयच्वा सया अणायारा / अबहुसुयस्स हु होज विराहणा इत्थ जइयव्वं // 183 // एयस्स उ पडिसेहो इहमजायणम्मि होइ नायव्यो। तो अणगारसुयंति य होई नामं तु एयस्स // 184 // 5 // नामंठवणाअई दव्व चेव होइ भावहं। एसो खल अहस्म उ निक्वेवो चउविहो होड // 185 // उदगई सारह छवियह वसह तह सिलेसह। एयं दव्यई खल भावेणं होह रागदं // 186 // एगभवियवद्धाऊए य अभिमाहियनामगोए य। एए तिण्णि पगारा दव्वहे होन्ति नायग्वा // 187 // अहपुरे अहसुतो नामेणं अहओत्ति अणगारो। तत्तो समुट्ठियमिणं अज्झयणं अदइजंति // 188 // कामं दुवालसङ्ग जिणवयणं सासयं महाभागे। सव्वज्झयणाई तहा सव्वक्खरसंनिवाया य॥१८९॥ तहवि य कोई अस्थो उप्पज्जइ तम्मि तम्मि समयम्मि। पुय्वभणिओऽणुमओ य होइ इसिभासिएसु जहा // 190 // अज. हएण गोसालभिक्खवम्भवईतिदण्डीणं / जहहस्थिताक्साणं कहियं हणमो तहा बोच्छ॥१९॥गामे वसन्तपुरए सामइओ घरणिसहिओं निक्वन्तो। भिक्खायरियादिद्वा ओहासिय भत्तवे. हासं // 152 // संवेगसमावनो माई भत्तं चइत्तु दियलोए। चइऊणं अहपुरे अहसुओ अहओ जाओ // 193 // पीई य दोण्ह दूओ पुच्छणमभयस्स पट्ठवेसोऽपि / तेणावि सम्मदिद्विति होज पडिमा रहम्मि गया // 194 // दटुं संवुदो रक्खिओ य आसाण वाहण पलाओ। पव्वावन्तो धरिओ रजं न करेइ को अनो? // 195 // अगणिन्तो निक्वन्तो विहरइ पडिमाइ दारिगाबरिओ। सुवरण वसुहाराओ रमो कहणं च देवीए॥१९६॥ तं नेइ पिया तीसे पुच्छण कहणं च वरण दो बारे। जाणासि ? पायचिंधं आगमणं कहण निग्गमणं॥१९॥ पडिमागयस्समीवे सप्परिवारा अभिक्ख पडिक्यणं / भोग सुयाऽऽपुच्छण सुअवन्ध पुण्णे य निग्गमणं // 198 // रायगिहागम चोरा रायभया कहण तेसि दिक्खा य / गोसालभिक्खुबम्भीतिदण्डिया ताबसेहि सह वाओ // 199 / / (प्र.हत्थी य तेसि कसणं जिण वीरसगास निक्खमणं) वाए पराइया ते सव्वेवि य सरणमभुवगया उ। अगसहिया सव्ये जिणवीरसगासें निक्खन्ता ॥२०॥ण दुकरं वारणपासमोयणं, गयस्स मत्तस्स वणम्मि रायं ! जहा उ चत्तावलिएण तन्तुणा, सुदुकर मे पडिहाइ मोयणं ॥२०१॥६॥णामअलं ठवणअलंदब्बअलं चेव होइ भावअलं। एसो अलसहम्मि उ निक्खेचो चरविहो होइ // 202 // पजत्तीभाव खलु पढमो बीओ भवे अलंकारे। तइयो ऊ (प.विय) पडिसेहे अलसहो होइ नायव्वो॥२०॥पडिसेहणे णगारस्स इत्थीसहेण चेव अलसहो। रायगिहे नयरम्मी नालन्दा होइ चाहि रिया॥२०४॥नालन्दाएं समीवेमणोरहे (प्र.हरे) भासि इन्दभुइणा उ।अज्झयणं उदगस्स उएयं नालन्दइजंतु॥२०५/पासावचिजो पुच्छियाइओ अज्जगोयमं उदगो।सावगपुच्छा धम्मं सोउं कहियम्मि उवसन्तो॥२०६॥ इति चरमश्रुतकेवलिभगवद्भदबाहुस्वामिप्रणीता श्रीसूत्रकृताङ्गनियुक्तिः,उत्कीर्णेयं श्रीसिद्धक्षेत्रीयागममन्दिरे वीर 2467 //