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कुम्भीय पयणेसु य लोहीसु य कन्दुलहिकुम्भीसु । कुम्भी य णरयपाला हणन्ति पाइन्ति णरएसु ॥ ७८ ॥ तडतडतडस्स भजन्ति भजणे कलम्बुबालुगापट्टे बालूगा णेइरया लोलन्ती अम्बरतलम्मि ॥ ७९ ॥ पूयरुहिरकेसट्टिवाहिणी कलकलेन्तजलसोया। वेयरणिणिरयपाला रइए ऊ पवाहन्ति ॥ ८० ॥ कप्पेन्ति करकएहिं तच्छिन्ति परोप्परं परसुएहिं । सिम्बलितरुमारहन्ती खरस्सरा तत्थ रइए ॥८१॥ भीए य पलायन्ते समन्ततो तत्थ ते णिरुम्भन्ति । पसुणो जहा पसुबहे महघोसा तत्थ णेरइए ||८२||५|| पाइने महसदो दवे खेत्ते य कालभावे य वीरस्स उणिक्लेवो चकओ होइ गायत्रो ॥८३॥ थुइणिक्खेवो चउहा आगन्तुअभूसणेहिं दवथुई। भावे सन्ताण गुणाण कित्तणा जे जहिं भणिया ॥ ८४॥ पुच्छि जम्बुणामो अजसुहम्मा तओ कसी य। एव महम्पा वीरो जयमाह तहा जएजाहि ॥ ८५ ॥ ६ ॥ सीले चउक्क दवे पाउरणाभरणभोयणाईसु । भावे उ ओहसीलं अभिक्खमासेवणा चैव ॥ ८६ ॥ आहे सीलं चिरई विरयाविरई य अविरइ असील। धम्मा णाणतवाई अपसत्थ अहम्मकोवाई ॥ ८७॥ परिभासिया कुसीला य एत्थ जावन्ति अविरया केई सुत्ति पसंसा सुद्धो कुत्ति दुगुञ्छा अपरिसुद्धो ॥८८॥ अष्फासुयपडिसेविय णामं भुजो य सीलवाई य। फालुं वयन्ति सीलं अफासुया मो अजन्ता ॥ ८९॥ जह णाम गोयमा चण्डिदेवगा वारिभहगा चैव जे अग्निहोत्तवाई जलसोयं जे य इच्छन्ति ॥ ९० ॥ ७ ॥ विरिए छकं दवे सचित्ताचित्तभीसगं चैव दुपयचउप्पयअपयं एवं तिविहं तु सचित्तं ॥ ९१ ॥ अचित्तं पुण विरियं आहारावरणपहरणाईसु । जह ओसहीण भणियं विरियं रसवीरियविवागो ॥ ९२ ॥ आवरणे कवयाई चकाईयं च पहरणे होन्ति। खेत्तम्मि जम्मि खेत्ते काले जं जम्मि कालम्मि ॥ ९३ ॥ भावो जीवस्स सवीरियस्स विरियम्मि लदि गविहा। ओरस्सिन्दियअज्झप्पिएस बहुसो बहुविहीयं ॥ ९४ ॥ मणड़काया आणापाणू संभव तहा य संभवे सोनाईणं सदाइएस बिसएस गहणं च ॥ ९५ ॥ उज्जमधिधीरनं सोण्डीरतं खमा य गम्भीरं । उवओगजोगतवसंजमाइयं होइ अप्पे ॥९६॥ सर्वपि य तं तिविहं पण्डिय बालविरियं च मीसं च अहवावि होइ दुविहं अगारऽणगारियं चैव ॥ ९७॥ सत्थं असिमाईय विज्जा मन्ते य देवकम्मकर्य। पत्थिववारुणअग्गेय वाउ तह मीसमं चैव ॥९८॥८॥ धम्मो पुत्रुद्दिट्ठो भावधम्मेण एत्थ अहिगारो। एसेव होइ धम्मो एसेव समाहिमग्गोनि ॥९९॥ णामंठवणाधम्मो दव्वधम्मो य भावधम्मो य । सच्चित्ताचित्तमीसग गिहत्थदाणे दवियधम्मे ॥ १०० ॥ लोइयलोउत्तरिओ दुविहो पुण होइ भावधम्मो उ। दुविहोवि दुविहतिविहो पञ्चविहो होइ णायच्वो ॥ १०१ ॥ पासत्थोसण्णकुसील संथवो ण किर बहई काउं सूयगडे अज्झयणे धम्मम्मि निकाइयं एयं ॥ १०२॥ ९॥ आयाणपणाचं गोण्णं णामं पुणो समाहित्ति। णिक्खिविऊण समाहिं भावसमाहीह पगयं तु ॥ १०३॥ णामंठवणादविए खेत्ते काले तहेव भावे य। एसो उ समाहीए णिक्स्वेवो छब्विहो होइ ॥ १०४॥ पञ्चसु विसएसु सुभेसु दव्वंमी ता भवे समाहिति । खेत्तं तु जम्मि खेने काले कालो जहिं जो उ ॥ १०५ ॥ भावसमाहि चउब्विह दंसणणाणे तवे चरिते य चउसुवि समाहियप्पा सम्मं चरणडिओ साहू ॥ १०६ ॥ १० ॥ णामं ठवणा दविए खेत्ते काले नहेब भावे य। एमो खलु मग्गस्स य णिक्खेवो छविहो होइ ॥ १०७ ॥ फलगलयन्दोलग वित्तस्ज्जुदवणबिलपासमो य । स्त्रीलगअयपक्खिपहे छत्त जलागास दवम्मि ॥ १०८ ॥ खेत्तम्मि जम्मि खित्ते काले कालो जहि हवइ जो उ। भावम्मि होइ दुविहो पसत्थ तह अप्पसत्थो य ॥ १०९ ॥ दुविहम्मिवि तिगभेदो णेओ तस्स उ विणिच्छओ दुविहो। सुगइफल दुग्गइफलो पमयं सुगईफलेणित्थ ॥ ११०॥ दुग्गइफलवाईणं तिष्णि तिसट्टा सयाइँ वाईणं। खेमे य खेमरुवे चक्कगं मग्गमाईसु ॥ १११ ॥ सम्मप्पणिओ मग्गो णाणे तह दंसणे चरिते य। चरगपरिवायाई चिण्णो मिच्छन्नमग्गो उ ॥ ११२॥ इड्डिरससायगुरुया छज्जीवनिकायधायनिरया य। जे उवदिसन्ति मग्गं कुमग्गमग्गस्सिया ते उ ॥ ११३ ॥ तव संजमप्पहाणा गुणधारी जे वयन्ति सम्भावं । सवजगजीवहियं तमाहू सम्मप्पणीयमिणं ॥ ११४॥ पन्थो मग्गो णाओ विहि घिइ सुगई हियं तह सुहं च। पत्थं सेयं णिव्वुइ णिवाणं सिवकरं चैव ॥ ११५ ॥ ११ ॥ समवसरणेवि उक्कं सच्चित्ताचित्तमीसगं देते। वेत्तम्मि जम्मि खेते काले जम्मि कालम्मि ॥ ११६ ॥ भावसमोसरणं पुण णायचं छविहम्मि भावम्मि अहवा किरिय अकिरिया अन्नाणी चेव वेणइया ॥ ११७ ॥ अस्थिति किरियवाई वयन्ति नस्थित्ति अकिरियवाई य। अन्नाणी अनाणं वेणइया वेणइयवाई ॥ ११८ ॥ असियस्यं किरियाणं अकिरियाणं च होइ चुलसीई अन्नाणिय सत्तट्ठी वेणइयाणं च बत्तीसा ॥ ११९ ॥ तेमि मनाणुमए पत्रवणा वण्णिया इहऽज्झयणे । सम्भावणिच्छयत्थं समोसरणमाह तेणं तु ॥ १२० ॥ सम्मद्दिट्ठी किरियाबाई मिच्छा य सेसगा बाई। जहिऊण मिच्छवायं सेव (प्र. सहह) ह वार्य इमं सचं ॥ १२१ ॥ १२ ॥ णामतहं ठवणतहं दवतहं चेव होइ भावतहं । दवतहं पुण जो जस्स सभावो होइ दशस्स ॥ १२२ ॥ भावतहं पूर्ण नियमा णायचं छविहम्मि भावम्मि। अहवाऽवि नाण| दंसणचरितविणएण अझपे ॥ १२३ ॥ जह सुत्तं तह अत्यो चरणं चारो तहत्ति णायां । सन्तम्मि पसंसाए पगयं असई दुगुञ्छाए ॥ १२४॥ आयरियपरंपरएण आगये जो उ छेयबुद्धीए। कोवेइ छेयवाई जमालिनासं स णासिहि ॥ १२५ ॥ ण करेइ दुक्खमोक्खं उजममाणोऽवि संजमतवेसुं । तम्हा अन्नुकरिसो बजेअवो जइजणेणं ॥ १२६ ॥ १३ ॥ गन्यो पृब्बुदिट्टो दुविडो मिस्मो य होणायो । पावण सिक्वावण पगयं सिक्खावणाए उ ॥ १२७ ॥ सो सिक्खगो य दुविहो गहणे आसेवाणाय णायो। गहणम्मि होइ तिविडो सुत्ते अत्थे तदुभए य ॥ १२८॥ आसेव२२४८ श्री सूत्रांम नियुकि
मुनि दीपरत्नसागर