________________ / णामंठवणादविए अइच्छ पडिसेहए य भाव य। एसो पञ्चक्खाणस्स छव्विहो होइ निक्वेवो // 180 // मुलगुणेसु य पगयं पञ्चक्खाणे इहं अधीगारो। होज हु तप्पच्चइया अप्पञ्चक्खाणकिरिया उ॥१८१॥४॥णामंठवणाऽऽयारे दब्वे भावे य होइ नायब्बो / एमेव य सुत्तस्सा निक्वेयो चउविदो होइ // 182 // आयारसुयं भणिय बजेयच्वा सया अणायारा / अबहुसुयस्स हु होज विराहणा इत्थ जइयव्वं // 183 // एयस्स उ पडिसेहो इहमजायणम्मि होइ नायव्यो। तो अणगारसुयंति य होई नामं तु एयस्स // 184 // 5 // नामंठवणाअई दव्व चेव होइ भावहं। एसो खल अहस्म उ निक्वेवो चउविहो होड // 185 // उदगई सारह छवियह वसह तह सिलेसह। एयं दव्यई खल भावेणं होह रागदं // 186 // एगभवियवद्धाऊए य अभिमाहियनामगोए य। एए तिण्णि पगारा दव्वहे होन्ति नायग्वा // 187 // अहपुरे अहसुतो नामेणं अहओत्ति अणगारो। तत्तो समुट्ठियमिणं अज्झयणं अदइजंति // 188 // कामं दुवालसङ्ग जिणवयणं सासयं महाभागे। सव्वज्झयणाई तहा सव्वक्खरसंनिवाया य॥१८९॥ तहवि य कोई अस्थो उप्पज्जइ तम्मि तम्मि समयम्मि। पुय्वभणिओऽणुमओ य होइ इसिभासिएसु जहा // 190 // अज. हएण गोसालभिक्खवम्भवईतिदण्डीणं / जहहस्थिताक्साणं कहियं हणमो तहा बोच्छ॥१९॥गामे वसन्तपुरए सामइओ घरणिसहिओं निक्वन्तो। भिक्खायरियादिद्वा ओहासिय भत्तवे. हासं // 152 // संवेगसमावनो माई भत्तं चइत्तु दियलोए। चइऊणं अहपुरे अहसुओ अहओ जाओ // 193 // पीई य दोण्ह दूओ पुच्छणमभयस्स पट्ठवेसोऽपि / तेणावि सम्मदिद्विति होज पडिमा रहम्मि गया // 194 // दटुं संवुदो रक्खिओ य आसाण वाहण पलाओ। पव्वावन्तो धरिओ रजं न करेइ को अनो? // 195 // अगणिन्तो निक्वन्तो विहरइ पडिमाइ दारिगाबरिओ। सुवरण वसुहाराओ रमो कहणं च देवीए॥१९६॥ तं नेइ पिया तीसे पुच्छण कहणं च वरण दो बारे। जाणासि ? पायचिंधं आगमणं कहण निग्गमणं॥१९॥ पडिमागयस्समीवे सप्परिवारा अभिक्ख पडिक्यणं / भोग सुयाऽऽपुच्छण सुअवन्ध पुण्णे य निग्गमणं // 198 // रायगिहागम चोरा रायभया कहण तेसि दिक्खा य / गोसालभिक्खुबम्भीतिदण्डिया ताबसेहि सह वाओ // 199 / / (प्र.हत्थी य तेसि कसणं जिण वीरसगास निक्खमणं) वाए पराइया ते सव्वेवि य सरणमभुवगया उ। अगसहिया सव्ये जिणवीरसगासें निक्खन्ता ॥२०॥ण दुकरं वारणपासमोयणं, गयस्स मत्तस्स वणम्मि रायं ! जहा उ चत्तावलिएण तन्तुणा, सुदुकर मे पडिहाइ मोयणं ॥२०१॥६॥णामअलं ठवणअलंदब्बअलं चेव होइ भावअलं। एसो अलसहम्मि उ निक्खेचो चरविहो होइ // 202 // पजत्तीभाव खलु पढमो बीओ भवे अलंकारे। तइयो ऊ (प.विय) पडिसेहे अलसहो होइ नायव्वो॥२०॥पडिसेहणे णगारस्स इत्थीसहेण चेव अलसहो। रायगिहे नयरम्मी नालन्दा होइ चाहि रिया॥२०४॥नालन्दाएं समीवेमणोरहे (प्र.हरे) भासि इन्दभुइणा उ।अज्झयणं उदगस्स उएयं नालन्दइजंतु॥२०५/पासावचिजो पुच्छियाइओ अज्जगोयमं उदगो।सावगपुच्छा धम्मं सोउं कहियम्मि उवसन्तो॥२०६॥ इति चरमश्रुतकेवलिभगवद्भदबाहुस्वामिप्रणीता श्रीसूत्रकृताङ्गनियुक्तिः,उत्कीर्णेयं श्रीसिद्धक्षेत्रीयागममन्दिरे वीर 2467 //