Book Title: Aagam Manjusha 41A Mulsuttam Mool 02 A OhNijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ अणचावि अवलिअंचा अणुबंधि निरंतरया तिरिउड्ढा य पट्टणा मुसली ॥१६१॥ मा०। आरभडा सम्महा वजेयचा य मोसली तइया। पप्फोडणा पउत्थी विक्खित्ता वेड्या उट्ठा ॥ ७॥ विनहकरणे चतुरिजं अण्णं अण्णं वगेष्हणाऽऽरमडा। अंतो व होज कोणा निसियण तत्येव संभहा ॥२॥भा०। मोसलि पुवुट्टिा पप्फोडण रेणुगुंडिए थेष। विक्वेवं तुक्खेवो वेश्यपणगं च रहोसा ॥३॥ भा०। पसिदिल पलंग लोला एगामोसा अणेगरूवधुणा। कुणइ पमाणपमायं संकियगणणोवर्ग कुजा ॥८॥ पसिढिलमघणं अतिराइयं च विसमगहर्ण व कोणं वा । भूमीकरलोलणया कढणगहणेकामोसा ॥१६४॥ भा०। धुणणा तिण्ह परेणं बहूणि वा घेत्तु एकई धुणह। खोडणपमजणासु य संकियगणणं करि पमाई ।। १६५॥ भा। अणूणाइरिनपडिलेहा, अविवञ्चासा तहेव य। पदम पयं पसत्थं, सेसाणि य अप्पसत्याणि ॥२६९॥ नवि ऊणा नवि रित्ता अविवच्चासा उ पढमओ सुद्धो। सेसा होइ असुद्धा उव रिडा सत्त जे भंगा ॥१६६॥ भाग खोडपमजणवेलाउ चेव ऊणाहिया मुणेयवा। अरुणावासग पुर्व परोप्परं पाणिपडिलेहा ॥२७॥ एते उ अणाएसा अंधारे उग्गएविहु न दीसे। द मुहरयनिसिजचोले कप्पनिग दुपट्ट युद्ध सूरो॥१॥ पुरिसुचहिविवचासो सागरिए करिज उवहिवञ्चासं। आपुच्छित्ताण गुरुं पहुचमाणेयरे वितहं ॥२॥ पडिलेहणं करेंनो मिहो कहं कुणइ जणवयकह वा। देव व पचक्खाणं वाएइ सयं पडिच्छ वा ॥३॥ पुढवीआऊक्काएतेऊवाऊवणस्सइतसाणं। पडिलेहणापमत्तो उहपि विराहओ होइ॥४॥ घडगाइपोहणया मट्टिय अगणी य पीय कुंथाई। उदगगया व तसेयर ओमय संघट्ट प्रावणया ॥५॥ इय दवओ उ छष्हपि विराहओ भावओ इहरहावि। उवउत्तो पुण साह संपत्तीए अवहओ अ॥२३५०॥ पुढवीआउकाएनेऊबाऊवणस्सइतसाणं। पडिलेहणमाउत्तो छण्हंऽपाराहओ होइ ॥६॥ जोगो जोगो जिणसासणंमि दुक्खक्खया पउंजने। अण्णोण्णमचाहाए असवनो होइ कायको ॥७॥ जोगे जोगे जिणसासणमि दुक्खक्खया पउंजंते। एकेकंमि अर्णता वटुंता केवली जाया ॥८॥ एवं पडिलेहंता अईयकारे अर्णनगा सिद्धा। चोयगवयणं सययं पडिलेहेमो जओ सिद्धी॥९॥ सेसेसु अवटुंती पडिलेहंतोचि देसमाराहे। जइ पुण सबाराहणमिच्छसि तो णं निसामेहि ॥२८०॥ पंचिदिएहिं गुत्तोमणमाईतिविहकरणमाउत्तो। तवनियमसंजमंमि अ जुत्तो आराधओ होई ॥१॥ इंदियविसयनिरोहो पत्तेसुचि रागदोसनिग्गहणं । अकसलजोगनिरोहो कसलोदय एगभावो वा ॥१६७॥ भाका अम्भितरवाहिरगं तवोवहाणं दुवालस विहं तु। इंदियतो पुत्रुत्तो नियमो कोहाइओ बिइओ ॥८॥ पुढविदगअगणिमारुअवणस्सइबितिचउक्कपंचिंदी। अज्जीव पोत्थगाइसु गहिए असंजमो जेणं ॥ ९॥ पेहेत्ता संजमो युनो, - उपेहित्तावि संजमो । पमजेना संजमो वुत्तो, परिट्ठावेत्तावि संजमो ॥१७०॥ ठाणाइ जत्थ चेए पुर्व पडिलेहिऊण चेएज्जा। संजयगिहिचोयणऽचोयणे य वाचारओवेहा ॥१॥ उवगरणं अइरेगं पाणाई वाऽवहद संजमणं । सागारिएऽपमजण संजम सेसे पमजणया ॥२॥ जोगतिगं पुवमणि समतपडिलेहणाए सज्झाओ। चरिमाएँ पोरिसीए पडिलेह ना उ पाय दुगं ॥१७३॥ भा०। पोरिसि पमाणकालो निच्छयववहारिओ जिणक्खाओ। निच्छ्य ओ करणजुओ ववहारमतो परं वोच्छ ॥२८२॥ अयणाईयदिणगणे अट्ठगुणेगट्ठिभाइए लद। A उत्तरदाहिणमाई पोरिसि पयसुज्मपक्खेवा ॥३॥ अद्वेगसविभागा खयपुढी होइ जं अहोरत्ते। तेणट्ठगुणकारो एगट्ठी सूरतेएणं ॥१०२४॥ आसाढे मासे दो पया, पोसे मासे चउका प्पया। चित्तासोएस मासेस, तिपया हवह पोरिसी॥४॥ अंगुलं सत्तरतेणं, पक्खेणं तु दुअंगलं । वड्ढए हायए पावि, मासेर्ण पाउरंगलं ॥५॥ आसाढबहुलपक्से भरवाए कत्तिए य पोसे य। फग्गुणवइसाहेसु य बोदवा ओमरत्ताओ॥६॥ जेट्ठामूले आसाढसावणे छहिं अंगुलेहि पडिलेहा। अट्टहिं बीअतिमि य नइए दस अट्टहिं चउत्थे ॥ ७॥ उवउजिऊण पुर्व :तावेसो जइ करेइ उपओगे। सोएण चक्सुणा घाणओ य जीहाएं फासेणं ॥८॥ पडिलेहणियाकाले फिडिए कालाणगं तु पच्छिल। पायम्स पासु बेट्टो सोयादुवउत्त नातेसो॥१७४॥ भा०। मुहर्णतएण गोच्छ गोच्छगगहिअंगुलीहिं पडलाई। उक्कुडयभाणवत्थे पलिमंचाईसुतं न भवे ॥९॥ चउकोण भाणकर्ण पमज पाएसरीय तिगुणं तु । भाणस्स पुष्फगं तो इमेहि कजेहिं पडिलेहे ॥२९० ॥ मूसयरयउकेरे, घणसंताणए इय। उदए मट्टिा चेव, एमेया पडिवत्तिओ॥१॥ नवगनिवेसे दूराउ उक्केरो मूसएहि उकिण्णो । निलमहि हस्तणू वा ठाणं भेत्तृण पविसेना ॥२॥कोत्थलगारिअघरगं पणसंताणाइया व लग्गेजा। उक्करं सट्टाणं हस्तणु संचिट्ठ जा सुको ॥३॥ इयरेसु पोरिसितिगं संचिक्खावेत्तु तत्तिअं जिंदे । सर्व वावि विगिंचइ पोराण महिलं ताहे॥४॥ पत्तं पमजिऊणं अंतो बाहिं सई तु पष्फोडे। केइ पुण तिष्णि वारा चउरंगुल भूमि पडणभया ॥५॥ विटिअबंधणधरणे अगणी तेणे य दंडियक्षोभे। उउबद्ध धरणपंधण वासासु अबंधणा ठवणा ॥२९६ ॥ रयताण भाण धरणा उउबद्धे निक्खिकेज वासासु। अगणीतेणभएण व रायक्वोभे विराहणया॥१७५॥ मा०। परिगलमाणा हीरेज डहणा मेया तहेव उकाया। गुत्तो व सयं डझे हीरेज वजं च तेण विणा ॥६॥ वासासु नस्थि अगणी नेव य तेणा उ दंडिया सत्था। तेण अपंधणठवणा एवं पडिलेहणा पाए ॥७॥ भा०। अणावायमसलोए अणवाए चेव होइ संलोए। आवायमसलोए आवाए चेव संलोए ॥७॥ तस्थावायं दुविहं सपक्सपरपक्खओ य णायम्। दुविहं होइ सपक्खे संजय १२२९ ओघनियुक्तिः - मुनि दीपरत्नसागर

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25