Book Title: Aagam Manjusha 41A Mulsuttam Mool 02 A OhNijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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ठाउं चउरंगलंतरं काउं। मुहपोत्ति उज्जुहत्ये वामंमि य पायपुंछणयं ॥२॥ काउस्सग्गमि ठिओ चिते समुयाणिए अईआरे। जा निग्गमापवेसो तत्थ उ दोसे मणे कुजा ॥३॥ ते उ पडिसेवणाए अणलोमा होति वियटणाए य। पडिसेववियडणाए एत्य उ चउरो भवे भंगा॥४॥ बक्खित्तपराहत्ते पमते मा कयाइ आलोए। आहारं च करेंतो नीहारं वा जह करेड ॥॥ कहणाईवरिखत्ते विकहाइ पमत्त अन्नओ व मुहे। अंतरमकारए वा नीहारे संक मरणं वा ॥२६॥ भा०। अञ्चक्खित्ताउत्तं उवसंतमुवट्ठिअंच नाऊणं । अणुन्नवेनु मेहावी. आलो. एजा सुसंजए॥६॥ कहणाइ अवक्खित्ते कोहाइ अणाउले तदुक्उत्ते। संदिसहत्ति अणुन काऊण विदिन्नमालोए॥८॥ भा० नर्स्ट बलं चलं भासं मूर्य तह ढड्ढरं च कजेजा। आ. लोएन सुविहिओ हत्थं मत्तं च वाचारं । करपायभमुहिसीसऽच्छिउट्ठमाईहिं नहि नाम । वलणं हत्यसरीरे चलणं काए य भावे य॥९॥ भा०ागारत्थियभासाओ य वजए मूय ढड्ढरं च सरं। आलोए वावारं संसट्ठियरे व करमत्ते ॥२७०॥ भा०। एयहोसविमुकं गुरुणो गुरुसम्मयस्स बाऽऽलोए। जं जह गहियं तु भवे पढमाओ जा भवे चरिमा ॥८॥ काले य पहुप्पते उच्चा(वा)ओ वावि ओहमालोए। वेला गिलाणगस्स व अइच्छइ गुरू व उच्चाओ॥९॥ पुरकम्म पच्छकम्मे अप्पेऽसुद्धे य ओहमालोए। तुरियकरणंमि जं से न मुज्झई तत्तिअं कहए ॥५२०॥ आलोइना सर्व सीसं सपडिग्गहं पमजित्ता। उड्ढमहो तिरियंमी पडिलेहे सवओ सवं ॥१॥ उड्ड पुष्फफलाई तिरियं मजारिसाणडिंभाई । खीलगदारुगआवडणरक्वणट्ठा अहो पेहे ॥२७१॥ भाग ओणमओ पवडेजा सिरओ पाणा सिरं पमज्जेजा। एमेव उग्गहमिवि मा संकुडणे तसविणासो ॥२॥ काउं पडिग्गहं करयलंमि अदं च ओणमित्ताणं। भत्तं वा पाणं वा पडिदंसिजा गुरुसगासे ॥३॥ ताहे य दुरालोइय भत्तपाण एसणमणेसणाए उ। अठुस्सासे अहवा अणुग्गहादी उमाएजा ॥२७४॥ भा०। विणएण पट्टवित्ता सज्झायं कुणइ तो मुहुनागं । पुत्र भणिया य दोसा परिस्समाई जढा एवं ॥२॥ दुविहो य होइ साहू मंडलिउबजीवओ य इयरो य । मंडलिमुवजीवंतो अच्छड़ जा पिंडिया सवे ॥३॥ इयरोवि गुरुसगासं गंतॄण भणइ संदिसह भंते !। पाहुणगखवगअतरंतवालवुड्ढाण सेहाणं ॥४॥ दिण्णे गुरूहि तेसिं सेर्स भुंजेज गुरुअणुनायं। गुरुणा संदिट्ठो वा दाउं सेसं तओ मुंजे ॥५॥ इच्छिजन इच्छिज व तहविय पयओ निमंतए साह। परिणामविसुदीए अनिजरा होअगहिएवि ॥६॥भरहेखयविदेहे पनरससुवि कम्मभूमिगा साहू। एकमि हीलियमी सके ते हीलिया हुँति ॥ ७॥ भरहेरवयविदेहे पारसमुचि कम्मभूमिगा साहू। एकमि पूइयंमी सचे ते पूइया हुंति ॥८॥ अह को पुणाइ नियमो एकमिवि हीलियंमि ते सके। होति अवमाणिया पूइए य संपूइया सो?॥९॥ नार्णव सर्ण वा तवो य तह संजमो य साहुगुणा। एक ससुचि हीलिएसुते हीलिया हुति ॥५३०॥ एमेव पू | उ। थोवं पहुं निवेसं इइ नचा पूयए मइमं ॥१॥ तम्हा जइ एस गुणो एकमिवि पूइयंमि ते सके। भत्तं वा पाणं वा सापयत्तेण दायां ॥२॥ वेयावचं निययं करेह उत्तमगुणे धरिन्ताणं।
सचं किल, पडिवाई वेयावचं अपढिवाई ॥३॥ पडिभग्गस्स मयस्स व नासइ चरणं सुयं अगुणणाए। नहु वेयावञ्चचियं सुहोदयं नासए कम्मं ॥४॥ लाभेण जोजयंतो जइणो लाभतराइयं हणइ । कुणमाणो य समाहिं सबसमाहिं लहइ साहू ॥५॥ भरहो बाहुबलीविय दसारकुलनंदणो य वसुदेवो । वेयावचाहरणा तम्हा पडितप्पह जईणं ॥ ६॥ होजन व होज लंभो फासुगआहारउवहिमाईणं। लंभो य निजराए नियमेण अओ उ कायचं ॥ ७॥ वेयावचे अम्भुट्ठियस्स सद्धाएँ काउकामस्स। लाभो चेव नवस्सिस्स होइ अहीणमणसम्स ॥८॥ एसा गहणेसणविही कहिया भे धीरपुरिसपणत्ता। पासेसणंपि इत्तो बुच्छं अप्पक्खरमहत्यं ॥९॥ दवे भावे घासेसणा उ दमि मच्छाहरणं। गलमंसुंडगभक्खण गलस्स पुच्छेण
मि पहीणे सायंतं मच्छियं भणइ मच्छो। किं झायसि तं एवं? सुण ताव जहा अहिरिओऽसि ॥१॥ परियं व कप्पियं वा आहरणं विहमेव नाय। अत्यस्स साहणट्ठा इंधणमिव ओयणट्ठाए ॥२॥ तिबलागमुहा मुक्को, तिक्खुत्तो वलयामुहे। तिसत्तक्खुत्तो जालेणं, सयं छिन्नोदए दहे ॥३॥ एयारिसं ममं सत्त, सदं घटिअघट्टणं। इच्छसि गलेणं घेर्नु, अहो ते अहिरीयया ॥ ४॥ अह होइ भावघासेसणा उ अप्पाणमप्पणा चेव । साहू मुंजिउकामो अणुसासइ निजरवाए ॥५॥ पायालीसेसणसंकइंमि गहणंमि जीव ! नहु उलिओ। एण्हि जहन छलिजसि भुंजतो रागदोसेहिं ॥६॥ जह अभंगणलेबो सगडक्खवणाण जुनिओ होति। इय संजमभरवहणट्ठयाएं साहुण आहारो ॥ ७॥ उबजीवि अणवजीवी मंडलियं पश्यन्निओ साहामंडलिअसमुरिसगाण ताण इणमो विहिं बुच्छदाआगाढजोगवाही निजूढऽत्तट्ठियायपाहणगा। सेहा सपायडिना पाला देवम दुविहो खलु आलोगो दो भावे य दधि दीवाई। सत्तविहो पुण भावे आलोगं तं परिकहेहं ॥१५॥ ठाण दिसि पगासणया भायण पक्खेवणे य गुरु भावे । सनविहो आलोगो सयावि जयणा सुविहियाणं ॥१॥ निक्खमपवेसमंडलिसागारियठाण परिहिय टाइ। मा एकासणभंगो अहिगरणं अंतरायं वा ॥२७५॥ भा०। परसिपरंमुहपट्टिपक्स एया दिसा विवजेना। ईसाणम्ोईय व ठाएज गुरुस्स गुणकलिओ ॥६॥ मच्छियकंटट्ठाईण जाणणट्ठा पगास जणया। अट्ठियलम्गणदोसा वग्गुलिदोसा जढा एवं ॥ ७॥ जे चेत्र अंधयारे दोसा ने चेव संक
डमुहंमि। परिसाडी बहुलेवाडणं च तम्हा पगासमुहे ॥८॥ कुकुडिबंडगमित्तं अविगियवयणो उ पक्खिये कवलं । अइखडकारगं वा जं च अणालोइयं हुजा ॥९॥ (३०९) | १२३६ ओपनियुतिः -
मुनि दीपरनसागर
कीRA

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