Book Title: Aagam Manjusha 26 Painnagsuttam Mool 03 Mahapachakhan Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ कृपा इमेण इकेणवि पएणं // 3 // मम मंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य। तेसिं सरणोवगओ सावजं वोसिरामिति // 4 // अरहंता मंगलं मज्झ, अरहता मज्झ देवया। अरहते कित्तइत्ताणं, बोसिरामित्ति पावगं // 5 // सिद्धा य मंगलं मझ, सिद्धा य मज्झ देवया। सिद्धे य कित्तः॥६॥आयरिया मंगलं मज्झ, आयरिया मन्झ देवया। आयरिए कित्त० // 7 // उज्झाया मंगलं मज्म, उज्झाया मज्झ देवया। उज्झाए कित्तः // 8 // साहू य मंगलं मझ, साहू य मज्म देवया। साहू य किनः // 9 // सिद्धे उपसंपण्णो अरहते केवलिनि भावेणं। इत्तो एगयरेणवि पएण आराहओ होइ // 120 // समुइण्णवयणओ पुण समणो हियएण किंपि चिंतिजा। आलवणाई काई काऊण मुणी दुहं सहइ ?, // 1 // वेयणासु उइचासु, किं मे सत्तं निवेयए। किं वा आलंबणं किचा, तं दुक्खमहियासए?, // 2 // अणुत्तरेसु नरएसु, वेयणाओ अणुतरा / पमाए वट्टमाणेणं, मए पना अणंतसो // 3 // मए कयं इमं कम्म, समा. सन्ज अबोहियं / पोराणगं इमं कम्म, मए पत्तं अणंतसो // 4 // ताहिं दुक्खविवागाहिं, उवचिण्णाहिं तहिं / न य जीवो अजीवो उ, कयपुत्रो उ चिंनए // 5 // अन्भुजय विहारं इन्धं जिणएसियं विउपसत्यं / नाउं महापुरिससेवियं च अब्भुज्जयं मरणं // 6 // जह पच्छिमंमि काले पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारं। पच्छा निच्छयपत्थं उवेमि अभुज्जयं मरणं // 7 // बनी. समंडियाहिं कडजोगी जोगसंगहबलेणं / उजमिऊण य वारसविहेण तवणेहपाणेणं // 8 // संसाररंगमज्झे घिइबलववसायबद्धकच्छाओ। हंतॄण मोहमाई हराहि आराहणपड़ागं॥९॥ पोराणगं च कम्म खवेइ अन्नं नवं च न चिणाइ / कम्मकलंकलवालिं (प० लिवत्ति) छिंदइ संधारमारूढो // 130 // आराहणोवउनो सम्म काऊण सुविहिओ कालं। उक्कोसं निन्नि भवे गंतूण लभिज निघाणं // 1 // धीरपुरिसपन्नतं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं। ओइण्णो हु सि रंग हरसु पड़ायं अविग्घेणं // 2 // धीर ! पडागाहरणं करेह जह तंमि देसकालंमि। मुन्न. स्थमणुगुणतो घिइनिश्चलबद्धकच्छाओ॥३॥ चत्तारि कसाए तिन्नि गारखे पंच इंदियम्गामे। हंता परीसहच{ हराहि आराहणपड़ागं // 4 // माऽऽया ! हु व चिंतिज्जा जीवामि चिरं मरामि व लहुंति। जइ इच्छसि तरिउंजे संसारमहोअहिमपारं // 5 // जइ इच्छसि नित्थरिउं सवेसिं चेव पावकम्माण। जिणबयणनाणदसणचरित्तभावुजुओ जग्ग॥६॥ दसणनाणच. रित्तं तवे य आराहणा चउक्खंधा। सा चेव होइ तिविहा उक्कोसा मज्झिम जहन्ना ॥७॥आराहेऊण विऊ उक्कोसाराहणं चउक्खंध। कम्मरयविप्पमुक्को तेणेव भवेण सिज्झिज्जा // 8 // आराहेऊण विऊ जहन्नमाराहणं चउक्खधं / सत्तट्ठभवम्गहणं परिणामेऊण सिज्झिज्जा // 9 // सम्मं मे सबभूएसु, बेरै मज्झ न केणई। खामेमि सवजीवे, खमामिऽहं सवजीवाणं // 14 // धीरेणवि मरियावं काउरिसेणवि अवस्स मरियव्वं / दुण्हंपि य मरणाणं वरं खुधीरत्तणे मरिउं // 1 // एवं पनक्खाणं अणुपालेऊण सुविहिओ सम्मं। वेमाणिओ व देवो हविज अहवावि सिज्झिजा॥१४२॥२७५॥ इति महापञ्चकखाणपइण्णं 3 // 011-0- श्रीभक्तपरिज्ञापकीर्णकम्-नमिऊण महाइसयं महाणुभावं मुर्णि महावीरें। भणिमो भत्तपPage Navigation
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