Book Title: Aagam Manjusha 26 Painnagsuttam Mool 03 Mahapachakhan
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003926/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः On Line – आगममंजूषा [२६] महापच्चक्खाणं * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर (IM.Com, M.Ed., Ph.D. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत १९९८, ई. स. 1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागररिजी म.सा. ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स. 2012, विक्रम संवत २०६८, वीर संवत -२५३८ में वो ही आगम- मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा " नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। मूल आगम- मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * * है। [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४० ) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ निर्युक्ति भी सामिल की गई है| [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम - ३८ ) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है | [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया [४] “ओघनिर्युक्ति”-(आगम-४१ ) के वैकल्पिक आगम “पिंडनिर्युक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है| Online-आगममंजूषा : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp. DholeshwarMandir, POST :- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com मुनि दीपरत्नसागर -मुनि दीपरत्नसागर Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आतुरपत्याख्यानम् । आ316→ श्रीमहापत्याख्यानप्रकीर्णकम् एस करेमि पणामं विस्थयराणं अणुत्तरगईणं । सबेसिंच जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च॥१॥१३४॥ सबकखप्पही. णाणं सिद्धाणं अरहओ नमो। सरहे जिणपचत्तं पबक्खामि य पावगं ॥२॥ किंचिवि दुबरियं तमहं निंदामि सबमाचेणं । सामाइयं च विविहं करेमि सर्व निरागारं ॥३॥ बाहिरभं. ९१० महापस्याख्यान, 18/-१-२ मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAPAL तरं उवहि, सरीरादि सभोअणं। मणसा वयकाएणं, सवं तिविहेण बोसिरे ॥४॥रागधं पओसं च, हरिस दीणभावयं । उस्सुअत्तं भयं सोगं, रइमरइं च वोसिरे ॥५॥ रोसेण पडिनिवेसेण अकयण्णुयाए तहेवऽसज्झाए। जो मे किंचिवि मणिओ तमहं (प्र० विविहं)तिविहेण खामेमि ॥६॥ खामेमि सबजीवे, सवे जीवा खमंतु मे । आसाओ (आसवे) बोसिरित्ताणं, समाहिं पडिसंधए॥७॥ निंदामि निंदणिज्जं गरिहामि य जं च मे गरहणिज । आलोएमि य सवं जिणेहिं जं जं च पडिसिद्धं (प्र० कुटुं)॥८॥ उवही सरीरगं चेब, आहारं च चउविहं। ममत्तं सवदधेसु, परिजाणामि केवलं ॥९॥ ममत्तं परिजाणामि, निम्ममत्ते उवढिओ। आलंबणं च मे आया, अवसेसं च वोसिरे ॥१०॥ आया मे जं नाणे आया मे दंसणे चरिते य। आया पञ्चक्खाणे आया मे संजमे जोगे॥१॥ मूलगुणे उत्तरगुणे जे मे नाराहिया पमाएणं । ते सवे निंदामि पडिकमे आगमिस्साणं ॥२॥ इकोऽहं नस्थि मे कोई, न चाहमवि कस्सई । एवं अदीणमणसो, अप्पाणमणुसासए॥३॥ इक्को उप्पज्जए जीवो, इको चेव विक्जई । इक्कस्स होइ मरणं, इक्को सिझइ नीरओ॥४॥एको करेइ कम्मं फलमवि तस्सिकओ समणुहवइ । इको जायइ मरइ परलोअं इकओ जाइ ॥५॥ इको मे सासओ अप्पा, नाणदसणर्सजुओ (प्र० लक्षणो)। सेसा मे बाहिरा भावा, सधे संजोगलक्खणा ॥६॥ संजोगमूला जीवेण, पत्ता दुक्खपरंपरा । तम्हा संजोगसंबंध, सर्व तिबिहेण वोसिरे ॥ ७॥ अस्संजममण्णार्ण मिच्छत्तं सबओऽवि य ममतं । जीवेसु अजीवेसु य तं निंदे तं च गरिहामि ॥८॥मि छत्तं परिजाणामि सावं असंजमं अलीयं च । सव्वत्तोय ममत्तं चयामि सवं खमावेमि (म० च खामेमि)॥९॥ जे में जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु । तं तह आलोएमी उवडिओ सव्वभावेणं ॥२०॥ उप्पन्नाणुप्पना माया अणुमम्गओ निहंतवा। आलोयणनिंदणगरिहणाहिं न पुणत्ति या बीयं ॥१॥ जह बालो जंपन्तो कजमकजं च उजुयं भणइ।तं तह आलोइजा मायामयविप्पमुक्को उ॥२॥ सोही उजुयभूयस्स, धम्मो सुदस्स चिट्ठह। निवाणं परमं जाइ, घयसित्तुध पावए॥३॥नहु सिज्मई ससल्लोजह भणियं सासणे धुयरयाण। उद्धरियसवसाडो सिज्झइ जीवो धुअकिलेसो॥४॥ सुबहुंपि भावसाई आलोएऊण (जे आलोयंति) गुरुसगासंमि। निस्सल्ला संधारगमुर्विति आराहगा हुंति ॥५॥ अप्पपि भावसई जे मे। धंतपि सुयसमिद्धानहु ते आराहगा हुंति ॥६॥ नवितं सत्यं च विसं च दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो। जतं व दुप्पउत्तं सप्पुष पमायओ कुद्धो॥७॥जं कुणइ भावसाई अणदियं उत्तमट्टकालंमि । दाभवोहीयत्तं अणंतसंसारियर्त च ॥८॥ तो उदरंति गारवरहिया मुलं पुणब्भवलयाणं । मिच्छादसणसलु मायासाळ नियाणं च ॥९॥ वोऽवि मणूसो आलोइय निंदिओ (निन्दिउ) गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरुव भारवहो ॥३०॥ तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविऊ गुरू उवइसंति । तं तह अणुसरियर्व अणवत्यपसंगभीएण ॥१॥ दसदोसविप्पमुकं तम्हा सब्बं अगृहमाणेणं। जंकिंपि कयमकर्जतं जहवतं कहेयव्वं ॥२॥ सव्वं पाणारंभ पञ्चक्खामि य अलियवयर्ण च। सव्वमदिन्नादाणं अभपरिग्गह चेव ॥३॥ सर्वपि असणपाणं चउब्विहं जो य बाहिरो उबही। अम्भितरं च उवहिं सब्बं तिविहेण बोसिरे ॥४॥ कंतारे दुभिक्खे आयंके व महई समुप्पथे। जं पालियं न भगं तं जाणसु पालणासुद्धं ॥५॥ रागेण व दोसेण व परिणामेण व न दूसियं जंतु। तं खलु पञ्चकखाणं भावविसुद्ध मुणेयकं ॥६॥ पीयं थणअच्छीरं सागरसलिलाउ बहुतरं हुज्जा। संसारंमि अणंते माईणं अन्नमन्नाणं ॥७॥ बहुसोऽवि मए रुणं पुणो २ तासु २ जाईसु। नयणोदयंपि जाणसु बहुययरं सागरजलाओ॥८॥ नत्यि किर सो पएसो लोए वालग्गकोडिमित्तोऽचि । संसारे संसरंतो जत्थ न जाओ मओ वावि ॥९॥ चुलसीई किल लोए जोणीपमुहाई सयसहस्साई। इक्किकमि य इत्तो अणंतखुत्तो समुप्पन्नो॥४०॥ उड्ढमहे तिरियमि यमयाई बहुयाई बालमरणाई। तो ताई संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥१॥ माया मित्ति पिया मे भाया भगिणी य पुत्त धूया य। एयाई असंभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥२॥ मायापिइबंधूहिं संसारत्येहिं पूरिओ लोगो। बहुजोणिवासिएहिं न य ते ताणं च सरणं च ॥३॥ इको करेइ कम्मं इक्को अणुहवह दुक्कयविवागं। इक्को संसरह जिओ जरमरणचउम्गईगविलं॥४॥ उवेयणर्य जम्मणमरणं नरएस वेयणाओवा। एयाई संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥५॥ उल्वेयणर्य जम्मणमरणं तिरिएसु वेयणाओवा। एयाई०॥६॥ उज्वेयणर्य. मणुएम०। एयाई० ॥७॥ उज्वेयणयं० चवणं च देवलोगाओ। एयाई०॥८॥ इक्क पंडियमरणं छिंदइ जाईसयाई बहुआई। तं मरणं मरियर्व जेण मओ सम्मओ होइ ॥९॥ कइया णुतं सुमरणं पंडियमरणं जिणेहिं पण्णत्तं। सुदो उदियसाडो पाओवगओ मरीहामि? ॥५०॥ भवसंसारे सो चउबिहा पुग्गला मए बदा। परिणामपसंगणं अट्ठविहे कम्मसंघाए॥१॥ संसारचकवाले सच्चे ते पुग्गला मए बहुसो। आहारिया य परिणामिया य न यऽहं गओ तित्तिं ॥२॥ आहारनिमित्तेणं अहयं सब्बेसु नरयलोएसु। उववष्णोमि य पहुसो सम्वासु य मिच्छजाईसु ॥३॥ आहारनिमित्तेणं मच्छा गच्छति दारुणे नरए। सचित्तो आहारो न खमो मणसावि पत्थेउं ॥४॥ तणकद्वेण व अम्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहि। न इमो जीवो Eसको तिप्पेउं कामभोगेहिं ॥५॥ तणकट्टेण वान इमो जीवो० अत्थसारेणं ॥६॥ तणकटेणान इमो० मोअणविहीए ॥७॥ वलयामुहसामाणो दुप्पारो व णरओ अपरिमिजो। न का ९११ महापत्याख्यान -२४-७ मुनि दीपरत्नसागर | Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इमो जीवो सको तप्पेउं गंधमलेहिं ॥ ८॥ अवियद्यो(अवितत्तो)ऽयं जीवो अईयकालम्मि आगमिस्साए । सहाण य रूवाण य गंधाण रसाण फासाणं ॥९॥ कप्पतस्संभवेसुं देवुत्तरकुरुवंसप्पसएसु। उपचाएण य तित्तो न य नरविजाहस्सुरेसुं ॥६०॥ खइएण व पीएण व न य एसो ताइओ हवइ अप्पा। जह दुग्गई न वचाइ तो नूर्ण ताइओ होइ ॥१॥ देविंदचकवहितणाई रजाई उत्तमा भागा। पत्ता अर्णतसुत्ता न यह तित्ति गओताह॥२॥खारदर्गच्छरसमसाऊसुमहादहासुबहुसावि। उववण्णा ण यतण्हा छिनामे सीयलजलेणं॥३॥ तिविहेण य सुहमउलं तम्हा कामरइविसयमुक्खाणं । बहुसो सुहमणुभ्यं न य सुहतण्डा परिच्छिपणा ॥४॥ जा काइ पत्थणाओ कया मए रागदोसवसयेणापडिबंधेण बद्दविड़ा तं निंदे तंच गरिहामि ॥५॥ हतूण मोहजालं छित्तूण य अट्ठकम्मसंकलियं । जम्मणमरणऽरहट्ट मित्तूण भवा विमुचिहिसि ॥६॥ पंच य महब्बयाई तिविहंतिविहेण चारहेऊण । मणवयणकायगुत्तो सजो मरणं पडिच्छिज्जा ॥७॥ कोहं माणं माया लोहं पिजं तहेब दोर्स चा चइऊण अप्पमत्तो रक्खामि महबए पंच॥८॥ कलह अम्भक्खाणं पेसुण्णंपि य परस्स परिवार्य। परिवजंतो गुत्तो रक्खामि ॥९॥ पंचिंदियसंवरणं पंचेच निमिऊण कामगुणे। अचासायणभीओ रक्खामि०॥ ७० ॥ किण्हानीलाकाऊलेसा-माणाई अहरुदाई। परिवर्जतो गुत्तो. ॥१॥ तेऊपम्हासुका लेसा झाणाई धम्मसुकाई। उवसंपन्नो जुत्तो ॥२॥ मणसा मणसच्चविऊ वायासच्चेण करणसच्चेण। तिविहेणवि सबविऊ रक्खामि० ॥३॥ सत्तभयविप्पमुक्को चत्तारि निरंभिऊण य कसाए। अट्ठमयवाणजढो रक्खामि ॥४॥ गुत्तीओ समिई भावणाउ नाणं च दंसणं चेव । उपसंपनो जुत्तो० ॥५॥ एवं तिदंडविरओ तिकरणसुदो तिसञ्जनिस्साडो। तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि ॥ ६॥ संग परिजाणामि सालं विविहेण उद्धरेऊणं । गुत्तीओ समिईओ मझ ताणं च सरणं च ॥७॥जह खुहियं चकवाले पोयं रयणभरियं समुदं मि। निजामगा धरिती कयकरणा बुदिसंपण्णा ॥८॥ तवपोयं गुणभरियं परीसहुम्मीहिं खुहिउमारदं । तह आराहिति विऊ उवएसवलंवगा धीरा ॥९॥ जइ ताव ते सुपुरिसा आयारोवियभरा निरवयक्खा । पदभारकंदरगया साहंती अप्पणो अर्दु ॥८०॥ जइ ताव ते सुपरिसा गिरिकंदरकडगविसमदुग्गेसु।चिइधणियपदकच्छा साहिंती अप्पणो अटुं॥१॥ किं पुण अणगारसहायगेण अण्णुण्णसंगहबलेणं। परलोए णहि सको साहेउं अप्पणो अहूँ ? ॥२॥ जिणवयणमप्पमेयं महुरं कण्णाहुई सुर्णतेणं । सको हु साहुमज्झे साहेउँ अप्पणो अर्द्ध ॥३॥धीरपुरिसपण्णत्तं सप्पुरिसनिसेवियं परमपोरं। धन्ना सिलायलगया साहिती अप्पणो अई ॥४॥ बाहिति ईदियाई पुष्यमकारियपहण्णचारीण। अकयपरिकम्मकीचा मरणे सुहसंX गता(प० पायाम ॥५॥ पुख्यमकारियजोगो समाहिकामो य मरणकालंमि। न भवइ परीसहसहो विसयसहसमुहमओ अप्पा ॥६॥ पुखि कारियजोगो समाहिकामो यमरणकालंमि। स भवइ परीसहसहो विसयमहनिवारिओ अप्पा ॥ आपुरि कारियजोगो अनियाणो ईहिऊण मइपुवं । ताहे मलियकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छिज्जा ॥८॥ पावीण पावाणं कम्माण अप्पणो सकम्माण। सका पलाइउं जे तवेण सम्म पउत्तेणं ॥९॥ इकं पंडियमरणं पडिवज्जिय सुपुरिसो असंभंतो। खिप्पं सो मरणाणं काही अंतं अणंताणं ॥९०॥ किं तं पंडियमरण ? काणि व आर्लवणाणि भणियाणि ?। एयाई नाऊणं किं आयरिया पसंसंति? ॥१॥ अणसणपाओवगमं आलंबणझाणभावणाओ अ। एयाई नाऊणं पंढियमरणं पसंसति ॥२॥ इंदियमुहसाउलओ घोरपरीसहपराइयपरजझो। अकयपरिकम्मकीचो मुज्झइ आराहणाकाले ॥३॥ लज्जाइ गारवेण य बहुसुयमएण वावि दुचरियं। जे न कहंति गुरुणं न हु ते आराहगा हुँति ॥४॥ मुज्झइ दुकरकारी जाणइ मम्गति पावए कित्ति। अणिगृहितो जिंदइ तम्हा आराहणा सेया ॥५॥ नवि कारणं तणमओ संथारो नवि य फासुया भूमी। अप्पा खलु संथारो होइ चिसुद्धं मणो जस्स ॥६॥ जिणवयणअणुगया मे होउ सहा झाणजोगमाडीणा। जह तंमि देसकाले अमूढसनो चयइ देहं ॥७॥ जाहे होइ पमत्तो जिणवयणरहिओ अणाउत्तो। ताहे इंदियचोरा करिति तवसंजमविस्वं ॥८॥ जिणवयणमणुगयमई जं वेलं होइ संवरपविट्ठो। अम्गीव वाउसहिओ समूलडाल डहइ कम्मं ॥९॥जह डहइबाउसहिओ अम्गी रुक्खें. विहरियवणखंडे। तह पुरिसकारसहिओ नाणी कम्मं वयं णेई ॥१०॥ जं अन्नाणी कम्मं खवेइ बहुआहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥१॥न हु मरगंमि उवणे सक्को चारसविहो सुयक्वंधो । सब्यो अणुचिंतेउं धणियपि समत्यचित्तेणं ॥२॥ इकमिबि जंमि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए। सो तेण मोहजालं छिंदइ अज्झप्पओगेणं ॥३॥ इमिविका तस्स होइ नाणं जेण विरागत्तणमवेद ॥४॥इकमिविलापबइ नरो अभिक्खं तं मरणं तेण मरियपं ॥५॥ जेण विरागो जायइ तं तं समायरेण कायचं । मुबह हु संवेगी अणंतओ होअसंवेगी॥ ६॥ धम्मं जिणपन्नत्तं सम्ममिणं सहहामि विविहेणं । तसथावरभूअहियं पंथ निशाणनगरस्स ॥ ७॥ समणो मित्तिय पढम बीयं सवत्थ संजओ मित्ति। सवं च बोसिरामि जिणेहिं जं जं च पडिकुटुं ॥ ८॥ उपही सरीरगं चेव, आहारं च चउविहं । मणसावयकाएणं, बोसिरामित्ति भावओ ॥९॥ मणसा अचिंतणिजं सर्व भासाइ अभासणिज च। काएण अकरणिज सर्च तिविहेण पोसिरे ॥११०॥ अस्संजमत्तोगसणं (प्र० अस्संजमे चिरमणं) उवही विवेगकरणं उक्समो (य)। अप्पडिस्वजोगविरओ खंती मुत्ती विवेगो य॥१॥ एवं पचक्लाणं आउरजण आवईसु भावेण। अण्णयरं पडिवण्णो जंपतो पावइ समाहिं ॥२॥ एवंसि निमित्तंमी पचक्खाऊण जइ करे कालं। तो पचखाइयव्वं (२२८) ९१२ महाप्रत्याख्यान, आहा-26-११२ मुनि दीपरत्नसागर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृपा इमेण इकेणवि पएणं // 3 // मम मंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य। तेसिं सरणोवगओ सावजं वोसिरामिति // 4 // अरहंता मंगलं मज्झ, अरहता मज्झ देवया। अरहते कित्तइत्ताणं, बोसिरामित्ति पावगं // 5 // सिद्धा य मंगलं मझ, सिद्धा य मज्झ देवया। सिद्धे य कित्तः॥६॥आयरिया मंगलं मज्झ, आयरिया मन्झ देवया। आयरिए कित्त० // 7 // उज्झाया मंगलं मज्म, उज्झाया मज्झ देवया। उज्झाए कित्तः // 8 // साहू य मंगलं मझ, साहू य मज्म देवया। साहू य किनः // 9 // सिद्धे उपसंपण्णो अरहते केवलिनि भावेणं। इत्तो एगयरेणवि पएण आराहओ होइ // 120 // समुइण्णवयणओ पुण समणो हियएण किंपि चिंतिजा। आलवणाई काई काऊण मुणी दुहं सहइ ?, // 1 // वेयणासु उइचासु, किं मे सत्तं निवेयए। किं वा आलंबणं किचा, तं दुक्खमहियासए?, // 2 // अणुत्तरेसु नरएसु, वेयणाओ अणुतरा / पमाए वट्टमाणेणं, मए पना अणंतसो // 3 // मए कयं इमं कम्म, समा. सन्ज अबोहियं / पोराणगं इमं कम्म, मए पत्तं अणंतसो // 4 // ताहिं दुक्खविवागाहिं, उवचिण्णाहिं तहिं / न य जीवो अजीवो उ, कयपुत्रो उ चिंनए // 5 // अन्भुजय विहारं इन्धं जिणएसियं विउपसत्यं / नाउं महापुरिससेवियं च अब्भुज्जयं मरणं // 6 // जह पच्छिमंमि काले पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारं। पच्छा निच्छयपत्थं उवेमि अभुज्जयं मरणं // 7 // बनी. समंडियाहिं कडजोगी जोगसंगहबलेणं / उजमिऊण य वारसविहेण तवणेहपाणेणं // 8 // संसाररंगमज्झे घिइबलववसायबद्धकच्छाओ। हंतॄण मोहमाई हराहि आराहणपड़ागं॥९॥ पोराणगं च कम्म खवेइ अन्नं नवं च न चिणाइ / कम्मकलंकलवालिं (प० लिवत्ति) छिंदइ संधारमारूढो // 130 // आराहणोवउनो सम्म काऊण सुविहिओ कालं। उक्कोसं निन्नि भवे गंतूण लभिज निघाणं // 1 // धीरपुरिसपन्नतं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं। ओइण्णो हु सि रंग हरसु पड़ायं अविग्घेणं // 2 // धीर ! पडागाहरणं करेह जह तंमि देसकालंमि। मुन्न. स्थमणुगुणतो घिइनिश्चलबद्धकच्छाओ॥३॥ चत्तारि कसाए तिन्नि गारखे पंच इंदियम्गामे। हंता परीसहच{ हराहि आराहणपड़ागं // 4 // माऽऽया ! हु व चिंतिज्जा जीवामि चिरं मरामि व लहुंति। जइ इच्छसि तरिउंजे संसारमहोअहिमपारं // 5 // जइ इच्छसि नित्थरिउं सवेसिं चेव पावकम्माण। जिणबयणनाणदसणचरित्तभावुजुओ जग्ग॥६॥ दसणनाणच. रित्तं तवे य आराहणा चउक्खंधा। सा चेव होइ तिविहा उक्कोसा मज्झिम जहन्ना ॥७॥आराहेऊण विऊ उक्कोसाराहणं चउक्खंध। कम्मरयविप्पमुक्को तेणेव भवेण सिज्झिज्जा // 8 // आराहेऊण विऊ जहन्नमाराहणं चउक्खधं / सत्तट्ठभवम्गहणं परिणामेऊण सिज्झिज्जा // 9 // सम्मं मे सबभूएसु, बेरै मज्झ न केणई। खामेमि सवजीवे, खमामिऽहं सवजीवाणं // 14 // धीरेणवि मरियावं काउरिसेणवि अवस्स मरियव्वं / दुण्हंपि य मरणाणं वरं खुधीरत्तणे मरिउं // 1 // एवं पनक्खाणं अणुपालेऊण सुविहिओ सम्मं। वेमाणिओ व देवो हविज अहवावि सिज्झिजा॥१४२॥२७५॥ इति महापञ्चकखाणपइण्णं 3 // 011-0- श्रीभक्तपरिज्ञापकीर्णकम्-नमिऊण महाइसयं महाणुभावं मुर्णि महावीरें। भणिमो भत्तप