Book Title: Aagam 42 DASHVAIKAALIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (४२)
“दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+भाष्य +वृत्ति:) अध्ययनं [-], उद्देशक [-], मूलं [-], नियुक्ति: [१], भाष्यं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.....आगमसूत्र-[४२], मूल सूत्र-[३] “दशवैकालिक” मूलं एवं हरिभद्रसूरि-विरचिता वृत्ति:
प्रत
विधिद्वा
सूत्राक
[-]
दीप अनुक्रम
दशवैकादविणयगहणसंजुत्ता । धणियं तत्थ पवित्ती खीरस्सव चरिमभंगमि ॥७॥" 'केण सि केनानुयोगः कर्त्तव्य इति | अनुयोगहारि-वृत्ति वक्तव्यं, तत्र य इत्थंभूत आचार्यस्तेन कर्तव्यः, तद्यथा-"देसकुलजाइरूवी संघयणधिइजुओ अणासंसी अविकत्थणो अमाई थिरपरिवाडी गहिययको ॥१॥ जियपरिसो जियनिदो मज्झत्थो देसकालभावन्नू । आ
राणि ११ सन्नलद्धपइभो णाणाविहदेसभासन्नू ॥२॥ पंचविहे आयारे जुत्तो सुत्तत्थतदुभयविहिण्णू । आहरणहेउकारणणयनिउणो गाहणाकुसलो ॥ ३ ॥ ससमयपरसमयविऊ गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो । गुणसयकलिओ जग्गो पचयणसारं परिकहेउं ॥४॥” आसामर्थः कल्पादवसेयः, प्राथमिकदशकालिकव्याख्याने तु लेशत उच्यते-आर्यदेशोत्पन्नः सुखावबोधवाक्यो भवतीति देशग्रहणं, पैतृकं कुलं विशिष्टकुलोद्भवो यथोत्क्षिप्तभारवहने न श्राम्यति, मातृकी जातिः तत्सम्पन्नो विनयान्वितो भवति, रूपवानादेयवचनो भवति, आकृतौ च गुणा वसन्ति, संहननधृतियुक्तो व्याख्यानतपोऽनुष्ठानादिषु न खेदं याति, अनाशंसी न श्रोतृभ्यो वस्त्राद्याकासति, अविकत्थनो बहुभाषी न भवति, अमायी न शाव्येन शिष्यान वायति, स्थिरपरिपाटी स्थिरपरि
चितग्रन्धस्य सूत्रं न गलति, गृहीतवाक्योऽप्रतिघातवचनो भवति, जितपरिषत् परप्रवादिक्षोभ्यो न भवति, द्रजितनिद्रोऽप्रमत्तस्वादू व्याख्यानरतिर्भवति प्रकामनिकामशायिनश्च शिष्याँश्चोदयति, मध्यस्थः संवादको
भवति, देशकालभावज्ञो देशादिगुणानवबुद्ध्याप्रतिबद्धो विहरति देशनां च करोति, आसन्नलब्धप्रतिभो
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