Book Title: Aagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१८)
"जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) वक्षस्कार [-].---...............--
------ मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति:
प्रत
सूत्राक
या चिः
दीप
श्रीजम्बू- अथवा 'शास्तुः प्रामाण्ये शास्त्रप्रामाण्य मिलि आधसम्बन्धस्यैव प्रामाण्यमहार्थमपरसम्बन्धनिरूपणं, बहि विरितपरम-18 अनुयोग
। तस्याः सत्त्वानुग्रहैकमवृत्तिमन्तो भगवन्तो जातूपेयानुपयोगि भाषन्ते, भगवचाभलादिति, अथवा योगा-अवसर, ततः फलादि. न्तिचन्द्री
प्रस्तुतोपाङ्गस दाने कोऽवसर इति !, उच्यते, उपाङ्गस्याङ्गार्थानुवादकतयाऽङ्गस्य सामीप्येन वर्चमानाब एवैतदीयानस्याबसरः स एवास्थापीति, तत्रावसरसूचिका इमा गाथा:-"तिवरिसपरियायस्स र भाचारपकप्पनाममजावणं । किसस्स य सम्म सूअगडं नाम अंगति ॥१॥दसकष्पव्यवहारा संवच्छरपणगदिक्खियस्लेव । वाणं समवाजोविना अंगे । बहवासस्स ॥२॥दसषासस्स विवाहो एगारसवासगस्स य इमे छ । खुद्धियविमाणमाई अमायणा पंच नावका ESI बारसवासस्स सहा अरुणोवायाइ पंच अज्झयणा । तेरसवासस्त्र तहा उहाणवाया बरोचजसवासास बहा जासीविसभावणं जिणा विति ॥ पण्णरसवासगस्स व विडीविसमावर्ण तहव ॥५॥ सोलसवालाईसु य एत्तरवृद्धि जहसंखं । चारणभावणमहसुविणभावणा तेअगनिसग्गा ॥६॥ एणवीसगस्स विडीवाओ तुषार बनण्यबीसवरिसो अणुवाई सव्वसुत्तस्स ॥७॥" ईति, अन पचवस्तुकसूत्रे दशवर्षपर्यायस्य साधोः भगवन्यमहाडक्सरख
IAT॥३॥ ... ......... १२ व १ व 14.19 whawa
(०० स्था० स० व्या इतिसत्यामाशी. हि चार महास. जो. रहिवाच, सर्वभुतं |
अनुक्रम
အအအအအေး
Jintenmitin
प्रास्ताविक-कथनं, आगम-अन्ज्ञा एवं दीक्षा-पर्याय
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