Book Title: Aagam 17 CHANDRA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
"चन्द्रप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:)
(१७)
प्राभत [१९], ...................-- प्राभूतप्राभत -1, ------------- मूल [१०३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१७], उपांग सूत्र - [६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [१०३]
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समुद्दे ८ अरुणोदे दीये अरुणोदे समुद्दे ९ अरुणवरे दीवे अरुणवरे समुद्दे १० अरुणवरोभासे दीवे अरुणबरोभासे समुद्दे ११ कुंडले दीवे कंडलोदे समुद्दे १२ कुंडलवरे दीवे कुंडलवरोदे समुद१३ कुंडलवरोभासे दीचे कुंडलधरोभासे समुरे १४ सवेसि विक्वंभपरिक्खेवो जोतिसाई पुक्खरोदसागरसरिसाई। ता कुंडलघरोभासणं समुदं रुपए दीवे बढे वलयाकारसंठाणसंठिए २ सघतो जाव चिट्ठति, ता रुपए ण दीवे किं समचकवालजाब णो विसमचकवालसंठिते,तारुपए गंदीवे केवइयं समचकचालविक्खंभेणं केवतिय परिक्खेवणं| आहितेति वदेजा !, ता असंखेजाई जोपणसहस्साई चक्कवालविखंभेण असंखेलाई जोषणसहस्साई परिक्खेवणं आहितेति वदेजा,ता रुपगे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा ३ पुरुछा, तास्यगे णं दीवे असंखे-- जा चंदा पभासु वा ३ जाव असंखेजाओ तारागणकोडिकोडीओ सोभं सोमेंसु वा ३, एवं रुपगे समुदे। रुयगचरे दीवे रुयगवरोदे समुद्दे रुयगवरोभासे दीवे रुयगवरोभासे समुदे, एवं तिपडोयारा तथा जाव सूरे दीवे सूरोदे समुद्दे सूरवरे दीवे सूरवरे समुद्दे सूरबरोभासे दीवे सूरवराभासे समुरे, सवेसि विक्खंभपरिक्वेवजोतिसाई रुयगवरदीवसरिसाई, ता सूरवरोभासोदपणं समुदं देवे णाम दीवे वहे वलयाकारसंठाणसंठिते सघतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव णो विसमचक्कवालसंठिते, ता देवे गं दीवे केवतियं चाकबालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितति बदेजा, असंखेजाई जोयणसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं असंखेजाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा, ता देवे पे दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा
दीप
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अनुक्रम
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