Book Title: Aagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1206
________________ आगम “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [३६], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [३४४-३४७] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक टseemeses [३४४ ३४७]] गाथा: न्धसमुद्काद्विनिर्गतैः प्राणपुद्गलैः-गन्धपुद्गलैः स्पृष्टो-व्याप्तः, काका चेदं सूत्रमधीयते ततःप्रश्नोऽवगम्यते, अथवा प्रश्नाथः सेशब्दस्ततोऽजसा प्रश्नयतीति, गौतम ! आह-हंत ! स्पृष्टो गन्धपुद्गलानां सर्वतोऽगिसर्पणशीलत्वात् , पुनरपि भगवानाह-'छउमत्थे ण'मित्यादि सुगमम् , एष चात्र भावार्थः-यथा ते सकलजम्बूद्वीपव्यापिनो गन्धपुगलाः सूक्ष्मत्वात् न छमस्थानां चक्षुरादीन्द्रियगम्यास्तथा सकललोकव्यापिनो निर्जरापुद्गला अपीति, उपसंहारमाह'एसुहुमाण'ति एतावत्सूक्ष्माः अथ यनिमित्तं केवली समुद्घातमारभते तत्पिपृच्छिपुरिदं प्रश्वसूत्रमाह कम्हा भंते ! केवली समुग्धाय गच्छति ?, गो. केवलिस्स चचारि कम्मंसा अक्खीणा अवेदिया अणिजिण्णा भवति. त०-वेदणिज्जे आउए नामे गोए, सबबहुप्पएसे से वेदणिज्जे कम्मे हवति सबत्थोवे आउए कम्मे हबइ, विसमं समं करेति बंधणेहिं ठितीहि य, विसमसमीकरणयाए बंधणे हिं ठितीहि य एवं खलु केबली समोहणति, एवं खलु समुग्धाय गच्छति, सोविणं भंते ! केवली समोहगंति सबेवि गं भंते ! केवली समुग्यातं गच्छति', गो०! णो इणहे समडे, "जस्साउएण तुल्लाति, बंधणेहिं ठितीहि य । भवोवग्गह कम्माई, समुपातं से ण गच्छति ॥१॥ अगंतूर्ण समुग्धातं, अणंता केवली जिणा । जरमरणविप्पमुका, सिद्धिं वरगतिं गता ॥२॥ (सूत्रं ३४५) कतिसमतिए णं भंते ! आउजीकरणे पं०१, गो! असंखेजसमतिए अंतोमुहुत्तिए आउजीकरणे पं० (सूत्र ३४६) कतिसमतिए णं भंते ! केवलिसमुग्धाए पं०1, गो०! अट्ठसमतिते पं०,०-पढमे समए दंडं करेति बीए समए कवाडं करेति ततिए समए मंथं एन्टर दीप अनुक्रम [६१४-६१९] anditurary.com ~ 1205~

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