Book Title: Aagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 19
________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [१], ------------------------- उद्देशक: [-1, ---------------------- मूलं [६-७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: %25 % प्रत सूत्रांक [६-७] CASGRA %2525% सिहा जाय अर्णतसमयसिद्धा, से तं परंपरसिद्धासंसारसमावण्णगजीवाभिगमे, सेतं असं सारसमावण्णगजीवाभिगमे (सू०७) हा संसरणं संसारो-नारकतिर्यानरामरभवभ्रमणलक्षणस्तं सम्यग-एकीमावेनापन्ना:-प्राप्ताः संसारसमापना:-संसारवर्तिनस्ते च ते जीवाश्च तेषामभिगमः संसारसमापन्नजीवाभिगमः, तथा न संसारोऽसंसार:-संसारप्रतिपक्षभूतो मोक्ष इत्यर्थः तं समापन्ना असंसारसमापन्नास्ते च ते जीवाश्च तेषामभिगमोऽसंसारसमापन्नजीवाभिगमः, चशब्दो उभयेषामपि जीवानां जीवलं प्रति तुल्यकक्षतासूचको, तेन ये विध्यातप्रदीपकल्पं निर्वाणमभ्युपगतवन्त: ये च नवानामालगुणानामत्यन्तोच्छेदेन ते निरस्ता द्रष्टव्याः, तथाभूतमोक्षाभ्युपगमे तदर्थ प्रेक्षावतां प्रवृत्त्यनुपपत्तेः, न खलु सचेतनः स्खवधाय कण्ठे कुठारिका व्यापारवति, दुःखितोऽपि हि जीवन कदाचिद् भद्रमायात् मृतेन तु निर्मूलमपि हस्तिताः सम्पद इति, इह केवलान् अजीवान् जीवांश्चानुश्चार्याभिगमशब्दसंबलितप्रोऽभिगमव्यतिरेकेण प्रतिपत्तेरसम्भवतस्तेषामभिगमगम्यताधर्मख्यापनार्थः तेन 'सदेवेदमित्यादि सद्वैताद्यपोह उक्तो बेदितव्यः, सदद्वैताद्यभ्युपगमेऽभिगमगम्यसारूपधर्मायोगतः प्रतिपत्तेरेवासम्भवात् । तत्राल्पवक्तव्यत्वात्प्रथमतोऽसंसारसमापन्नजीवाभिगमसूत्रम्-से किं तं असंसारसमावनजीवाभिगमे, २ दुविहे पं०, ०-अनंतरसिद्धअसंसारसमावनजीवाभिगमे परंपरसिद्धअसंसारसमावन्नजीवाभिगमे य' इत्यादि तावद्वाच्यं यावदुपसंहारवाक्यं सत्तं असंसारसमापन्नजीवाभिगमें अस्य व्याख्यानं प्रज्ञापनाटीकातो वेदितव्यं, तत्र सविस्तरमुक्तखात् ।। सम्प्रति संसारसमापन्नजीवाभिगममभिषित्सुतत्पसूत्रमाह से किं तं संसारसमावन्नजीवाभिगमे?, संसारसमावण्णएसु णं जीवेसु इमाओ णव पडिवत्तीओ दीप -50-4 5 अनुक्रम [६-७] -% *40-50-4%9 जीवाभिगमस्य प्ररुपणा ~ 18~

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 ... 938