Book Title: Aagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 18
________________ आगम (१४) प्रत सूत्रांक [३-५] दीप अनुक्रम [३-५] उपांगसूत्र- ३ (मूलं + वृत्ति:) प्रतिपत्तिः [१], उद्देशक: [ - ], मूलं [३५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [१४], उपांग सूत्र [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि प्रणीत वृत्तिः श्रीजीवाजीवाभि० मलयगिरीयावृत्तिः ॥ ७ ॥ "जीवाजीवाभिगम" अजीवाभिगमस्य प्ररूपणा - गमे । अत ऊर्द्धमिदं सूत्रम् - 'से किं तं रूविअजीवाभिगने ?, रूविअजीवाभिगने घडव्विद्दे पण्णत्ते, तं०-खंधा संघदेसा खंघपएसा ७ जीवाजीपरमाणुपुरगला' इह स्कन्धा इत्यत्र बहुवचनं पुद्गलस्कन्धानामनन्तत्वख्यापनार्थे, तथा चोक्तम्- “दुब्बतो णं पुग्गलत्थिकाए णं याभि० अनन्ते" इत्यादि, 'स्कन्धदेशाः स्कन्धानामेव स्कन्धवपरिणाममजहतां बुद्धिपरिकल्पिता क्यादिप्रदेशात्मका विभागाः, अत्रापि बहु- जीवाभिवचनमनन्तप्रदेशिकेषु स्कन्धेषु स्कन्धदेशानन्तत्वसंभावनार्थं, 'स्कन्धप्रदेशाः स्कन्धानां स्कन्धत्व परिणाममजतां प्रकृष्टा देशा:-निविभागा भागाः परमाणव इत्यर्थः, 'परमाणुपुद्गलाः' स्कन्धवपरिणामरहिताः केवलाः परमाणवः । अत ऊर्द्ध सूत्रमिदम् — 'ते समा सतो पंचविधा पन्नत्ता, तंजावण्णपरिणया गंवपरिणता रसपरिणता फासपरिणता संठाणपरिणता, तत्थ णं जे वण्णपरिणया ते पंचविधा पन्नत्ता, तंजा - कालवण्णपरिणता नीलवण्णपरिणता इत्यादि तावद् यावत् 'सेत्तं रुविअजीवाभिगमे, सेत्तं अजीवाभिगने । गमः से किं तं जीवाभिगमे ?, जीवाभिगमे दुविहे पण्णते, तंजहा संसारसमावण्णगजीवाभिगमे य असंसारसमावण्णगजीवाभिगमे य ( सू० ६ ) से किं तं असंसारसमावण्णगजीवाभिगमे १, २ दुविहे पण्णत्ते, तंजहा - अणंतरसिद्धासंसारसमावण्णगजीवाभिगमे य परंपरसिद्धासंसारसमाauraजीवाभिगमे । से किं तं अनंतर सिद्धासंसारसमावण्णगजीवाभिगमे १, २ पण्णरसविहे पण्णत्ते, तंजहा - तित्थसिद्धा जाव अणेगसिद्धा, सेत्तं अतरसिद्धा । से किं तं परंपरसिद्धासंसारसमावण्णगजीवाभिगमे १, २ अणेगविहे पण्णत्ते, तंजहा- पढमसमयसिद्धा दुसमय For P&Permalise Caly ~ 17~ ॥ ७ ॥

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