Book Title: Aagam 10 PRASHNA VYAKARANAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 17
________________ आगम (१०) “प्रश्नव्याकरणदशा” - अंगसूत्र-१० (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ----------------------- मूलं [२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१०], अंग सूत्र - [१०] "प्रश्नव्याकरणदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत PIR८ 'पापकोबो यत्ति पापं-अपुण्यप्रकृतिरूपं कोपयति-प्रपञ्चयति पुष्णाति यः स पापकोप इति अथवा पा चासौ कोपकार्यत्वात् कोपश्चेति पापकोपः चः समुच्चये १९ 'पापलोभो'त्ति पापं-अपुण्यं लुभ्पति-प्राणिनि || लिपति संश्लिष्यतीतियावत् यतः स पापलोभा, अथवा पापं चासौ लोभश्च तत्कार्यवास्पापलोभः २०|| 'विच्छेओ'ति छविच्छेदः-शरीरच्छेदनं तस्य च दुःखोत्पादनरूपत्वात् प्रस्तुतपर्यायविनाशकारणस्वाचोपचारात प्राणवधव, आह-"तप्पजायविणासो दुक्खुप्पातो य संकिलेसो य । एस बहो जिणभणिओ|| बजेयब्यो पयत्सेणं ॥१॥'ति, [तत्पर्यायविनाशो दुःखोत्पादश्व संक्लेशश्च । एष वधो जिनभणितो वर्जयि-| तव्यः प्रयत्नेन ॥१॥] २१ जीवितान्तकरणः २२ भयंकरश्च प्रतीत एव २३ ऋण-पापं करोतीति ऋणकरः। २४'बजोति यममिव वजं गुरुत्वात् तत्कारिप्राणिनामतिगुरुत्वेनाधोगतिगमनाद वय॑ते वा विवेकिभिरिति वर्ज', 'सावज्जोति पाठान्तरे सावद्यः-सपाप इत्यर्थः २५ 'परितावणअण्ह'त्ति परितापनपूर्वक आश्रवः परितापनाश्रयः, आश्रवो हि मृषावादादिरपि भवति न चासौ प्राणवध इति प्राणवधसङ्ग्रहार्थमाअवस्य परिता-1 सापनेति विशेषणमिति, अथवा प्राणवधशब्दं नामवन्तं संस्थाप्य शरीरोन्मूलनादीनि तन्नामानि सङ्कल्पनी-| यानि ततः परितापनेति पञ्चविंशतितमं नाम आश्रव इति षड़िशतितममिति २६ 'विनाश' इति प्राणानामिति गम्पते २७ ' णिझवण'ति नि:-आधिक्येन यान्ति प्राणिनः प्राणास्तेषां निर्यात-निर्गच्छतां प्रयो-| जकत्वं निर्यापना २८ 'लुंपण ति लोपना-छेदनं प्राणानामिति २९ 'गुणानां विराधनेत्यपि चेति हिंस्यप्रा दीप अनुक्रम म.व्या.२ PERMIn | प्राणवधस्य त्रिंशत्-नामानि ~16~


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