Book Title: Aagam 10 PRASHNA VYAKARANAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१०)
“प्रश्नव्याकरणदशा” - अंगसूत्र-१० (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ----------------------- मूलं [२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१०], अंग सूत्र - [१०] "प्रश्नव्याकरणदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
आश्रवे वधनामानि
प्रत
वृत्तिः
SAR
प्रश्नव्याक-2-देहायुष्केन्द्रियलक्षणेश्यः प्राणेभ्यः पातना-जीवस्य भ्रंसना त्रिपातना, उक्तं च-'कायवइमणो तिषिण उ २०श्रीअ- अहवा देहाउइंदिअप्पाणा' इत्यादि, अथवा अतिशयवती यातना-प्राणेभ्यो जीवस्यातिपातना तीतपि- भयदेव. धानादिशब्देष्चिवाकारलोपात्, चकारोवापि समुचयार्थ इति १०, 'आरंभसमारंभो'त्ति आरभ्यन्ते-विना-18
श्यन्त इति आरम्भान्जीवास्तेषां समारम्भ:-उपमर्दः अथवा आरम्भ:-कृष्यादिव्यापारस्तेन समारम्भो-1
जीवोपमई: अथवा आरम्भो-जीवानामुपद्रवणं तेन सह समारम्भ:-परितापनमित्यारम्भसमारम्भः प्राण॥६ ॥
वधस्य पर्याय इति, अथवा आरम्भसमारम्भशब्दयोरेकतर एव गणनीयो, बहुसमरूपत्वादिति ११, 'आउ|यकम्मस्सुबद्दवो भेदनिट्ठवणगालणा य संवड्गसंखेवोत्ति आयुःकर्मण उपद्रव इति वा तस्यैव भेद इति वा तनिष्ठापनमिति वा तद्गालनेति वा, चः समुचये, तत्संवर्तक इति वा, इह खार्थे का, तत्सझेप इति वा, प्राणवधस्य नाम, एतेषां च उपद्रवादीनामेकतरस्यैव गणनेन नानां त्रिंशत्पूरणीया, आयुश्छेदलक्षणार्थापेक्षया सर्वेषामेकत्वादिति १२ मृत्युः १३ असंयमः १४ एती प्रतीती तथा कटकेन-सैन्येन किलिओन वा आक्रम्य मईनं कटकमर्दनं, ततो हि प्राणवधो भवतीत्युपचारात् प्राणवधः कटकमद्देनशब्देन व्यपदिश्यत इति १५ 'वोरमण ति व्युपरमणं प्राणेभ्यो जीवस्य ब्युपरतिः, अयं च व्युपरमणशब्दोऽन्तर्भूतकारितार्थः, लामाणवधपर्यायो भवतीति भावनीयं १६ 'परभवसङ्कमकारक' इति प्राणवियोजितस्यैव परभवे सङ्कान्तिस
भावात् १७ दुर्गती नरकादिकायां कर्तारं प्रपातयतीति दुर्गतिप्रपातः दुर्गतौ वा प्रपातो यस्मात् स तथा
दीप अनुक्रम
AES
Bhinmaram.om
| प्राणवधस्य त्रिंशत्-नामानि
~15~

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