Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
“आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:)
श्रुतस्कंध [१.], अध्ययन -1, उद्देशक -1, मूलं -1, नियुक्ति: [१०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
श्रीआचाराङ्गवृत्तिः (शी०)
अध्ययन उद्देशकः१
आयारम्मि अहीए जं नाओ होइ समणधम्मो उ । तम्हा आयारधरो भण्णइ पढम गणिवाणं ॥ १०॥
यस्मादाचाराध्ययनात् क्षान्त्यादिकश्चरणकरणात्मको वा श्रमणधर्मः परिज्ञातो भवति, तस्मात्सर्वेषां गणित्वकारणानामाचारधरत्वं प्रथमम् आद्यं प्रधानं वा गणिस्थानमिति ॥१०॥ इदानी परिमाणं-किं पुनरस्याध्ययनतः पदतश्च परिमाणमित्यत आह
णवयंभचेरमइओ अट्ठारसपयसहस्सिओ वेओ । हवइ य सपंचचूलो बहुबहुतरओ पयग्गेणं ॥ ११॥ तत्राध्ययनतो नवब्रह्मचर्याभिधानाध्ययनात्मकोऽयं पदतोऽष्टादशपदसहस्रात्मको 'वेद' इति विदन्त्यस्माद्धेयोपादेयपदार्थानिति वेदाक्षायोपशमिकभाववयंयमाचार इति । सह पञ्चभिभूडाभिर्वर्त्तत इति सपञ्चचूडश्च भवति, उक्तशेषानु
() ()() () () ( वादिनी चूडा, तत्र प्रथमा "पिंडेसण सेजिरियाभासज्जाया य वत्थपाएसा उग्गहपडिमत्ति' सप्ताध्ययनात्मिका, द्वितीया |सत्तसत्तिक्कया, तृतीया भावना, चतुर्थी विमुक्तिः, पञ्चमी निशीथाध्ययनं, 'बहुबहुरओ पदग्गेणं ति तत्र चतुश्चूलिकात्मकद्वितीय श्रुतस्कन्धप्रक्षेपाबहुः, निशीथाख्यपञ्चमचूलिकाप्रक्षेपाबहुतरोऽनन्तगमप-यात्मकतया बहुतमश्च, पदाण-पदपरिमाणेन भवतीति॥११॥ इदानीमुपक्रमान्तर्गतं समवतारद्वारं, तत्रैताथूडा नवसु ब्रह्मचर्याध्ययनेष्ववतरन्तीति | दर्शयितुमाह
SAGAR
॥६
॥
*पिडेसणसिजिरिया भासा वासणा य पाएसा इति प्र.
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सूत्रस्य उपोद्घातः, आचार सूत्रस्य अध्ययनानि एवं पद प्रमाणम्
~16-2
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