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________________ पञ्चमप्रर्व. अध्यात्म सार: सटीकः कयति / व्युत्सर्गात् व्युत्सर्गचिह्नात् / देहोपकरणासङ्गः शरीरोपकरणयोर्विषयेऽसङ्गस्त्यक्तमूर्खः / मुनिः साधुः। में जायते नवतीत्यर्थः // 16 // अथैनं निगमयन्नाह| एवं ध्यानक्रमं शुद्धं मत्वा जगवदाइया / यः कुर्यादेतदच्या संपूर्णाध्यात्म विभवेत् // १६ए // | ॥इति ध्यानाधिकारः॥ एवमिति–एवं पूर्वोक्तप्रकारेण / यो योगी। जगवदाज्ञया जिनागमानुसारेण / शुद्धं निर्दोषं / ध्यानक्रमं ध्यानविधि / मत्वा ज्ञात्वा / सदा सर्वदा / अन्यासं पुनः पुनानसेवनं / कुर्यात् करोति / स संपूर्णाध्यात्मवित् परिपूर्णस्याध्यात्मस्वरूपस्य ज्ञाता नवेदित्यर्थः // 16 // ॥इति ध्यानाधिकारः॥ KOSMOSASSICI // 10 // ॥अथ ध्यानस्तुत्यधिकारः॥ अथ ध्यानं स्तौतियत्र गति परं परिपाकं पाकशासनपदं तृणकल्पम् / खप्रकाशसुखबोधमयं तध्यानमेव जवनाशि नजध्वम् // 170 //
SR No.600452
Book TitleAdhyatmasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Gambhirvijay
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1915
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size38 MB
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