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________________ श्री कल्पमुतावल्यां सप्तविंशति भव वृत्तांतः // 64 // इत्यादि वचनै स्तश्च खेदयामास दुर्मतिः॥ सजातीयरिपुश्चात्र द्योतयन्निति गाथिकाम् // 72 // कुपितः सोऽपि तां धेनुङ्कन्दुकमिव चाम्बरे // गृहीत्वा शृङ्गयो दुरश्चिक्षेप भ्रमयन् क्षणम् // 73 // निदानश्च ततश्चक्रे तपसाऽनेन भूयसा // भूयासम्बलवान्भूयान्, महीयांश्च भवान्तरे // 7 // निदानेन तु मृत्वाऽसो भवे सप्तदशात्मके // कल्पे सप्तमके देवो जातोऽयश्च महर्द्धिभाक् // 75 // अष्टादशे भवे तस्माच्च्युत्वा पोतनपत्तने // स्वपुत्रीरन्तुकामस्य प्रजापति धरापतेः॥ 76 // मृगावत्याश्च सत्पल्याः पुत्रस्त्रिपृष्टनामकः॥ वासुदेव स्तदा जज्ञे कृतनैदानहेतुतः॥ 77 // बाल्येऽपि वासुदेवस्य, अश्वग्रीवस्य चाज्ञया // सुशालि क्षेत्र रक्षार्थ प्रयान्तम्पितरं स्वकम् // 78 // निवार्य तत्र गत्वा च विददार महाहरिम् // उपद्रवकारिणं सद्यो मुक्तशस्त्रोऽपि वीर्यवान् // 79 // क्रमशो वासुदेवत्वं प्राप्त एव महाबली // फलन्ति महतां मंच सिद्धयो रवि भा इव // 80 // एकदा वासुदेवस्याभ्यणे केचन गायकाः // समाजग्मुर्यथा लोके ज्ञानिनो ज्ञानकांक्षिणः // 81 // निद्राणे मयि रोद्धव्या गायकाः सत्त्वरं त्वया // इत्यादिश्य शयापालं सुष्वाप सुखपूर्वकम् // 82 // वासुदेवे च सुतेऽपि तद्गीतरसलम्पटः // शय्यापालश्च तान्नैव न्यवारयच्च गायकान् // 83 // भननिद्रः प्रबुद्धोऽसौ वासुदेवः प्रतापवान् // निद्राभङ्गो हि दोषाय प्राकृतस्यापि शास्त्रतः॥ 84 // शय्यापालक ? आः पाप ? मनिदेशावधीरक? // तव गीतं प्रियं लग्नं न चाज्ञा स्वीकृता मम // 85 // अधुना तत्फलं दुष्ट ? लभस्वादेश खण्डनात् // चिक्षेप त्रपु सन्ततं महाकष्ट प्रदायकम् / / 86 // - // 64 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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