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________________ M श्री कल्पमुक्तावल्यां सप्तविंशति विभव वृत्तांत // 63 // कोल्लाक सन्निवेशे च विषयासक्त भूसुरः // जज्ञे च क्रमशः प्रान्ते त्रिदण्डी पाभवत्पुनः॥ 57 // मृत्वा च भूरि बभ्राम संसार सागरान्तरे // न गण्यन्ते भवाचैते स्थलाख्यभवमध्यके // 58 // ततः षष्टे भवे चैव स्थूणापुर्यां द्विजोऽभवत् // पुष्पाहस्तापसीभूय पञ्चत्वच गतस्ततः // 59 // सप्तमे च भवे चाये कल्पे देवत्वमाप्तवान् // तत’च्युत्वाऽटमे जातश्चैत्यस्य सन्निवेशके // 60 // अग्निद्योतो द्विजो भूत्वा त्रिदण्डी देह मत्यजत् // नवमे च भवे देवो द्वितीय देवलोकके // 61 // तत च्युत्वा पुनर्जातो दशमे च भवान्तरे // निवेशे मन्दराख्याने चाग्निभूति द्विजो गुणी // 12 // त्रिदण्डिवेशमादाय निधनश्च ततो ययौ // एकादशे भवे कल्पे तृतीये त्रिदशोऽभवत् // 63 // द्वादशे च भवे तस्माच्छवेताम्बी नाम सत्पुरे // भरद्वाजाभियो विपत्रिदण्डीमरणं ययौ // 64 // त्रयोदशे भवे कल्पे चतुर्थेऽजनि नरः॥ तत"च्युत्वा कियत्कालं भ्रान्तः संसारवारिधौ // 65 // चतर्दशे भवे भूयो राजगृह पुरान्तरे // स्थावरो नाम भूदेव त्रिदण्डी मृतिमाभजत // 66 // भवे पञ्चदशे कल्पे पश्चमे त्रिदशोऽभवत // ततःच्युत्वा भवे जातः षोडशे भूपबालकः॥६७ // विश्वभूतिर्विरक्तोऽसौ सम्भूति मुनि पार्थके // आदाय विमलां दीक्षां तपस्तेपे निरन्तरम् // 68 // मथुरायाङ्कदाऽऽयातो मासोपवासपारणः॥ पथि गच्छन् परं धेन्वा पातितः सोऽतिदर्बलः // 69 // तदवस्थश्च तं दृष्ट्वा पितृव्यतनयस्तदा // तत्र यश्चागतः पूर्व पाणिपीडनहेतवे // 70 // विशाखानन्दनामाऽसौ जहास लज्जयन्निव // कपित्थपातनं दोभा बलञ्च भिक्षया गतम् // 71 // ARWAAADSeasoNepayeAORAND // 63 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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