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________________ कल्पमुक्ता. वल्या शप्तविंशति भव वृत्तांत निर्वोदु शक्यते नैव संयमो मयकाऽधुना // खगधाराग्रयनामः पाल्यते किञ्च कैश्चन // 15 // पूर्वङ्गेहादिकं त्यक्त्वा दीक्षितोऽहं विरक्तितः॥ साम्प्रतगमनं तत्र वान्ताशनसमं न किम् // 16 // इति ध्यात्वा नवं वेषङ्कल्पयामास बुद्धितः॥असाध्यङ्किमुलोकेऽस्मिन् स्वतन्त्र पथवर्तिनाम् // 17 // त्रिदण्डरहिताः सन्ति श्रमणाः श्लाघ्यजीविनः / न तथाऽहं ततो मेऽस्तु त्रिदण्ड चिह्नमेव च // 17 // मुण्डिता द्रव्य भावाभ्यां श्रमणा जित मन्मथाः॥ शिखा मे राजतां मूनि चरेण मुण्डनन्तथा // 18 // महाव्रतानि साधनामणुव्रतानि सन्तु मे // शीलसौगन्धपूजाः साधवोऽहं तथा न हि // 19 // चन्दनादिभि रङ्गे मे लेपनम्भातु सर्वतः॥ प्रमितेनापि नीरेण स्नानं मेऽस्तु निरर्गलम् // 20 // मोहच्छत्र विहीनास्ते साधवः साधुबुद्धयः॥ मस्तके विमलम्भातु छत्रम्मे तापवारकम् // 21 // पादत्राणधरा नैते भवेयङ्किल ताशः॥ निष्कषाया इमे सन्ति वास स्तच्च ममास्तु वै॥ 22 // मरीचिः स्वधिया चैवम्परिव्राजकवेषकम् // परिकल्प्य तथाधारी जज्ञे तन्मार्गकादिमः // 23 // विरूपवेषगं तश्च विलोक्य निखिला जनाः // धर्म पृच्छन्ति तं सोका मुनिधर्म ब्रवीति सः // 24 // देशनाशक्तितो धीमान् बहून् भूपसुतादिकान् // प्रतिबोध्याशु शिष्यत्वे जिनस्य स्थापत्यलम् // 25 // परावृत्यापि . वेषं स्वमृषभदेवतीर्थपः॥ विहारङ्करुते साकं. शिष्यत्वम्परिदर्शयन् // 26 // 1 श्वेताम्बराय 2 काषायवस्त्रम्
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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