________________ A कल्पमुक्कावल्यां कादश आश्चर्य वृत्तांत // 57 // सप्तापि शिक्षयामास व्यसनानि तयोः सकः / / जग्मतु नरकं तौ च ततोऽयं हरिवंशकः // 15 // अत्रागति युगलिधमजुषो स्तथा च // देहायुषोनिजबलादग्रहणं तयोश्च // ___ श्वभ्रावनौ गमनमा सकलङ्किलैत–दाश्चर्य भूतमभवन्ननु सप्तमं तत् // 16 // // अथ-चमरुप्पाअयत्ति // चमरस्या सुरकुमारस्योत्पातस्तथाहि // तपस्तत्त्वा चिरम्भूरि कश्रिद्वाल तपोधरः॥ पूरणाहः प्रभावेण चमरेन्द्रो व्याजयत // 17 // चमरेन्द्रो नवीनोऽहं बलशाली महाद्युतिः // दर्पिष्ठोऽभून्न मे तुल्यो विघते चात्र कश्चन // 18 // स्वशिरस्स्थं परं दृष्ट्वा सौधर्मेन्द्रं यशस्विनम् // चुक्रोध प्रति त धीरो ध्वनन्मेद्यान् यथा हरिः // 19 // कुपितात्माधरां धुन्वत्र-श्री वीरशरणायितः // भयदाकृतिरेषोऽथ लक्षयोजन देहभृत् // 20 // आदाय परिषं शस्त्रं भ्रामयन्नात्मरक्षकान् // शक्रस्य त्रासयामास कुरङ्गानिव केसरी // 21 // सौधर्म भूषणीभूता विमानवर बेदिका // विद्यते तत्र पादश्च मुक्त्वा शक्रमजूहवत् / / 22 // सौधर्मेन्द्रोऽपि संरुष्टः प्रति तं निजवज्रकम् // ज्वलन्तं मोचयामास दहन्त भिव काश्यपीम् // 23 // चमरेन्द्र स्ततो भीतः श्री वीरशरणं ययौ // ज्ञातस्वरूप शक्रोऽपि सत्वरं तत्र चागमत् // 24 // चतुरगुलदस्थो गृहीतश्च तदा पविः // अन्यथा प्रभु वीरस्य महत्याशातना भवेत् // 25 // श्री वीर कृपया मुक्तश्चमरेन्द्र ? मयाऽधुना // श्रेयसे जायते चात्र महादाश्रय एव तु // 26 // // 57 //