________________ कल्पमुक्ता घल्यां दश आश्चर्य // 56 // CENTERACHAKUMARIYA कौशाम्बी नाम सत्पुर्यां सुमुखाभिध भूभुजा // वनमालाभिधा काऽपि सुरुषा चारु लोचना // 1 // वीर शालापते र्भार्या चासीद्या हंसगाभिनी // अन्तःपुरेच साक्षिप्ता कामिनाङ्क्व विवेकता॥२॥ तद्भर्ता तद्वियोगेन विकलोऽजनि सत्वरम् // वियोगो हन्त ! कान्तायाः केषाङ्कष्टाय नो भवेत् // 3 // वीक्षतेऽग्रेच यं यं स वनमाला वियोगतः॥ वनमालेति तं तं वै जल्पतिस्म तदङ्गधीः॥४॥ कौतुकाक्षिप्त चेतोभि लिकै बहुभिः पुरे // भ्राम्यति परिवृत्तोऽसौ नटिभिरिव वानरः॥५॥ एकदा भूपतिः क्रीडन् साकन्तु वनमालया // तदवस्थं हि तं दृष्टवा शुशोच भृशमात्मनि // 6 // राज्ञा सता मया चेत्थमयोग्यं विहितम्बत ? / संति राजनि पापिष्ठे प्रजा अपि तथा न किम् // 7 // यावचिन्तापरें राशि तावद्विद्युत्पपात च / / भूपति वनमालाऽपि मृतौ द्वौ कर्म योगतः // 8 // प्रेमानुबन्धजन्यो हि सम्बन्धोऽपूर्व एव च // हरिवर्षाभिधे क्षेत्रे जातो युगलिनावुभौ // 9 // शालापति स्तयोः श्रुत्वा पञ्चत्वमथ लोकतः॥ पापिभ्याम्माप्तमेवात्रफलमाः पापजं ध्रुवम् // 10 // सावधानो विवेकेण वैराग्य पथ माश्रितः // तपस्तप्त्वा ततो जज्ञे व्यन्तरो दिव्य दर्शनः // 11 // विभङ्ग ज्ञानत स्तेन क्रीडन्तौ तौ च वीक्षितौ // युगलि सुखभुञ्जानौ परमीतिपरौ मिथः / / 12 // भुक्त्वेमौ यौगलं सौख्य वैरिणौ मे विशेषतः // भविष्यतः सुरौ हन्त ! दुर्गतौ पातयाम्यतः // 13 // स्वशक्त्येति विचार्येष संक्षिप्य देहकायुषी // इहानीतौ तयो राज्यं दत्ताश्च भूरि सम्पदः // 14 //