________________ दश आश्चर्य | वृत्तांतः वल्यां केवलम्पाप्य श्री वीरेण प्रथम समवसरणे देशना दत्ता परं तया देशनया कस्यापि विरति प्रणामो न जातः-इति चतुर्थमाश्चर्यम् // 4 // // कन्हस्सत्ति // कृष्णस्य नवम वासुदेवस्य द्रौपदी निमित्तं अपरकंडागमनमाश्चर्य // पाण्डवानां सती भार्या द्रौपदी च कदा पुरा // असंयतस्य देवर्षेः स्वागतं न च चक्रिवान् // 1 // स्वापमानेन रुष्टौऽसौ प्रायेण कलिकौतुकी॥ उपायश्चिन्तयामास द्रौपदी क्लेशदायकम् // 2 // भरते धातकी खण्डे जगामाशु वियदगतिः॥ तत्रापरकङ्काया राजधान्याः प्रभोः पुरः // 3 // पद्मोत्तरस्य पाञ्चाल्या श्चकार रूप वर्णनम् // भैम्या इव यथा हंसो नलस्य पुण्यशालिनः [युग्मम्] // 4 // तद्रूपा कृष्टचित्तोऽसौ मित्रदेवं हितैषिणम् // प्रेषया मास तेनापि त्वानीता द्रौपदी क्षणम् // 5 // इतश्व जननी कुन्ती पाण्डवानां यशस्विनाम् // द्रौपदी हरणं वृत्तं वासुदेवाय प्रावदत् // 6 // वृत्तान्त मथ कृष्णोऽपि श्रुत्वा नारद वक्त्रतः॥ सुस्थिताभिध देवस्य कृता चाराधना वरा // 7 // तहत्तवम॑ना कृष्णः पाण्डवैः सह पञ्चभिः // द्विलक्षयोजनायाममुलंध्य लवणोदधिम् // 8 // जगामापरकङ्कायां राजधान्यां रमापतिः // असाध्यङ्किम लोकेऽस्मिन् दिव्यशक्तिमतां सताम् // 9 // आज्ञया वासुदेवस्य प्रययुस्तत्र पाण्डवाः॥ जितास्ते बलिना तेन पद्मोत्तर महीभुजा // 10 // नारसिंह ततो रूपं विधाय पुरुषोत्तमः // पद्मराजो जितः सद्यो मुक्तश्च द्रौपदी गिरा // 1 // // 54 //