SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्पमुक्तावल्यां दश आश्चर्य वृत्तांतः // 53 // मृत्वा तौ जग्मतुः स्वर्ग सहस्रारक संज्ञकम् // शुद्धाशय गता सूनां स्वर्ग एव सुखावहः // 37 // जगन्नाथेन वीरेण गोशालः प्रतिभाषितः // मच्छिष्य एव गोशाल? त्वमसीह न चापरः॥३८॥ आत्मानश्च मुधा त्वम्मीः किङ्गोपयसि साम्पतम् // असत्याचरितो दम्भः कालेनेह प्रकाशते // 39 // आरक्षकै यथा कश्चिञ्चौरो दृष्टः प्रयान् पथि / / आच्छादयति चात्मानं तृणैः किं तस्य चेष्टया॥४०॥ भगवतोक्त च सत्येऽपि दुरात्माऽसौ कंदाग्रही // तेजोलेश्यां मुमोचाहो श्रीवीरे विश्वबान्धवे॥४१॥ प्रदक्षिणत्रयत्वा वेजोलेश्या च सा विभोः // प्रविष्टा प्रत्युतः सद्यो गोशालक शरीरके // 42 // वेदनामनुभूयासौ तत्तापेन च भूयसीम् // मृतः सप्तमरात्रेण दम्भस्यैतत्फलम्भूवि // 53 // रक्तवर्चाभिधा बाधा षण्मासावधि देहके // भगवतोऽपि सज्जाता वैचित्र्यङ्कर्मणा मिह // 45 // उपसर्गः किल कैवल्ये शान्तस्यापि जिनेशितुः // सञ्जज्ञे चंतदाश्चर्य मादिमश्च विदेलिमम् // 45 // S // गम्भ हरणत्ति // गर्भस्य हरणं देवानन्दा कुक्षेः सकासात् त्रिशलाक्षत्रियाणी कुक्षौ मोचनम् तत्कस्यापि जिनस्य पूर्व न जातं श्री वीरस्य तु जातम् // इत्याश्चर्थम् / / 2 द्वितीयमिति // 2 // ॥इत्थीतित्थति // तीर्थङ्कराहि भगवन्तः पुरुषोत्तमा एव भवन्ति-अस्याञ्चावसपिण्यां मल्लिनाम्नी कुम्भराज पुत्री-एकोनविंशतितम जिनत्वेनोत्पन्ना तीर्थ प्रवर्तितवती-इति तृतीयमाश्चर्यम् // 3 // // अभाविया परिसत्ति ॥-भाव रहिता पर्षत्-भगवतो हि देशना कदाऽपि काले निष्फला नैव भवति-अत्रच
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy