________________ कल्पमुक्ता. वल्यां दश आश्चर्य वृत्तांतः धर्माचार्योंऽपि ते चेत्थं लोभिष्ठोहि प्रतीयते // एतावत्य विभूत्यापि यः सन्तोषपथच्युतः॥२३॥ मुधा भाषणतो लोके यः कोपयति माञ्जिनम् // तेनाहं तश्च घक्ष्यामि स्वमन्युवहिनाऽधुना // 24 // भो ? आनन्द ? ततो मंच गत्वा तत्र तदन्तिके // मदुक्तं निखिलं वृत्तं तस्मै भद्र ? निवेदय // 25 // हितोपदेश हेतुत्वातंवृद्धवणिजन्त्विव // रक्षयिष्यामि चानन्द ? त्वां विद्धि सत्यमेव च // 26 // वागाडम्बर मेतस्य श्रुत्वाऽसौ मुनि सत्तमः // भीत भीत इवाभ्यणे जगाम वीरसत्प्रभोः // 27 // मुनिनाऽनेन शान्तेन वीरांधिवारि जालिना // गोशालोक्तं वचः सर्वं प्रभोरग्र निवेदितम् // 28 // निशम्य भारतीं तस्य प्रोवाच भगवांस्ततः // आनन्द ? कथयाशु त्वं गौतमादि मुनीन् प्रति // 29 // आगच्छति यदा चात्र गोशालो मन्युपूरितः॥ वक्तव्यं न समं तेन स्थातव्यं न च तत्र वै // 30 // आज्ञान्तेऽपि शिरोधार्य तथाऽऽकाए रनन्तरम् // गोशालोऽपि समागत्य प्रोवाच जिनपुङ्गवम् // 31 // भोः काश्यप ? महावीर ? कथम्मिथ्यात्वयोच्यते॥ यदस्माकञ्च शिष्योऽयङ्गोशालेति जनान्तरे॥३२॥ मन्नामा त्वपरः कश्चिच्छिष्यस्ते मृत एव सः। अहश्चान्यो जिनो जज्ञे स्वगुणै रिति बुध्यताम् // 33 // ज्ञात्वा परीषहासक्तं तच्छरीरं मनोरमम् // अधिष्ठाय स्थित थास्मि ज्ञायतामिति तथ्यतः // 34 // तत्कृतश्च तिरस्कारं श्रीवीरस्वामि सत्पभोः॥ सुनक्षत्राभिधः शिष्यः सर्वानुभूतिक स्तथा // 35 // चक्रतुरुत्तरं तेनासहमानौ तदा भृशम् // गोशालेन च तौ दग्धौ स्वतेजोलेश्यया ततः // 36 //