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________________ कल्पमुक्ता वल्यां दश आश्चर्य 8 वृत्तांतः शृणु दृष्टान्त मानन्द ? स्वस्थीभूय मयेरितम् / / दृष्टान्तपूर्ववृत्तान्तो महत्त्वायोपजायते // 9 // वणिजः केऽपि कुत्रत्याः शकटानि क्रयाणकैः // भृत्वाऽन्य विषये जग्मु ापारार्थ मतन्द्रिताः॥१०॥ गच्छन्तो गहनारण्ये पतिता दैव योगतः // तृषाऽऽकुलाचते चक्रु मार्गणाजलहेतवे // 11 // वल्मीक शिखराण्ये ते ददृशुश्च बनान्तरे // चत्वारि चारु दृब्धानि कूटानीव महीभृतः // 12 // नतस्तैः कौतुकाविष्टै भग्नमेकश्च शैखरम् // लकुटादिव स्वच्छं नीरं तस्माद्विनिर्गतम् // 13 // आकण्ठममुके पीत्वा नीरं रम्यं सुशीतलम् // पूरयामासु रन्यानि पात्राणि च मुदम्भराः॥१४॥ द्वितीयं शिखरं मेत्त मुद्यता इतरेऽभवन् // तदा वृद्धन केनाऽपि वारिता स्ते च सद्धिया / / 15 // अनादृत्य वच स्तस्य भग्नफुट मथापरम् // सुवर्गञ्च ततः प्राप्तं महानन्दकरम्बहु // 16 // निषेधिताः पुन भग्नं तृतीयमपि तैस्तथा।। तस्माद्रत्नानि दिव्यानि पापुस्ते लोभ दक्षिताः // 17 // स्थविरेण पुनश्चैते निषिद्धा अपि भूरिशः // मेनिरे न वच स्तस्य यमराज मुखेक्षिणः // 18 // यथा लाभ स्तथा लोभो लाभाल्लोभः प्रवर्धते॥ इत्युक्ति किल ते मूढाः सत्याचक्रुर्गतायुषः // 19 // चतुर्थमपि तत्कूटं स्फोटितञ्च कुबुद्धिभिः॥ तस्मा दृष्टिविषः श्यामो निर्ययौ च भूजङ्गमः // 20 // स्वदृष्टि ज्वालया तेन सर्वे भस्मी कृताः क्षणम् / / उपदेशं न मन्यन्ते ये मूढा गति रीदृशी // 21 // हितोपदेश वक्ताऽसौ वृद्धो देवतया ततः॥ निजस्थाने शनै मुक्तो न क्लेशः पुण्यशालिनाम् // 22 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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