________________ 'कल्पमुक्ता वल्यां प्रथम व्याख्याने मेघकुमार कथा // 44 // त्वयकैव यथा पूर्वे भवे धर्मार्थ मादरात् // अनुभूतम्महाकष्टम्महाफलप्रदायकम् // 15 // अधुना शृणु भोः? सम्यङ् निजं पूर्वभवम्वरम् // ज्ञात्वा क्लेशमिमं स्वल्पङ्गणयिष्यसि नो यथा // 16 // // अथ मेधकुमार पूर्वभवोपक्रमः // इतस्त्वं त्रितमे पूर्वम्भवे वैताढन्यपर्वते // सहस्रहस्तिनीनाथः सुमेरुप्रभ नामकः // 17 // चतुर्वर्ण: श्वेतदन्तो गजराजो महाबली // प्राभवत्स्वैरवृत्या तु विचचार वनाद्वनम् // 18 // दावानलात्कदा भीतो नष्टस्तृषित एव च // बहुकर्दमसंयुक्तं सरश्चैकं समागमः // 19 // निमग्नोऽभूमहापङ्के त्वज्ञातवम॑हेतुतः // नीरात्तीराच्च वै भ्रष्टो जात स्त्वं दैवयोगतः // 20 // पूर्व वैरिगजेन खङ्केनचिद्रदनै हतः // विपत्तौ च विपद्भूय थाहोऽनर्थ परम्परा // 21 // वेदनामनुभूयाथ सप्तवासरकावधि // अभ्राक्षिचन्द्रवर्षायुः प्रपाल्य च यथाक्रमम् // 22 // रक्तवर्णश्चतुर्दन्तो विन्ध्याचलसगिरौ // शताधिकक सप्तानाङ्करिणीनामभूः प्रभुः // 23 // भूयोऽपि वनवनिम्बै दष्टवा जातिस्मृतिन्तथा // सम्प्राप्य तु भव पूर्व सस्मार दुःखहेतुकम् // 24 // दावानल भयत्राण, हेतवे च ततोऽभितः॥ मण्डलकृतवान रम्य योजनायितमानकम् // 25 // वर्षादौ मध्यके चान्ते तृणगुल्मादिकश्च यत् // उन्मूलयति तत्सर्व दावानलमयेन च // 26 // एकदा सकला जीवा भीताश्चवनवतिः // आययुमण्डले तरिमञ्-शरणत्वेन सुन्दरे // 27 // // 44 //