________________ कल्पमुक्ता प्रथम व्याख्याने मेघकुमार वल्यां // 43 // कथा तत्रासीच्छ्रेणिको राजा राज्ञी तस्य च धारिणी // पुत्रो मेघकुमारोऽभूत्तयोर्मेघ इवापरः // 2 // समं तेनैव पुत्रेण सकुटुम्बोनृपोत्तमः // जगाम देशनां श्रोतुं महावीरान्ति भक्तितः // 3 // श्रुत्वैव देशनां दिव्याम्भावान्मेषकुमारकः // वैराग्यवारिधौ मग्नः प्रतिबुद्धः क्षणादसौ // 4 // आपृच्छय जननी तातं त्यक्त्वा चाष्टौ प्रिया स्तथा // दीक्षाञ्जग्राह पुण्यात्मा भवबन्धनभेदिनीम् // 5 // ग्रहणाऽऽसेवनाचार शिक्षार्थ प्रभुणाप्यसौ // अर्पितः पटुधीरादौ स्थविरश्रमणान्तिके // 6 // शयनावसरे नक्तं कृतेषु संस्तरेषु च // यथाक्रमेण संस्तारो द्वारदेशेऽस्य चागतः // 7 // मात्राद्यर्थश्च साधूनाङ्गच्छताम्पाद धूलिभिः॥ भरितः परितः सम्यक् संस्तारोऽस्य महात्मनः // 8 // समग्रायां मुनी रात्री लेभे निद्रां मनाङ् न च // सुतूला क च मे शय्या क्व चेदं लुण्ठनं भृशम् // 9 // सोढव्यञ्च मया दुःखयित्कालावधि प्रभुम् // प्रातरापृच्छय दत्त्वा च रजोहरणादिकम् // 10 // यास्यामि स्वगृहे मेघश्चिन्तयामास चेत्यहो। आययौ प्रभुपादान्ति प्रभाते क्लेशितो मुनिः॥११॥ सुधामधुरसद्वाक्यैः प्रभुणाप्येष भाषितः // भो वत्स ? त्वयका नक्तं दुर्ध्यातमविचारतः॥१२॥ नरकादि महादुःखजीवेनानेन भूरिशः // दीर्घकालञ्च भोः सोहन्तदने च कियत्त्वदः // 13 // इदश्चारित्रज दुःख सोढं यच्च त्वयाऽधुना // कष्टमेतद्धि भो वत्स? फलाय महते भवेत् // 14 // // 43 //