________________ कल्पमुक्तावल्यां प्रथम ल्याख्याने दशकल्प अधिकारः // 21 // निधानमिव तं दृष्टवा सर्वऽपि विस्मयङ्गता // पृष्टन्तश्च क स्त्वम्भोः कोऽयश्च तथ्यमुच्यताम् // 36 // स प्राह धरणेन्द्रोऽहं नागराजो विशेषतः // अष्टमस्य प्रभावेण सहायार्थ मिहागतः // 37 // जातमात्रेण पुत्रेण चाष्टमश्च कृतङ्कथम् // इति पृष्टे च भूपेन धरणेन्द्रो जगा पुनः॥३८॥ आसीत्पूर्वभवे कश्चिद् भूपते! भो वणिक्सुतः॥ बाल्य एव मृता माता मात्र हीन स्ततोऽभवत् // 39 // विमात्रा पोडयमानोऽयं मित्राय दुःखमात्मनः॥ कथयामास मित्रं हि सङ्कटे भुवि बान्धवः // 40 // पूर्वजन्मनि भो मित्र ? कृतं नैव तप स्ततः // इदानीं दुःखमामोसि विना तच्च सुख कृतः॥४१॥ मित्रोपदेशबुद्धोऽसौ यथाशक्ति व्यधा तपः // उपदेशो हि भव्यानां महते श्रेयसे यतः // 42 // पर्वणि चागते रम्ये श्री पर्युषणनामनि // अष्टमश्च करिष्यामि प्रतिज्ञामिति चाकरोत् // 43 // तृणकुटयां विचिन्त्येति सुष्याप सुखमेष च ॥दैवादग्निः समीपेऽस्य लग्यो मन्ये च शर्मणे // 44 // विमाता समय वीक्ष्य कुटयामग्निमथाक्षिपत् // कुटोरे ज्वलिते सोऽपि पुण्यात्मा मरणं लला // 45 // अष्टमतपसो ध्यानाच्छोकान्तश्रेष्ठिनो गृहे // पुत्रत्वेन च सञ्जज्ञे-ऋद्धि मत्यति मेदुरे // 46 // अष्टमञ्च तपोऽनेन कृतं साम्प्रत मादरात् // मुक्तिगामी भवे चास्मिन्-लघुकर्मा भविष्यति // 47 // ततोऽसौ यत्नतः पाल्यः श्रेयसे वो भविष्यति // उक्त्वा कण्ठे स्त्रकं हारं निक्षिप्यास्य ययौ स च // 48 // श्रीकान्त श्रेष्ठिनः कृत्वा देहावसानिकी कियाम् // स्वजनाः स्थापयामासु नामास्य नागकेतुकम् // 49 //