________________ Re श्रीकल्पमुक्तावल्यां चार // 448 // मू-पा-तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउने भिलिंगसूवै पच्छाउत्ते चाउलोदणे कप्पड़ से मिलिंगसूवे पडिगाहित्तए नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिगाहित्तए // 34 // व्याख्या-तत्र गृहे तस्य पूर्वायुक्तः मरादिदालिः पश्चादायुक्तः तण्डुलौदनः तदा कल्पते तस्य मसरादिदालिः प्रतिग्रहीतुं नो तस्य कल्पते तण्डुलौदनं प्रतिग्रहीतुं // 34 // मू-पा-तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पुन्बाउत्ताई कप्पन्ति से दो वि पडिगाहित्तए / तत्थ से पुवागमणेणं दो वि पच्छाउत्ताई एवं नो से कप्पन्ति दो वि पडिगाहित्तए जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते, नो से कप्पइ पडिगाहित्तए // 35 // ____व्याख्या-तत्र गृहे तस्य द्वावपि पश्चादायुक्तौ तदा नो तस्य कल्पते द्वावपि प्रतिग्रहीतुम् यत् तस्य तत्र पूर्वायुक्तं तत् कल्पते प्रतिग्रहीतुम् यत् तस्य तत्र पूर्व पश्चादायुक्तं न तत् कल्पते // प्रतिग्रहीतुम् // 35 // मू-पा-वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविहस्स निगिज्झिय निगिज्झिय बुटिकाए निवइज्जा कप्पइ से अहे आरामंसि वा जाव तहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए नो से कप्पइ पुव्वगहिएणं भत्त-पाणेणं वेलं उवायणावित्तए / कप्पइ से पुवामेव वियडगं भुच्चा पिच्चा पडिग्गहगं संलिहिय संलिहिय संपमज्जिय संपमज्जिय एगओ भंडगं कटु सावसेसे सूरिए जेणेव उवस्सए तेणेव उवागच्छित्तए नो से कप्पइ तं रयणिं तत्थेव उवायणावित्तए // 36 // // 448 //