________________ श्री कल्पमुक्तावल्या श्री समा चारि ABAR // 441 // मू-पा-वासावासं पज्जोसवियस्स निच्चभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पन्ति तओ पाणगाई पडिगाहित्तए, तं जहा. उस्से इम सं से इमं चाउलोदगं / वासावासं पज्जोसवियस्स छहभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पन्ति-तओ पाणगाई पडिगाहित्तए, तं जहा-तिलोदगं तुसोदगं जवोदगं / वासावासं पज्जोसविवस्स अट्ठमभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पन्ति तओ पाणगाइ पाडिगाहित्तए, तं जहा- आयामं सोवीरं सुद्धवियडं / वासावास पज्जोसवियस्स विगिहभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिणवियडे / पडिगाहित्तए / सेवि य णं असित्थे नो वि य गं ससित्थे / वासावासं पज्जोसवियस्स भत्तपडियाइक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिगवियडे पडिगाहित्तए से वियणं असित्थे नो चेव णं ससित्थे से वि य णं परिपूए, नो चेव णं अबहुसंपुण्णे (ड) // 25 // व्याख्या-चतुर्मासकं स्थितम्य नित्यं एकाशनकारिणः-भिक्षोः कल्पन्ते सर्वाणि पानकानि प्रतिग्रहीतं सर्वाणि च-आचाराङ्गोक्तानि-एकविंशतिः-अत्र-वक्ष्यमाणानि नव वा-तत्राचाराङ्गोक्तानि इमानि / उस्सेइम 1 संसेइम 2 तंडुल 3 तुस 4 तिल 5 जवोदगा 6 यामं 7 / सोवीर 8 शुद्धवियर्ड 9 अंबय 10 अंबाडग 11 कविठं // 12 // // 1 // मउलिंग 13 दक्ख 14 दाडिम 15 खज्जुर 16 नालिकेर 17 कयर 18 बोरजलं 19 आमलगं 20 चिंचापाणगाई 21 पढमंगभणिआई // 2 // एषु पूर्वाणि नव तु अत्रोक्तानि-चतुर्मासकं स्थितस्य एकान्तरोपवासकारिणः भिक्षोः कल्पन्ते त्रीणि पानकानि प्रतिग्रहीतुम्-तद्यथा उत्स्वेदिमं पिष्टादिभृतहस्तादिधावनजलं संस्वेदिम-यत्पर्णाद्यत्काल्य शीतोदकेन सिठच्यते तज्जलं तण्डुलधावनजलं // // 44 //