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________________ श्रीकल्प श्री समाचारि मुक्तावल्या // 440 // मू-पा-वासावासं पज्जोसवियस्स छहभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पन्ति दो गोयरकाला गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा // 22 // ___ व्याख्या-चतुर्मासकं स्थितस्य नित्यं षष्ठकारिणो भिक्षोः द्वौ गोचरकालौ कल्पेते गृहस्थगृहे भक्तार्थ वा पानार्थ वा निष्क्रमितुं वा प्रवेष्टुम् वा. // 22 // मू-पा-वासावासं पज्जोसवियस्स अहमभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पन्ति तओ गोयरकाला गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा // 23 // व्याख्या-चतुर्मासकं स्थितस्य नित्यम् अष्टमकारिणो भिक्षोः कल्पन्ते त्रयो गोचरकालाः- गृहस्थगृहे भक्तार्थ ग पानार्थ वा निष्क्रमितुं वा प्रवेष्टुं वा // 23 // मू-पा-वासावासं पज्जोसवियस्स विगिहभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पन्ति सव्वेवि गोयरकाला गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा (8) // 24 // ___ व्याख्या-चतुर्मासकं स्थितस्य भिक्षोः-नित्यम् अष्टमादुपरि तपःकारिणः कल्पन्ते सर्वेऽपि गोचरकालाः गृहस्थगृहे भक्तार्थ वा पानार्थ वा निष्क्रमितुं वा प्रवेष्टुं वा-यदा इच्छा भवति तदा भिक्षते न तु प्रातहीतमेव धारयेत-कुतः सञ्चयजीवससक्तिसाघ्राणादिदोषसम्भवात // 24 // // इत्थमाहारविधिमुक्त्वा पानकविधिमाह // // 440 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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