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________________ श्री कम्प मुक्तावल्या [430 // कार्यमपि न कर्तव्य-मिति मा वद भी बुध 1 / येषु येषु दिनेष्वत्र, कार्याणि यानि यानि च // 46 // प्रतिबद्धानि तानीह, कर्तव्यानि विशेषतः / देवार्चा मुनिदानादि, शुभकार्याणि नित्यशः // 47 // शुभानि यानि कार्याणि, सन्ध्यादिसमयेषु च / प्रतिबद्धानि तानीह, कर्तव्यानि तथा तथा // 48 // भाद्रमासप्रतिबद्धानि, यानि कार्याणि तानि तु / तद्वयसम्भवे कस्मिन् , क्रियते प्रश्नके सति // 49 // पक्षमाघं तिरस्कृत्य, द्वितीये क्रियते ततः। न्यायबुध्येति भो धीमन्--सम्यक्त्वश्च विचारय // 50 // अचेतनास्तथा चात्र, वनस्पतिमुखा अपि / नाङ्गीकुर्वन्ति भोः पश्या-धिकमासमुता परे // 51 // येन चाधिक मासेऽपि, विहाय प्रथमं ततः / द्वितीय एव मासे तु, पुष्यन्ति कालसूचकाः // 52 // // यदुक्तं-आवश्यकनियुक्तौ // जइ फुल्ला कणि आरडा चूअग / अहिमासयंमि घुमि-तुह न खमं फुल्लेडं, जइ पच्चता करिति डमराई // 1 // // तथा च कश्चिद् // अभिवडिअमि वीसा, इअरेषु सवीसइ मासे, इति वाक्येन मासस्य, वृद्धौ विंशति वासरः, लोचादिकृत्यवैशिष्टयां, पर्युषणां करोति च // 53 // // तदपि न योग्यम् / / येन-अभिवडिअंमि वीसा, इति वाक्यं गृहिज्ञातमात्रापेक्षया, अन्यथा 430 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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