________________ कल्पमुक्तावल्यां प्रथम | व्याख्याने दशकल्प अधिकारः // 16 // // जघन्यस्य चतुर्भेदानाह // जिनचैत्यस्य सामीप्यं निर्जीव स्थण्डिलन्तथा // स्वाध्यायावनि सौलभ्यं सुलभा गोचरी तथा // 11 // // उत्कृष्टस्य त्रयोदश मेदानाह // न यत्र पङ्कतादोषः सुखयान विघातकः 1 // सम्मूच्छिम जीवानाम्बिशेषान्न च सम्भवः 2 // 112 // स्थण्डिलं तृणहीनश्च३ स्थानं स्त्रीसङ्ग वर्जितम् 4 // यत्र स्यागोरसपाप्ति 5 जनश्च भक्ति भाजनः 6 // 113 // उत्तमा अगदङ्काराः७ गोहिनोऽपि रमायुताः 8 // पुराधीशश्च सन्न्यायी 9 द्विजेम्यो नच हेलना 10 // 114 // भिक्षा च सुलभा यत्र 12 स्वाध्याये नच विघ्नता 13 // त्रयोदशगुणोपेतं क्षेत्र मेतच्च सेव्यताम् // 115 // त्रयोदशगुणान्यूनं मध्यमं क्षेत्रमुच्यते // उत्कृष्टे मध्यमे चैवञ्जधन्येऽपि च साधुभिः // 116 // आज्ञया स्वगुरोः कार्या चातुर्मासी श्रियेऽङ्गिनाम् // गुर्वाज्ञा विमुखानां हि नच सिद्धि रणीयसी // 117 // पर्युषणा महाकल्पः कर्तव्य स्तत्र पर्वणि // कल्पसूत्रं सुख वाच्यं मङ्गलायतनं यतः॥११८॥ // इति दशकल्पव्याख्या // // अथ कल्पसूत्रोत्तमतामाह // मन्त्राणां परमेष्ठिमन्त्रमहिमा तीर्थेषु सिद्धाचलो-दाने प्राणिदया गुणेषु विनयो ब्रह्मवतेषु व्रतम् // सन्तोषे नियम स्तपरसु च शम स्तत्वेषु सद्दर्शनम् / सर्वेघूत्तम पर्वसु प्रगदितः श्रीपर्वराज स्तथा // 1 // // 16 //