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________________ कल्पमुक्तावल्यां प्रथम व्याख्याने दशकल्प अधिकारः रोगाभावे परं दोषञ्जनयत्येव भाव्यताम् // राज्ञोक्तमलमेतेन सुप्ताहेरिव चोथितिः // 99 // द्वितीयः माह भो राजन् हन्ति व्याधि ममौषधम् // रोगा भावे परं नैव करोति गुणदोषका // 10 // जगाद पृथिवीनाथो वद्यानेन सृत सृतम् // भस्मौधे हुतकल्पेन स्वयं ब्रूहि विचारतः॥१०१॥ तृतीयः प्राह भो भूप? मामकौषध सेवनात् // शरीरे रोगनाशः स्यात्पूर्व मूलत एव च // 102 // रोगाभावे पुनर्देहे गुणानेतान् करोति ह // सौन्दर्य वीर्यवृद्विश्व दुःखसन्तापनाशनम् // 103 // माह राजा समीचीन मौषधम्भिषजोऽस्य वै // ग्राह्यमेतच्च येनास्य शरीरे पटुता सदा // 104 // कल्पोऽयं तद्वदेवात्र ग्राह्य एव मुमुक्षुमिः // सति दोषे च तं हन्ति त्वभावे धर्म पुष्टिभाक् // 105 // वर्षान्ते मेघसद्भावे पङ्किले च तथा पथि // गतायामपि कार्तिक्यां तिष्ठन्ति मुनिसत्तमाः // 106 // अशिवे' भोजनाप्राप्तौ राज' रोगं पगमवे // चातुर्मासस्य मध्येऽपि विहर्तुङ्कल्पतेऽन्यतः // 107 // असति स्थण्डिले 5 जीवाकुले 6 च वसतौ 7 तथा // 8 कुंथुष्वग्नौ 9 तथा सर्प 10 विहर्तुङ्कल्पतेऽन्यतः // 108 // // तत्राप्ययं विमर्शः // साधुसंयमरक्षार्थ गुणाः क्षेत्रस्य सर्वतः // अन्वेष्टव्या विचारेण विगतेऽपि च दोषके // 109 // // तस्य त्रैविध्यमाह // क्षेत्रं तत् त्रिविधं ज्ञेयञ्जधन्यं मध्यमं वरम् // चतुष्पकारकं ज्ञेयञ्जधन्य तत्र वै बुधैः // 110 // // 15 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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