________________ कल्पमुक्कावल्यां प्रथम व्याख्याने दशकल्प अधिकारः // 14 // रे मूर्ख ? कथित किनो सत्त्वरश्च त्वया पुरा // तेनोक्तं तावकी शिक्षा लोके नोच्चैश्च भण्यताम् // 89 // अन्येऽपि सन्ति दृष्टान्ता जडवक्रगताः स्वयम् // ज्ञातव्या धीधनैर्नोक्ता ग्रन्थ विस्तार भीतितः // 90 // // अथ द्वाविंशतिजिनयतीनां ऋजुप्राशत्वे दृष्टान्तः // कदा चाजितनाथस्य यतयः क्षीणकल्मषाः // नटलास्यम्विलोक्यैव गुरु पार्श्वमुपागताः // 91 // गुरुभिरथ पृष्टा स्ते-ऋजुत्वात्सत्यमाभणन् // नटनृत्ये निषिद्धा स्ते व्रताध्वदूषण प्रदे // 92 // बहिर्जग्मुः पुन देष्टा नृत्यन्ती नटिका सुखम् // निवारिते नटे सत्यं निषिद्धषाऽपि नर्तको // 93 // प्रज्ञत्वाल्लास्यम'स्या स्ते ददृशुने मनागपि // दोषज्ञाः शान्त भावस्था ईयुः सत्त्वरमाश्रयम् // 94 // वक्रत्वादपि जाडयत्वावीरक्रमानुयायिनाम् // साधूना नैव धर्मोऽस्ति वाच्य मित्थं न दोषतः // 95 // जो भणइ नत्थि धम्मो नय सामइयं न चेव य वयाई / सो समणसंघबज्झो कायब्वो समणसंघेण // 1 // सर्वथा हितकारी वैकल्पोऽयं दश भेदकः // औषधमिव वैद्यस्य तृतीयस्य गुणोदधेः॥९६ // // तमेव स्फुटयति दृष्टान्तेन // भूभुजा केनचित्वापि चिकित्सार्थ सुतस्य नु॥ समाहूता स्त्रयो वैद्या रोगविज्ञान चञ्चवः॥९७ // तन्मध्यादादिमः माह शणु राजन् वचो मम // औषधं हन्ति मे रोगं सति रोगिणि देहिनि // 98 // 1. नृत्यम्। का॥१४॥