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________________ कल्पमुकावल्यां | प्रथम व्याख्याने दशकल्प अधिकारः // 13 // // अपर दृष्टान्तश्च // आसीत्कश्चिद्वणिकपुत्रो जन्मतोऽपि च दुर्णयः // वृद्धाभ्याम्पुरतो वाच्यं न त्वयेति च शिक्षितः // 76 // पित्राऽसौ किश्च वक्रात्मा विरुद्ध न च तद्वचः॥ दधे वित्ते च हा हन्तः क्व शिक्षा वक्रबुद्धिषु // 77 // गतेषु कापि सर्वेषु चैकदा च कुटुम्बिषु // वक्रबुद्धिरसौ स्वान्ते चिचिन्तेति सुनिर्भरम् // 78 // शिक्षयन्तं स्वकं तातं शिक्षयामि स्वयं त्वहम // पिधायेति कपाटश्च गृहमध्यमशिश्रियत् // 79 // आगतेन गृहं पित्रा द्वारोद्घाटन हेतवे // प्रोक्तोऽसौ बहुशः किश्च नोद्घाटयति वक्ति च // 8 // भित्तिमुल्लंध्य मध्येऽसौ प्रविष्ट स्तर्जितः सुतः॥ तेनोक्त नास्ति मे दोषः शिक्षषा भवतां न किम् // 81 // व्याजहार पिता पुत्र ? ईय॑योच्चैः सताम्पुरः॥ न वक्तव्यं त्वया शिक्षा चैषाऽऽसीदन्यथा कृता / / 82 // सोऽपि प्रोवाच भो स्तात ? वदिश्यामि शनैः शनैः॥ प्रमाणं तावकं वाक्यमद्यावधि विभाव्यताम् // 83 // एकदा जनक स्तस्य मध्ये लोकस्य मुख्यताम // भजमानः स्थित श्वासीदग्निकोपो गृहेऽभवत् / / 74 // जगाद जननी पुत्रं गत्वा तातं निवेदय // शीघ्रमागत्य वस्तूनि निष्कासय गृहान्तरात् // 85 // यात्वाऽसौ चिन्तयामास लोकमध्य स्थित कथम् ॥कथयामि निजं तातं निषिद्धोऽस्मि त्वरोक्तिषु // 86 // मौनमाधाय तस्थौ स घटिकावधि मूढधीः॥ आगत्य मन्थर कर्णे पितु स्तेन निवेदितत् // 87 // लमो गेहे पित वाग्नि विध्यापनीय एव च // जाताच कियती वेला होरिकैका.च बुध्यताम् // 88 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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